आंखों पर बंधी पट्टी खोलिए हुजूर बरेली के झुमके की तरह यहां गिर रहे हैं पुल
आंखों पर बंधी पट्टी खोलिए हुजूर बरेली के झुमके की तरह यहां गिर रहे हैं पुल
ब्यूरोक्रेट्स और ठेकेदारों के द्वारा बिहार में हो रहे लूट कब बंद होगी? क्या बिहार के हर टेंडर में मंत्री, अधिकारी, सांसद, विधायक, डीएम और इंजीनियरों के कमीशन पहले से फिक्स रहते हैं? बिहार के कई मलाईदार मंत्रालयों में मंत्री और सचिवों के बदलने के बाद भी इनसे जुड़े कर्मचारियों और पर्सनल स्टॉफ के तबादले क्यों सालों से बंद हैं? क्या ये कर्मचारी और सचिव स्तर के अघिकारियों के पर्सनल स्टॉफ मंत्रालय में बैठकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं?
नई दिल्ली. बिहार में पुल गिरने की एक के बाद एक घटनाओं ने ‘नीतीश राज’ को सवालों के घेरे में ला दिया है. सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका ने बिहार में ब्यूरोक्रेसी और ठेकेदारों के नेक्सस का पोल खोल दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो हाल के दिनों में देश के किसी भी दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार में सबसे ज्यादा पुल, सड़क, बांध और बिल्डिंग धाराशायी हुए हैं. लोग कहने लगे हैं कि बरेली में जितना झुमका नहीं गिरा, बिहार में उतना पुल गिर रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या ‘नीतीश राज’ में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया है? कौन लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं?
जनता सवाल कर रही है कि ब्यूरोक्रेट्स और ठेकेदारों के द्वारा बिहार में हो रहे लूट कब बंद होगी? क्या बिहार के हर टेंडर में मंत्री, अधिकारी, सांसद, विधायक, डीएम और इंजीनियरों के कमीशन पहले से फिक्स रहते हैं? बिहार के कई मलाईदार मंत्रालयों में मंत्री और सचिवों के बदलने के बाद भी इनसे जुड़े कर्मचारियों और पर्सनल स्टॉफ के तबादले क्यों सालों से बंद हैं? क्या ये कर्मचारी और सचिव स्तर के अघिकारियों के पर्सनल स्टॉफ मंत्रालय में बैठकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं? क्यों बिहार में 25 प्रतिशत तक नीचे जाने वाले ठेकेदारों को भी टेंडर दे दिया जाता है? क्या टेंडर की फाइनेंशियल और टेक्निकल प्रक्रिया में अधिकारियों और ठेकेदारों में मिलभगत रहती है?
क्यों गिर रहे हैं बिहार में धराधर पुल?
जानकारों की मानें तो वैसे तो 10 प्रतिशत से बिलो जाने पर ठेकेदारों को टेंडर नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन बिहार में ऐसा हो रहा है. इसी का नतीजा है कि यहां पुल, सड़क, बिल्डिंग और बांध गिरने की घटनाएं बढ़ गई हैं. जानकारों की मानें तो बिहार में बरसात का मौसम शुरू होते ही असली खेला शुरू हो जाता है. जल संसाधन जैसे विभागों में ठेकेदारों की आवाजाही बढ़ जाती है और कुकुरमुत्ते की तरह हर साल ठेकेदारों का रजिस्ट्रेशन होने लगता है. आपको बता दें कि इस मौसम में आपदा आने पर अधिकारी बिना टेंडर जारी किए भी मनपसंद ठेकेदारों को कमीशन लेकर करोड़ों रुपये का टेंडर जारी कर देते हैं. लेकिन, हर साल आपात स्थिति आती ही क्यों हैं?
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नगर विकास एवं आवास, स्वास्थ्य, पंचायती राज, पथ निर्माण, लघु जल संसाधन, लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण, भवन निर्माण, परिवहन, शिक्षा, ग्रामीण विकास, उर्जा और ग्रामीण कार्य जैसे न जाने कितने मंत्रालयों में ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत से टेंडर प्रक्रिया प्रभावित किया जाता है. अच्छे काम करने वाले ठेकेदारों ने काम करना बंद कर दिया है. इनकी जगह काम की गुणवत्ता से समझौता करने वाले कॉन्ट्रेक्टरों की एक नई फौज बिहार में पनपी है, जिसको सत्ता पक्ष का आश्रय मिलता है.
10-11 दिन में ही गिर गए 15 से ज्यादा पुल
सुप्रीम कोर्ट में बिहार में पुल गिरने की कई घटनाओं के बाद एक याचिका दाखिल की गई है, जिसमें जिक्र किया गया है कि बिहार में हाल के वर्षों में एक के बाद एक 15 से ज्यादा पुल ढह गए हैं. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में छोटे और बड़े पुलों के सरकारी निर्माण का स्ट्रक्चरल ऑडिट की मांग की गई है. इस याचिका में पिछले साल बिहार के भागलपुर के सुल्तानगंज में बन रहे गंगा नदी के पुल सहित कई पुलों का जिक्र किया गया है. इन पुलों की टेंडर प्रक्रिया पर कोर्ट में सवाल उठाए गए हैं.
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बिहार के कई मंत्रालयों के टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने वाले ठेकेदार अरविंद सिंह कहते हैं, ‘देखिए पुल गिरने की जहां तक बात है यह तो टेक्निकल प्रॉब्लम है. जहां तक टेंडर की बात है. ठेकेदार अब बिलो पर जाकर टेंडर लेना स्टार्ट कर दिया है. बिलो पर टेंडर लेगा तो समझिए काम की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा ही. कमीशन जो फिक्स है वह तो जाएगा ही. वो लोग तो लेबे ही करते हैं. ऐसे में ठेकेदार मटेरियल में ही चोरी करेगा न. कमीशन की भरपाई मटेरियल में चोरी कर ही ठेकेदार पूरा करता है. पाइलिंग की चोरी तो पकड़ी नहीं जाती है. मान लीजिए 20 मीटर, 30 मीटर गड्ढा है. ठेकेदार 15 मीटर किया या 25 मीटर किया और 5 मीटर चोरी कर लिया. देखिए, पाइलिंग पर अगर केयर किया जाए तो पुल गिरने की घटना में कमी आ जाएगी. बिहार में गिट्टी उपलब्ध नहीं है. बाहर से गिट्टी लेना पड़ता है और बाहर से अधिकारियों को कमीशन देकर ठेकेदार घटिया गिट्टी लेने का ऑर्डर पास करा लेता है. गिट्टी, सीमेंट और पानी की गुणवत्ता की कमी से भी पुल गिरता है.’
क्या कहते हैं ठेकेदार
सिंह आगे कहते हैं, ‘टेक्निकली टेंडर 10 प्रतिशत बिलो तक जाने के लिए बनता है. अगर कोई 10 प्रतिशत से नीचे जाता है और टेंडर लेता है तो समझिए यह गुनाह है. लेकिन, बिहार में ठेकेदार अब 15, 20, 25 प्रतिशत तक बिलो पर जा कर टेंडर ले रहे हैं. ये लोग चोरी नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? देखिए सरिया का रेट घटने वाला नहीं है, गिट्टी का रेट घटने वाला नहीं है, सीमेंट का रेट घटने वाला नहीं है. आप कैसे काम करेंगे आपको चोरी करने के आलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचेगा. इसमें काम गुणवत्ता से समझौता होता है और इस तरह के हादसे होते हैं. इसमें सबलोग शामिल होते हैं. मंत्रालय में बैठे अधिकारी, कर्मचारी, इंजीनियर और भी कई लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं. नीचे से लेकर ऊपर तक सब इसमें शामिल होते हैं.’
इधर, बिहार सरकार ने पुल गिरने की लगातार घटनाओं पर 15 इंजीनियरों पर कार्रवाई करते हुए सस्पेंड जरूर कर दिया है. लेकिन, इस खबर में जो प्रश्न उठाए गए हैं, बिहार सरकार को उस पर कार्रवाई करनी चाहिए. क्योंकि, यही बिहार की टेंडर प्रक्रिया की असली सच है.
Tags: Bihar News, Bridge Collapse, Chief Minister Nitish Kumar, IAS OfficerFIRST PUBLISHED : July 6, 2024, 18:06 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed