दास्तान-गो : ‘आइना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे’ महेश भट्‌ट को कभी लगे शायद!

Daastaan-Go ; Mahesh Bhatt Birth Anniversary : साल 2020 में ही महेश भट्‌ट साहब की फिल्म ‘सड़क-2’ अगस्त की 28 तारीख़ को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आई थी. इस फिल्म को लोगों ने किस तरह लिया उसका एक नमूना ‘आउटलुक’ पत्रिका ने दिखाया था, दो दिन पहले यानी 26 अगस्त को. बताया था कि फिल्म का ट्रेलर ही तमाम डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर ‘सबसे ज़्यादा नापसंद’ किए जाने का रिकॉर्ड बना लिया. यह ट्रेलर उस साल 12 अगस्त को रिलीज़ हुआ और यू-ट्यूब पर महज 15 दिन ही इसने 1.2 करोड़ से ज़्यादा ‘डिसलाइक’ (नापसंदगी का चिह्न) अपने ख़ाते में जुटा लिए थे.

दास्तान-गो : ‘आइना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे’ महेश भट्‌ट को कभी लगे शायद!
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्‌टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़… ———– जनाब, बड़ी उलझी शख़्सियत हैं ये. हिन्दी ज़बान में कहें तो जटिल किस्म की. वैसे, दिखते एकदम सीधे-सपाट से हैं. फिर भी यूं कहें कि मुख़्तलिफ़ पहलुओं को मिलाने से एक महेश भट्‌ट बने हैं, तो ग़लत न होगा. महेश भट्‌ट हिन्दू हैं. इनके पिता नानाभाई (बटुक) भट्‌ट हिन्दी, गुजराती सिनेमा के फिल्मकार हुआ करते थे. फिल्में बनाते थे. उनका डायरेक्शन भी करते थे. साल 1959 में एक सुपरहिट फिल्म आई थी ‘कंगन’. अशोक कुमार और निरूपा राय ने उसमें अदाकारी की थी. वह फिल्म नानाभाई ने बनाई थी. इसके अलावा हिन्दी फिल्मों में एक अदाकार के दो किरदारों (डबल-रोल) को दिखाने का चलन भी नानाभाई ने शुरू किया था, ऐसा कहा जाता है. ये तज़रबा उन्होंने पहली ही फिल्म ‘मुक़ाबला’ (1942) में किया था. और साल 1948 की तारीख़ 20 सितंबर को महेश भट्‌ट की पैदाइश के वक्त उन्हें नाम भी उनके इन्हीं वालिद ने दिया था. हालांकि जनाब, महेश भट्‌ट साहब ख़ुद को मुसलमान भी कहते हैं, क्योंकि इनकी मां इसी मज़हब से त’अल्लुक़ रखती हैं. शिरीन मोहम्मद अली नाम हुआ उनका. ख़ुद भी अदाकारा थीं. अभी इसी साल चार मार्च को उनकी 100वीं सालगिरह हुई है. उस वक़्त महेश भट्‌ट साहब की बड़ी बेटी पूजा ने इस बारे में ख़ुद बताया था. साथ में ये भी कि महेश भट़्ट साहब की फिल्म ‘ज़ख़्म’ (1998) में उन्होंने अपनी दादी का ही किरदार अदा किया था. यानी उस फिल्म की कहानी महेश भट्‌ट साहब की अस्ल ज़िंदगी पर लिखी गई थी. ख़ुद उन्होंने ही लिखी थी. लिहाज़ा, उसी हिसाब से देखें तो महेश भट्‌ट साहब की मां ने उनके पिता के साथ क़ायदे से शादी की थी. इसके बावज़ूद, महेश भट्‌ट साहब कई मर्तबा ख़ुद को ‘मुस्लिम मां की ना-जाइज़ औलाद’ कह चुके हैं. जबकि ऐसा कहने से सिर्फ़ उनके पिता पर नहीं, उनकी ‘अम्मी’ पर भी बट्‌टा सा लग जाता है. महेश भट्‌ट ख़ुद को मज़हब के आधार पर होने वाली मार-काट का अव्वल विरोधी बताते हैं. उन्होंने ‘ज़ख़्म’ फिल्म में अपनी ख़ुद की कहानी कहते-कहते इस मसले को बख़ूबी छुआ है. दिखाया है. इसके बावज़ूद वे इसी तरह की मार-काट का ‘जाने-अनजाने में’ समर्थन करते भी नज़र आते हैं. इंटरनेट पर उनका एक वीडियो मिलता है. कब का है, ये तो पता नहीं पर साल 2020 के अगस्त महीने में कुछ लोगों ने ट्विटर पर इसे डाला था. इसमें महेश भट्‌ट साहब एक ‘मज़हबी जलसे’ में मंच से बोलते हुए, तमाम दलीलें देकर, आख़िर में कहते हैं, ‘अगर आपने पुलिस स्टेशन को टॉर्चर कैंपस बना दिया. वहां मासूम को ले जाकर मारोगे, पीटोगे, ज़लील करोगे तो आतंकवाद बढ़ेगा’. अब जनाब, ऐसा तो नहीं ही कहा जा सकता न, कि महेश भट्‌ट साहब को पता नहीं है कि दुनियाभर में फैला आतंकवाद मज़हब के आधार पर की जाने वाली मार-काट ही तो है आख़िरकार. महेश भट्‌ट साहब का एक और वीडियो मिलता है. ये भी 2020 में ही ट्विटर पर नज़र आया. इसमें वे भडकाऊ मज़हबी तक़रीरें करने वाले ज़ाकिर नाइक के साथ बैठे दिखते हैं. ख़बरनवीसों से बातचीत का मौका है. उसमें वे कह रहे हैं, ‘ज़ुर्रत करने वाले आदमी का साथ देना चाहिए. शुक्र है, हमारे बीच एक ऐसा शख़्स (नाइक) है, जो सबके एरोगेंस (ग़ुरूर) से आंख मिलाता है और कहता है कि भइया, हम किसी तरह सहम कर ज़िंदगी नहीं जिएंगे. आपको हमारी बेइज़्ज़ती करने का हक़ नहीं है’. बल्कि इसके आगे तो किसी जलसे का एक वीडियो क्लिप और है. उसमें महेश भट्‌ट साहब मंच पर नुमायां हैं. कह रहे हैं, ‘ज़ाकिर (नाइक) साहब की ज़िंदगी अपने आप में क़माल की कहानी है. एक फीचर फिल्म का मटेरियल उसमें है. अब वह (ज़ाकिर) ख़ुद इसमें हीरो का रोल करना चाहते हैं, हम नहीं जानते. या किसी को हम ढूंढ सकते हैं. बशर्ते वे परमीशन दे दें हमें’. यही नहीं, महेश भट्‌ट साहब की ज़ाती ज़िंदगी से भी अजीब-ओ-ग़रीब सी मिसालें हैं. मसलन- मुंबई में 2008 के आतंकी हमले का एक आरोपी हुआ डेविड कोलमैन हेडली. अमेरिकी बाशिंदा. यही शख़्स था, जिसने आतंकी हमले से पहले कई बार मुंबई आकर इसके लिए पहले से तमाम बंदोबस्त किए थे. मुमकिन है, इसी कोशिश में उसने महेश भट्‌ट साहब के साहबज़ादे राहुल से भी दोस्ती की. हेडली से दोस्ती की बात ख़ुद राहुल ने मानी है. एक किताब है, ‘हेडली एंड आई’. पत्रकार एस हुसैन ज़ैदी ने लिखी है. उसमें इस बारे में काफ़ी कुछ लिखा गया है. हालांकि, जब हेडली का नाम आतंकी हमले में सामने आया तो राहुल ने उससे पल्ला झाड़ लिया. साथ ही जोर देकर दुनिया को बताया कि उन्हें हेडली के इरादों का कोई इल्म नहीं था. उस वक़्त, महेश भट्‌ट साहब ने अपने बेटे को बेग़ुनाह साबित करने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया. अच्छे बाप की तरह. राहुल के लिए महेश भट्‌ट साहब ने जो किया, वह स्वाभाविक था. हालांकि, इन्हीं ने 1980 से बाद की दहाई के एक साल में अपनी ही बड़ी बेटी पूजा के होंठों पर होंठ रखकर किसी मैगज़ीन में तस्वीर छपवाई. फिर कहा कि ‘पूजा अगर बेटी न होती, तो मैं उससे शादी कर लेता’. एक ‘बाप की हैसियत से’ यह कहना या करना कैसे ‘सही या स्वाभाविक’ था, ये किसी को समझ नहीं आया अब तक. अलबत्ता, साल 2018 में फिल्मों के लिए कहानियां और नग़्मे लिखने वालीं कौसर मुनीर को दिए इंटरव्यू में महेश भट्‌ट साहब ने थोड़ा समझाने की कोशिश की थी इस बारे में. उन्होंने कहा था तब, ‘मुझे दरअस्ल पता ही नहीं कि पिता का मतलब क्या होता है. बच्चों की ज़िंदगी में पिता का किरदार कैसा होना चाहिए. मेरे नज़दीक पिता जैसा कोई शख़्स कभी रहा ही नहीं. मैं अकेली रहने वाली मुस्लिम मां- शिरीन मोहम्मद अली की ना-जाइज़ औलाद हूं’. हालांकि, यही महेश भट्‌ट साहब जब ‘डैडी’ (1989) के नाम से बनाई अपनी फिल्म में एक ‘बाप की कहानी’ कहते हैं तो कुछ भरम होता है. भरम होता है कि क्या ये वही साहब हैं जो कहा करते हैं कि उन्हें नहीं पता कि ‘बाप क्या होता है’. इस फिल्म की कहानी, इसके हालात, इसके नग़्मों ने तो लोगों की आंखों में आंसू ला दिए थे जनाब. यही वज़ह होगी कि ‘डैडी’ ने तब के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के दौरान ‘स्पेशल मेंसन का अवॉर्ड’ भी जीत लिया था. इतना ही नहीं, भरम फिर होता है जब कोई एक तरफ़ महेश भट्‌ट की बनाई ‘अर्थ’ (1982), ‘सारांश’ (1984), ‘नाम’ (1986) और ‘सड़क’ (1991) जैसी फिल्में देखता है. साथ ही, दूसरी तरफ़ उन्हीं की ‘ज़िस्म-2’ (2012) जैसी फिल्में, जिनमें न तो कोई ‘अर्थ’ होता है और न ‘सारांश’. शायद यही भरम वह वज़ह भी है कि लोग ठीक-ठीक तय नहीं कर पाते कि आख़िर महेश भट्‌ट साहब को समझें किस तरह से. इसकी एक मिसाल कुछ वक़्त पहले की है. साल 2020 में ही महेश भट्‌ट साहब की फिल्म ‘सड़क-2’ अगस्त की 28 तारीख़ को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आई थी. इस फिल्म को लोगों ने किस तरह लिया उसका एक नमूना ‘आउटलुक’ पत्रिका ने दिखाया था, दो दिन पहले यानी 26 अगस्त को. बताया था कि फिल्म का ट्रेलर ही तमाम डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर ‘सबसे ज़्यादा नापसंद’ किए जाने का रिकॉर्ड बना लिया. यह ट्रेलर उस साल 12 अगस्त को रिलीज़ हुआ और यू-ट्यूब पर महज 15 दिन ही इसने 1.2 करोड़ से ज़्यादा ‘डिसलाइक’ (नापसंदगी का चिह्न) अपने ख़ाते में जुटा लिए थे. इस तरह यह यू-ट्यूब का दूसरा सबसे ज़्यादा नापसंदगी वाला वीडियो बना. और इस क़िस्म के ट्रेलर की हैसियत से तो यह पहले दर्ज़े पर रहा. यक़ीनी तौर पर महेश भट्‌ट साहब ने कभी सोचा नहीं होगा कि किसी वक़्त उनके फिल्मी शाहकार के साथ ऐसा बर्ताव भी होगा. लेकिन यह सब हुआ जनाब. ये हुआ और इसकी वज़ह अगर कोई है, तो वह ख़ुद महेश भट्‌ट साहब. उन्होंने दरअस्ल, वक़्त के साथ-साथ ख़ुद पर जिस तरह के तज़रबे किए, यक़ीनन उनसे उनकी साख़ को चोट पहुंची है. उस पर दाग-धब्बे लगे हैं. सो, ज़ाहिर तौर पर इन दाग-धब्बों को अगर कोई साफ करता है तो वह भी वे ख़ुद ही होंगे. उन्हीं की फिल्म ‘डैडी’ फिर याद आती है. उसमें एक ग़ज़ल है, बड़ी ख़ूबसूरत सी. तलत अजीज़ साहब ने इसे गाया था, ‘आइना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे. मेरे अपने मेरे होने की निशानी मांगे’. कितना बेहतर हो, अगर महेश भट्‌ट साहब इसे समझें और अपनी पुरानी सूरत में लौट आएं. फिर एक बार वही ‘अर्थ’, ‘सारांश’ वाली सूरत. उनके चाहने वालों ने, आज भी उनसे इस तरह की बहुत उम्मीदें लगाकर रखी होंगी. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Birth anniversary, Hindi news, Mahesh bhatt, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : September 20, 2022, 07:01 IST