आज भी टपक रहा माउंटेन मैन का घरहर साल महोत्सव के नाम पर खर्च होते हैं इतना
आज भी टपक रहा माउंटेन मैन का घरहर साल महोत्सव के नाम पर खर्च होते हैं इतना
माउंटेन मैन को कौन नहीं जानता. वही माउंटेन मैन जिन्होंने अकेले 22 वर्षों तक छेनी और हथौड़ी से एक पहाड़ का सीना चीर कर रास्ता बनाया था. जी हां, हम बात कर रहे हैं बिहार के गया जिले के गहलोर के रहने वाले दशरथ मांझी की. दशरथ मांझी ने जो काम किया है आज उसकी मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है.
गया : माउंटेन मैन को कौन नहीं जानता…वही माउंटेन मैन जिन्होंने अकेले 22 वर्षों तक छेनी और हथौड़ी से एक पहाड़ का सीना चीर कर रास्ता बनाया था. जी हां, हम बात कर रहे हैं बिहार के गया जिले के गहलोर के रहने वाले दशरथ मांझी की. दशरथ मांझी ने जो काम किया है. आज उसकी मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है. रास्ता बनने के बाद जब उनकी एक पहचान बनी तो सरकार की नजर इन पर गई और धीरे-धीरे इनके इलाके में विकास शुरू हुई. आज उनके गांव में अस्पताल, स्कूल, थाना, दशरथ मांझी स्मृति भवन के अलावे सामुदायिक भवन बन चुका हैं और उनके नाम से हर साल गहलोर में दशरथ मांझी महोत्सव का भी आयोजन किया जाता है.
दशरथ मांझी की पहचान बनने के बाद उनके गांव में कई नेता, राजनेता और अभिनेता तक पहुंचे. कई लोगों ने इन्हें मदद करने का दावा किया था. दशरथ मांझी के नाम से फिल्म और कई शो बनाए गए लेकिन किसी ने भी इनके परिवार की मदद नहीं की. फिल्म बनाने के दौरान उनके परिवार से वादा किया गया था कि उन्हें फिल्म का दो प्रतिशत हिस्सा दिया जाएगा. लेकिन 50 हजार रुपए देकर इन्हें फुसला दिया गया. कुछ दिनों तक पप्पू यादव ने उनके परिवार की मदद की थी लेकिन कोरोना कल के बाद से उन्होंने भी पैसा देना बंद कर दिया.
दशरथ मांझी के दुनिया को अलविदा कहे 17 साल पूरे हो गए हैं लेकिन उनके परिवार के हालात आज भी जस के तस हैं. दशरथ मांझी के इकलौते पुत्र भागीरथ मांझी और इनका परिवार आज भी मजदूरी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. भागीरथ मांझी और इनकी बहन का पूरा परिवार एक साथ रहते हैं. परिवार में लगभग 20 से 25 लोग हैं. लेकिन उनके पास रहने के लिए एक मकान तक नहीं है.
आवास योजना के तहत ₹20000 दिया गया था और उसी से तीन कमरे बनाए गए थे लेकिन वह मकान आज जर्जर स्थिति में हो गई है. ऐसे में इनका परिवार फुस और मिट्टी के बने घरों में रह रहे हैं. अभी बरसात का दिन है तो उनके घरों में बरसात का पानी टपक रहा है जिस कारण इन्हें काफी परेशानी हो रही है. यहां तक की आज भी इनका परिवार लकड़ी से चूल्हे पर खाना बना रहा है.
दशरथ मांझी के पुत्र भागीरथ मांझी बताते हैं कि 1991-92 में आवास बनाने के लिए ₹20000 दिया गया था उसके बाद से लेकर अभी तक सरकार की कोई मदद हमें नहीं मिली है. हर साल दशरथ मांझी महोत्सव के नाम पर जिला प्रशासन 15 से 20 लख रुपए खर्च करती है लेकिन घर बनाने के लिए हमें कोई मदद नहीं करती. आज हमारे घर में बरसात का पानी टपक रहा है लेकिन कोई देखने वाला नहीं है. मेरे पिताजी के नाम से सिर्फ राजनीति किया जा रहा है. पिताजी के नाम से गहलोर में शहीद स्मारक बनाया गया, स्मृति भवन बनाया गया, शौचालय बनाया गया लेकिन इसके साफ-सफाई के लिए किसी कर्मचारी की प्रतिनियुक्ति नहीं की गई.
Tags: Bihar News, Gaya news, Local18FIRST PUBLISHED : August 15, 2024, 07:01 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed