श्रीलंकाई बंदरगाह पर आ रहा चीन का जासूस जहाज भारत ने क्यों जताई है आपत्ति जानें
श्रीलंकाई बंदरगाह पर आ रहा चीन का जासूस जहाज भारत ने क्यों जताई है आपत्ति जानें
द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, हंबनटोटा बंदरगाह व्यावसायिक रूप से एक अव्यावहारिक परियोजना है, जिसे श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने चीन से ऋण लेकर अपने गृह जिले में बनाया था. बाद में मैत्रीपाला सिरिसेना और रानिल विक्रमसिंघे की सरकारें इस बंदरगाह को 2017 में 99 साल के पट्टे पर चीन को सौंपने के लिए मजबूर हुईं, क्योंकि श्रीलंका, बीजिंग को 1.1 अरब डॉलर का कर्ज चुकाने में असमर्थ था.
नई दिल्लीः चीन का एक बैलिस्टिक मिसाइल एंड सैटेलाइट ट्रैकिंग शिप 16 अगस्त से, एक सप्ताह के लिए श्रीलंका के दक्षिणी तट पर स्थित हंबनटोटा बंदरगाह पर डॉक करेगा. पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रीलंका ने पहले भारत द्वारा जताई गई चिंताओं के बाद चीन से अपने हाई टेक पोत के हंबनटोटा बंदरगाह आगमन को स्थगित करने के लिए कहा था. लेकिन शनिवार को कोलंबो ने इस चाइनीज जहाज को अपने बंदरगाह पर डॉकिंग के लिए मंजूरी दे दी.
द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, हंबनटोटा बंदरगाह व्यावसायिक रूप से एक अव्यावहारिक परियोजना है, जिसे श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने चीन से ऋण लेकर अपने गृह जिले में बनाया था. बाद में मैत्रीपाला सिरिसेना और रानिल विक्रमसिंघे की सरकारें इस बंदरगाह को 2017 में 99 साल के पट्टे पर चीन को सौंपने के लिए मजबूर हुईं, क्योंकि श्रीलंका, बीजिंग को 1.1 अरब डॉलर का कर्ज चुकाने में असमर्थ था. श्रीलंका ने बंदरगाह के आसपास की 15,000 एकड़ जमीन भी चीनियों को सौंप दी. श्रीलंकाई अधिकारियों ने उस समय कहा था कि चीन पर उनका कुल कर्ज करीब 8 अरब डॉलर है.
चाइनीज जासूसी जहाज ‘युआन वांग 5’ का काम क्या है?
यह जहाज एक अनुसंधान एवं सर्वेक्षण पोत है, जिसे ‘युआन वांग 5’ कहा जाता है. चीन अपने युआन वांग श्रेणी के जहाजों का उपयोग उपग्रह, रॉकेट और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) के प्रक्षेपण को ट्रैक करने के लिए करता है. चीन के पास इस तरह की 7 ट्रैकिंग जहाज हैं, जो पूरे प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागरों में काम करने में सक्षम हैं. ये जहाज बीजिंग के भूमि-आधारित ट्रैकिंग स्टेशनों की पूरक हैं.
अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, इन स्पेस सपोर्ट वाली ट्रैकिंग जहाजों को पीपल्स लिबरेशन आर्मी (People’s Liberation Army) के सामरिक समर्थन बल (Strategic Support Force) द्वारा संचालित किया जाता है, जो ‘पीएलए के रणनीतिक स्थान, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक, सूचना, संचार, मनोवैज्ञानिक युद्ध मिशन और क्षमताओं को केंद्रीकृत करने के लिए स्थापित एक थिएटर कमांड स्तरीय संगठन है.’
‘युआन वांग 5’ चीन के जियांगन शिपयार्ड में बनाया गया था और इसने सितंबर 2007 में सेवा में प्रवेश किया. 222 मीटर लंबे और 25.2 मीटर चौड़े इस पोत में ट्रांसोसेनिक एयरोस्पेस ऑब्जर्वेशन के लिए अत्याधुनिक ट्रैकिंग तकनीक है. इसका अंतिम निगरानी मिशन पिछले महीने चीन के ‘लॉन्ग मार्च 5बी’ रॉकेट का प्रक्षेपण था. यह पोत हाल ही में चीन के तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन के पहले लैब मॉड्यूल के प्रक्षेपण की समुद्री निगरानी में भी शामिल था.
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव श्रीलंका (BRISL) की वेबसाइट के अनुसार, चीन के युआन वांग श्रेणी के जहाजों का विकास 1965 में प्रीमियर झोउ एनलाई द्वारा प्रस्तावित किया गया था, और 1968 में अध्यक्ष माओ जेडोंग ने इसके निर्माण की अनुमति दी थी. युआन वांग 1, 2, 3, और 4 जहाजों ने नवंबर 1999 में दुनिया के महासागरों में चार बिंदुओं से शेनझो अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण को ट्रैक किया, और युआन वांग 7 का इस्तेमाल 2016 में शेनझोउ 11 और तियांगोंग 2 अंतरिक्ष प्रयोगशाला के मानवयुक्त प्रक्षेपण मिशन को ट्रैक करने के लिए किया गया था.
चाइनीज जहाज हंबनटोटा बंदरगाह पर क्यों डॉक कर रहा?
इस महीने की शुरुआत में चाइनीज जहाज के हंबनटोटा जाने की खबर सामने आई थी. BRISL ने कहा था कि 11 अगस्त को युआन वांग 5, हंबनटोटा बंदरगाह पर प्रवेश करेगा और संभवतः 17 अगस्त के बाद रवाना होगा. पीटीआई की 13 अगस्त की रिपोर्ट के अनुसार, जहाज हंबनटोटा से 600 समुद्री मील पूर्व में स्थित था, और अब इसे 16 अगस्त को बंदरगाह पर प्रवेश करने के लिए पुनर्निर्धारित किया गया है.
बीआरआईएसएल ने पहले अपनी वेबसाइट पर कहा था, ‘युआन वांग-5, अगस्त और सितंबर के दौरान हिंद महासागर क्षेत्र के उत्तर पश्चिमी हिस्से में चीन के उपग्रहों के सैटेलाइट कंट्रोल एंड रिसर्च ट्रैकिंग का संचालन करेगा. युआन वांग-5, की हंबनटोटा बंदरगाह की यात्रा श्रीलंका और क्षेत्रीय विकासशील देशों के लिए अपने स्वयं के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के बारे में सीखने एवं विकसित करने का एक उत्कृष्ट अवसर होगा.’
चीन के इस कदम को लेकर भारत ने क्यों व्यक्त की है चिंता?
युआन वांग-5 एक शक्तिशाली ट्रैकिंग पोत है, जिसकी महत्वपूर्ण हवाई पहुंच कथित तौर पर लगभग 750 किमी है. इसका अर्थ है कि केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कई बंदरगाह चीन के रडार पर हो सकते हैं. रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि चीन द्वारा अपने इस ट्रैकिंग शिप के जरिए दक्षिण भारत में कई महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की जासूसी किए जाने का खतरा हो सकता है.
इसके बारे में बात करते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कुछ दिन पहले कहा था, ‘हम इस जहाज की अगस्त में हंबनटोटा के प्रस्तावित यात्रा की रिपोर्ट से अवगत हैं. सरकार भारत की सुरक्षा और आर्थिक हितों से संबंधित किसी भी डेवलपमेंट की सावधानीपूर्वक निगरानी करती है और उनकी सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने व जरूरी उपाय करने के लिए प्रतिबद्ध है.’
रॉयटर्स की रिपोर्ट मुताबिक, भारत की इस प्रतिक्रिया के जवाब में चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था, ‘हमें उम्मीद है कि संबंधित पक्ष बीजिंग की समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान गतिविधियों को सही ढंग से देखेंगे और रिपोर्ट करेंगे. साथ ही सामान्य और वैध समुद्री गतिविधियों में हस्तक्षेप करने से परहेज करेंगे.’ गत 8 अगस्त को, चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि कुछ देशों द्वारा श्रीलंका पर दबाव बनाने के लिए तथाकथित सुरक्षा चिंताओं का हवाला देना पूरी तरह से अनुचित है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने 12 अगस्त को चीन की प्रतिक्रिया के बारे में पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा था, ‘हम आक्षेपों को खारिज करते हैं. श्रीलंका एक संप्रभु देश है और अपने स्वतंत्र निर्णय लेता है. जहां तक हमारी सुरक्षा चिंताओं के संबंध में बात है…देखिए, यह प्रत्येक देश का एक संप्रभु अधिकार है. हम अपने हित में सर्वोत्तम निर्णय लेंगे. यह स्वाभाविक रूप से इस क्षेत्र में मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखता है, विशेष रूप से हमारे सीमावर्ती क्षेत्रों में.’
भारत के लिए क्या है हंबनटोटा बंदरगाह का सामरिक महत्व?
हंबनटोटा एक गहरे समुद्र का बंदरगाह है. यह श्रीलंका का दूसरा सबसे बड़ा पोर्ट है, और दक्षिण पूर्व एशिया को अफ्रीका और पश्चिम एशिया से जोड़ने वाले मार्ग पर स्थित है. चीन के लिए, यह बंदरगाह उसके ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट ‘ में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है. इस बंदरगाह के विकास को बड़े पैमाने पर चीन द्वारा वित्त पोषित किया गया था, और 2017 में इसके अधिग्रहण को लेकर ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने एक खोजी रिपोर्ट में वर्णित किया था, कि कैसे दुनिया भर में प्रभाव हासिल करने के लिए चीन छोटे देशों को ‘ऋण और सहायता’ का महत्वाकांक्षी उपयोग करके अपनी जाल में फंसाता है. श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह का बीजिंग द्वारा अधिग्रहण इसका सबसे ज्वलंत उदाहरणों में से एक है. 2018 में सामने आई रिपोर्ट में बताया गया था कि चीन ने पिछले एक दशक में दुनिया भर में कम से कम 35 बंदरगाहों को वित्तपोषित करने में मदद की है.
‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की रिपोर्ट में अज्ञात भारतीय अधिकारियों के हवाले से यह आशंका व्यक्त की गई थी कि, श्रीलंका आर्थिक मोर्चे पर इतना संघर्ष कर रहा है कि चीन की सरकार उसे ऋण से राहत के बदले हंबनटोटा बंदरगाह जैसी संपत्ति को हासिल करने में सक्षम हो सकती है. हालांकि, लीज एग्रीमेंट में यह शर्त शामिल है कि चीन अपनी सैन्य गतिविधियों के लिए हंबनटोटा बंदरगाह का तब तक इस्तेमाल नहीं कर सकता, तब तक श्रीलंका ऐसा करने के लिए उसे मंजूरी न दे. श्रीलंका का लंबे समय से प्रत्याशित आर्थिक पतन इस वर्ष हुआ, जिसने राजपक्षे भाइयों को सत्ता से बाहर कर दिया. ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की रिपोर्ट में भारत के पूर्व विदेश सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन के हवाले से कहा गया है, ‘श्रीलंका के लिए हंबनटोटा में चीन के निवेश को सही ठहराने का एकमात्र तरीका राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से है, कि वे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को अंदर आने देंगे.’
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Tags: China news, Sri lanka, Trending newsFIRST PUBLISHED : August 14, 2022, 08:49 IST