प्लास्टिक वालाः घर-घर जाकर प्लास्टिक का कचरा इकट्ठा कर बनाते हैं खूबसूरत आर्ट
प्लास्टिक वालाः घर-घर जाकर प्लास्टिक का कचरा इकट्ठा कर बनाते हैं खूबसूरत आर्ट
मानवीर सिंह घर-घर जाकर प्लास्टिक इकट्ठा कर आर्ट बनाते हैं. अपनी आर्ट के जरिए लोगों को पर्यावरण को बचाने के लिए जागरूक करते हैं. प्लास्टिक इकट्ठा करने लोगों के घरों में ‘हैबिट चेंजर बॉक्स’ लगाते हैं.
दुनिया में हर साल लाखों टन प्लास्टिक का उपयोग होता है. कई सालों तक नष्ट न होने वाला प्लास्टिक जमीन को बंजर और वातावरण को दूषित बनाता है. लेकिन सरकारों और कुछ लोगों ने पर्यावरण को सुरक्षित रखने और वातावरण को शुद्ध बनाने के लिए लोगों को कम से कम प्लास्टिक उपयोग करने के लिए प्रेरित किया है. लोगों ने अपने स्तर पर प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के कई तरीके निकाले और लोगों को जागरूक भी किया. भारत सरकार ने भी बीते महीने 1 जुलाई को सिंगल यूज़ प्लास्टिक की कुछ चीजों पर पाबंदी लगा दी है. जिससे प्लास्टिक के कम उपयोग से पर्यावरण को बचाया जा सके.
इसी तरह चिप्स, बिस्किट और टॉफी की पन्नियों को इकट्ठा कर कूड़े के ढेर को सुंदर आर्ट में बदल देते हैं दिल्ली के रहने वाले मानवीर सिंह. वो लोगों के घर जा-जाकर प्लास्टिक का कचरा इकट्ठा करते हैं. उस कचरे से कलाकृतियां बनाते हैं. मानवीर सिंह हरिद्वार उत्तराखंड से जब मानवीर दिल्ली आए तो उन्होंने जगह जगह कचरे का ढेर देखा. उन्होंने कॉलेज ऑफ आर्ट्स से फाइन आर्ट्स में ग्रेजुएशन और मास्टर्स की पढ़ाई की है. उन्हें लैंडस्केप बनाना पसंद है. वो नेचर को अपने कैनवास पर उतारते हैं. वो साल 2018 से प्लास्टिक से कलाकृतियां बना रहे हैं. इसके लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.
कचरा के ढ़ेर को देख प्लास्टिक वेस्ट का उपयोग करने का प्लान किया.
कब की प्लास्टिक से कलाकृतियां बनाने की शुरुआत
मानवीर सिंह उर्फ प्लास्टिक वाला ने बताया कि मुझे लैंडस्केप बनाना बहुत पसंद है. वहां प्रकृति की सुंदरता को देखता हूं. लेकिन जब दिल्ली वापस आकर देखता हूं तो यहां कचरे के पहाड़ दिखाई देते हैं. तब मुझे लगा कि मुझे नेचर के लिए कुछ करना चाहिए. तब मैं अपनी आर्ट के लिए एक मैटेरियल की खोज कर रहा था. फिर मुझे खयाल आया कि मैं इसमें प्लास्टिक का इस्तेमाल कर सकता हूं.
उन्होंने प्लास्टिक को अपने काम में उपयोग करने से पहले रिसर्च शुरू की. ये जानने के लिए कि कौन-सा प्लास्टिक रीसाइक्लेबल है और कौन सा नहीं है. उन्होंने कूड़ा बीनने वालों से प्लास्टिक को अलग-अलग करके देने को कहा, लेकिन कूड़ा बीनने वालों ने मना कर दिया. क्योंकि मानवीर उन्हें कूड़े में से प्लास्टिक को अलग करने पर हर दिन कितने रुपये दे सकते थे? पूरा दिन कूड़े से प्लास्टिक अलग करके वे क्यों ही देंगे. इसके बाद उन्होंने लोगों के घर-घर जाकर प्लास्टिक इकट्ठा करने का फैसला लिया. इसमें घर में रोज उपयोग में आने वाली चीजों की पन्नियों को इकट्ठा किया. जैसे चिप्स, बिस्किट, मैगी और मसाले इन सब तरह की प्लास्टिक को इकट्ठा कर के अपने काम में इस्तेमाल करना शुरू किया.
लोग मुंह पर दरवाजा बंद कर देते थे
मानवीर बताते हैं कि शुरुआत में जब मैं लोगों के घर प्लास्टिक इकट्ठा करने जाता था. तो लोग मुझे सेल्समैन समझकर दरवाजा बंद कर देते थे. लेकिन कुछ लोगों ने मेरी बात सुनी और समझी और मेरे काम की सराहना भी की. मैंने लोगों से प्लास्टिक इकट्ठा करने के लिए उनके घरों में ‘हैबिट चेंजर बॉक्स’ के नाम से एक-एक बॉक्स ले जाकर रख दिया. जिससे की लोग उसमें रोज निकलने वाला प्लास्टिक का कचरा डाल देते थे. और मैं रोज उसे कलेक्ट कर लेता था. प्लास्टिक को इकट्ठा करके उसे साफ करना और फिर सुखा कर उसे अपने काम में उपयोग करता था. उस प्लास्टिक से पेपर मेशी ( PAPER MASH-AY ) यानी कि एक हार्ड मैटेरियल और बाकी प्लास्टिक का इस्तेमाल करके आर्ट बनाता था.
प्लास्टिक इकट्ठा करने के लिए मानवीर घर-घर जाते थे
एक आर्ट बनाने में 2 से 3 महीने लगते हैं
वो बताते हैं कि प्लास्टिक इकट्ठा करके उन्हें अलग करके साफ करना और फिर आर्ट बनाना इसमें काफी समय लगता है. ये काफी चैलेंजिंग होता है. एक कलाकृति बनाने में लगभग 40 से 50 हजार रैपर्स लगते हैं. इसे बनाने में उन्हें लगभग दो से तीन महीने का समय लग जाता है. हालांकि उन्होंने 4-5 दिन में भी इंस्टॉलेशन बनाए हैं. उनका कहना है कि लोगों को जो प्लास्टिक दिखता है उसमें मुझे अपनी पेंटिंग या इन्सटॉलेशन के रंग दिखाई देते हैं. वो अपने ही कॉलेज में विजिटिंग प्रोफेसर भी हैं. कॉलेज में बच्चे उनके इस काम में बड़ी संख्या में भाग लेते हैं. उन्हें दिल्ली ही नहीं बल्कि देश की कई जगहों से प्लास्टिक मिलता है.
स्कूलों में लगाए ‘हैबिट चेंजर बॉक्स’
वो बताते हैं कि प्लास्टिक के पैकेट के पीछे 07 नंबर लिखा होता है जिसका मतलब होता है. यह प्लास्टिक रिसाइकल नहीं हो सकता. कचरा बीनने वाले भी इसे नहीं उठाते हैं. लेकिन मैं इसका उपयोग अपने काम में कर लेता हूं. मैंने स्कूल के बच्चों को भी प्लास्टिक न फेंकने लिए प्रेरित किया. अपने ही स्कूल में साल 2020 में ‘हैबिट चेंजर बॉक्स’ लगाया. जिससे कि बच्चे प्लास्टिक के रैपर उसमें डालकर इकट्ठा करें. इसके बाद भुवनेश्वर और ओडिशा के दो स्कूलों में भी ‘हैबिट चेंजर बॉक्स’ लगाया है.
एक आर्ट बनाने में दो से तीन महीने का समय लगता है.
लोगों को सिखाते हैं ये आर्ट
मानवीर बताते हैं कि उनके साथ एक पूरी टीम काम करती है. वो अब तक कई लोगों को और महिलाओं को ट्रेनिंग दे चुके हैं. जिन महिलाओं को ट्रेन किया है उन्हें इकट्ठा किया हुआ प्लास्टिक देता हूं. जिससे कि खाली वक्त में इससे कढ़ाई-बुनाई करती हैं और मुझे दे देती हैं. वो वर्कशॉप करके भी लोगों को इसके बारे में बताते हैं. उन्होंने हाल ही में इल्लाही ट्रेवल्स के साथ एक टूर किया था. जिसमें कि स्पीति वैली पहुंचकर वहां प्लास्टिक से एक स्नो लैपर्ड बनाया था. उनका काम लगातार चलता रहता है. वो अब तक 600 किलो प्लास्टिक अपसाइकल कर चुके हैं.
अब तक इतनी विदेशी आर्ट गैलरियों में मिली जगह
मानवीर को इस काम के चलते UNDP (यूनाइटेड नेशन डेवेलपमेंट प्रोग्राम) की तरफ से सराहना मिली. उन्हें इस आर्ट वर्क के लिए साल 2017, 2018 और 2019 में प्रफुल्ल धौनाकर अवार्ड से सम्मानित किया गया. साल 2018 में सिक्योर हिमालय कॉम्पटीशन में मिनिस्ट्री ऑफ़ कल्चर यंग आर्टिस्ट स्कॉलरशिप मिली थी. इसके अलावा जनवरी 2020 में अबूधाबी राष्ट्रीय प्रदर्शनी केंद्र और फरवरी 2020 में अबूधाबी के मनारत अल सादियात सांस्कृतिक केंद्र में आर्ट प्रदर्शित करने का मौका मिला. इसके साथ ही वे कई अन्य आर्ट गैलरियों में अपनी आर्ट प्रदर्शित कर चुके हैं. वो अपनी आर्ट के जरिए लोगों को प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम से करने के लिए प्रेरित करते हैं और लोगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक की जिम्मेदारी लेने को कहते हैं.
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