बलिया: आजादी का जुनून बलिया के बागी लोगों के दिलों में इस कदर था कि ब्रिटिश शासकों को भी झुकना पड़ा. इस बागी जिले ने 5 साल पहले ही आजादी का स्वाद चख लिया था और यहां के स्वतंत्रता सेनानियों का साहस और संघर्ष आज भी इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. बलिया में 9 अगस्त से 25 अगस्त तक की घटनाएं हर देशभक्त के दिल में एक खास जगह रखती हैं और इन घटनाओं के गीत आज भी लोगों की जुबां पर हैं.
प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने लोकल 18 को बताया कि स्वतंत्रता संग्राम में बलिया के छात्रों का योगदान अद्वितीय था. उन्होंने कहा, “बढ़ चले छात्र स्कूल चले, आजादी के अरमान लिए. बन बंधु प्रहलाद चले, करतल में कोमल प्राण लिए. देखा सबने इन बच्चों में, कितना पय कितना पानी है. अंग्रेजों भारत छोड़ो के, नारे की बलिया एक अमिट निशानी है. जर्जर तन बूढ़े भारत की, यह मस्ती भरी जवानी है.” यह कविता आज भी प्राइमरी और मिडिल स्कूल के बच्चों की जुबां पर होती है, और उनके योगदान की याद दिलाती है.
स्कूली बच्चों पर थानेदार ने दौड़ाया था घोड़ा…
डाॅ. कौशिकेय ने आगे बताया कि सिकन्दरपुर के चेतन किशोर निवासी राम नगीना राय, जो छोटे स्कूली बच्चों के जुलूस के साथ मिडिल स्कूल सिकन्दरपुर पहुंचे थे, ने स्वतंत्रता के प्रति लोगों में जोश भर दिया था. ये बच्चे तिरंगा लिए हुए आजादी के गीत गाकर लोगों को जुलूस में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहे थे. जब ये छात्र कस्बे की ओर बढ़े, तब सिकन्दरपुर थाने के थानेदार अशफ़ाक अहमद ने ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति अपनी निष्ठा दिखाते हुए छात्रों के जुलूस पर घोड़ा दौड़ा दिया, जिससे कई बच्चों के हाथ-पैर कुचलकर टूट गए.
गिरफ्तार कर जेल भेजा
इस क्रूरता के बावजूद, बच्चों ने अपने संघर्ष को जारी रखा. अंततः, राम नगीना राय को गिरफ्तार कर बलिया जेल भेज दिया गया. यह घटना जनपद बलिया में अगस्त क्रांति के रूप में 9 अगस्त से 25 अगस्त तक चलती रही, और आज भी इन घटनाओं की यादें बुजुर्गों के दिलों में ताजा हैं.
Tags: History of India, Local18FIRST PUBLISHED : August 14, 2024, 13:59 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed