Exit Poll के नतीजों से अलग बिहार उपचुनाव पर क्या है ग्राउंड रिपोर्ट सटीक आकलन
Exit Poll के नतीजों से अलग बिहार उपचुनाव पर क्या है ग्राउंड रिपोर्ट सटीक आकलन
Bihar Upchunav Result: बिहार विधानसभा के लिए चार सीटों पर हुए उपचुनाव को लेकर जितनी उत्सुकता इस बार देखी जा रही है, उतनी शायद पहले कभी ना देखी गई हो. इसकी वजह है कि इसे उपचुनाव को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सेमिफाइनल कहा जा रहा है. इसमें जो लीड लेगा वह बुलंद हौसलों के साथ 2025 की लड़ाई लड़ पाएगा. वहीं, जो बैकफुट पर रह जाएगा उसे नए सिरे से अपनी रणनीति तैयार करनी पड़ेगी. ऐसे में न्यूज 18 वहां की ग्राउंड रिपोर्ट लेकर आपके सामने आया है जो स्थानीय पत्रकारों और विश्वेषकों की रिपोर्टिंग के आधार पर है.
पटना. महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए मतदान के बीच अब सबकी जिज्ञासा है कि इन दोनों प्रदेशों में कौन सा गठबंधन बाजी मारेगा. इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में भी आज 9 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं इसके परिणामों को लेकर भी लोगों की उत्सुकता बनी हुई है. वहीं, बिहार की जिन चार सीटों पर 13 नवंबर को मतदान हुए थे इसके रिजल्ट को लेकर भी लोगों में कौतूहल है.आम लोग एग्जिट पोल के नतीजों के साथ यह जान लेना चाहते हैं कि नतीजों को लेकर ग्राउंड रिपोर्ट क्या है. ऐसे में हम 23 नवंबर को आने वाले एक्चुअल परिणाम से पहले बिहार की तरारी, बेलागंज, इमामगंज और रामगढ़ विधानसभा सीटों के उपचुनाव के संभावित परिणाम का एक मोटा-मोटा आकलन ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर करते हैं.
बता दें कि तरारी, बेलागंज, इमामगंज और रामगढ़ की चारों सीटों पर 53% से अधिक मतदान हुए थे. इस चुनाव परिणाम पर इसलिए नजरें टिकी हुई है क्योंकि यहां की जीत हार से विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एक मोमेंटम बन जाएगा. जिसकी जीत होगी वह बुलंद हौसलों के साथ आगे की लड़ाई लड़ेगा और जिनकी हार होगी वह अपनी रणनीतियों पर विचार करने को मजबूर होगा. इनमें सबसे अधिक किसी सीट पर नजर टिकी हुई है तो वह है बेलागंज की सीट. तो आइये जानते हैं कि आरजेडी के मजबूत गढ़ बेलागंज का आंकलन क्या कहता है. इसके बाद आगे हम अन्य सीटों की भी चर्चा करेंगे.
बेलागंज में इंटैक्ट रहा MY या बिखर गया?
गया जिले की बेलागंज सीट पर लालू यादव के करीबी कहे जाने वाले आरजेडी के सुरेंद्र यादव सात बार विधायक रह चुके हैं और कई बार मंत्री भी रह चुके हैं. उनके 2024 में जहानाबाद से सांसद चुने जाने के बाद यह सीट खाली हुई थी. इस सीट पर उनके बेटे विश्वनाथ यादव ने चुनावी लड़ाई लड़ी है. इस सीट पर आंकलन करें तो यहां जो सबसे बड़ा फैक्टर उभरकर आया है वह जनसुराज पार्टी का है. दरअसल, यहां प्रशांत किशोर की जान सुराज पार्टी के कारण मुस्लिम यादव गठजोड़ यानी माय समीकरण टूटा हुआ दिख रहा है. कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर परिवारवाद को प्रश्रय देना भी राजद के लिए थोड़ी चुनौती भरा है. मुस्लिम मतों में बिखराव की खबरें हैं, वहीं ऐसा भी कहा जा रहा है कि जन सुराज के मोहम्मद अमजद को अच्छी खासे मत मिले हैं.
यादव बनाम यादव में मुस्लिम मतों की टूट!
वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के उम्मीदवार जमीन अली खान ने भी राजद की सियासी जमीन (माय समीकरण) में सेंध लगाई है. जबकि, जदयू ने जबरदस्त गेम किया था क्योंकि उसने भी यहां से यादव जाति की ही बड़ी नाम वाली मनोरमा देवी यादव को उम्मीदवार बना दिया था. जाहिर तौर पर मनोरमा देवी यादव के पक्ष में भी यादवों के बहुत वोट गए हैं. सत्ताधारी पार्टी से होना और नीतीश कुमार का चेहरा और बीजेपी का परंपरागत वोट उनके लिए लाभ लेकर आ सकता है. अब यादव और मुस्लिम मतों के बिखराव के अलावा यहां अन्य जातियों की गोलबंदी और वोट शिफ्टिंग पर काफी कुछ निर्भर करेगा. हालांकि, त्रिकोणीय या फिर कुछ-कुछ चतुष्कोणीय मुकाबले में पलड़ा मनोरमा देवी का फिलहाल भारी लग रहा है.
इमामगंज की जनता ने क्या बनाया मन?
एक बड़ी सीट गया जिले की इमामगंज है. जहां हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी की बहू दीपा मांझी उम्मीदवार हैं. दीपा मांझी मुसहर समुदाय से आती हैं और उनके ससुर जीतन राम मांझी केंद्रीय मंत्री हैं. दीपा मांझी के पति संतोष मांझी बिहार सरकार में मंत्री हैं. निश्चित रूप से रसूख में कोई कमी नहीं है, लेकिन जमीन पर तो जीत जनता दिलाता है. स्थानीय पत्रकारों के अनुसार, यहां त्रिकोणीय मुकाबला बन पड़ा है. इमामगंज में जन सुराज के उम्मीदवार जितेंद्र कुमार पासवान जाति से आते हैं. वहीं, राजद ने मांझी जाति के रोशन मांझी को खड़ा कर दिया था. अब यहां पासवानों की संख्या ऐसी है जो जबरदस्त सियासी उलट फेर कर सकती है. लेकिन, जीतन राम मांझी का अपना चेहरा, एनडीए का उनके साथ होना और नीतीश कुमार का उनके लिए प्रचार करना… यह सब दीपा मांझी के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करता है. स्थानीय जानकार कहते हैं कि त्रिकोणीय मुकाबला तो है, लेकिन आगे दीपा मांझी को एज है.
रामगढ़ के रण में नेक टू नेक फाइट
बिहार की तीसरी बड़ी सीट में से रामगढ़ विधानसभा सीट है और यहां भी जबरदस्त मुकाबला है. बेलागंज और इमामगंज की तरह ही विरासत की लड़ाई यहां भी है जिससे स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं में थोड़ी बहुत नाराजगी भी है. दरअसल, यहां राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे और सांसद सुधाकर सिंह के छोटे भाई अजीत सिंह आरजेडी के उम्मीदवार हैं. यह इलाका इस परिवार का प्रभाव इस क्षेत्र वाला माना जाता है. लेकिन, यह भी सत्य है कि हर बार यहां जीत हार का अंतर बहुत ही काम रहा है. ऐसे में कार्यकर्ताओं की थोड़ी-बहुत नाराजगी और मतों में बिखराव रामगढ़ का सियासी गेम चेंज कर सकता है.
बीएसपी ने एनडीए का बिगाड़ा खेल या आरजेडी को पहुंचाई चोट?
बहुजन समाज पार्टी के कैंडिडेट के आने से थोड़ा बहुत राजद की स्थिति कमजोर हुई लगती है. क्योंकि दलित वोट इस इलाके में राजद के पक्ष में जाता रहा है, लेकिन बीएसपी के रहते इसका बड़ा हिस्सा शायद उधर भी शिफ्ट कर गया हो. वहीं, अब ऐसे में अशोक सिंह बीजेपी से राजपूत उम्मीदवार हैं और सुधाकर सिंह के छोटे भाई अजीत सिंह भी राजपूत उम्मीदवार हैं. बसपा के पिंटू यादव के चुनावी मैदान में आने से मुस्लिम यादव समीकरण में भी थोड़े बहुत बिखराव के चांस हैं और ऐसे में मुकाबला तो त्रिकोणीय कहा जा रहा है. लेकिन, यहां की बाजी किसी भी पक्ष में जा सकती है. हालांकि, स्थानीय पत्रकार यहां भाजपा के लिए अधिक संभावना जताते हैं.
तरारी में तगड़ी लड़ाई, कौन मारेगा बाजी?
चौथी सीट तरारी विधानसभा की है जो वामपंथी पार्टी भाकपा माले का गढ़ कही जाती है. लेकिन, यहां बाहुबली सुनील पांडे के बेटे विशाल प्रशांत विरासत की लड़ाई आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं. निश्चित तौर पर इस क्षेत्र में अगड़े पिछड़े के संघर्ष के बीच नीतीश कुमार का चेहरा एक बहुत बड़ा फैक्टर है. हालांकि, 2024 में आरा से सुदामा प्रसाद सांसद बने थे और वह भी भाजपा के कद्दावर आरके सिंह को मात देकर. इस बार भाकपा माले ने तरारी विधानसभा सीट से राजू यादव को अपना उम्मीदवार बना दिया.
क्या नीतीश कुमार का फेस करेगा काम?
अब यहां मुकाबला दिलचस्प है, लेकिन स्थानीय जानकारों की मानें तो जहां राजू यादव भाकपा माले के लिए जीत की हैट्रिक लगाने को तैयार बैठे हैं. वहीं, विशाल प्रशांत भी विरासत की लड़ाई आगे बढ़ाने के लिए पूरी लड़ाई में हैं. अब कामयाबी किस मिलेगी यह देखना दिलचस्प है, लेकिन स्थानीय जानकार कहते हैं कि नीतीश कुमार फैक्टर बड़े काम का है. दरअसल, अगड़े पिछड़े की लड़ाई में यहां नीतीश कुमार का चेहरा पिछड़े वोटों के लिए कि एनडीए में शिफ्टिंग का काम करेगा. वहीं बीजेपी और जदयू का गठजोड़ वोटों का अलग ही समीकरण बनाता है जो जीत की राह की ओर लेकर जा सकता है.
Tags: Assembly by election, Bihar politicsFIRST PUBLISHED : November 20, 2024, 17:08 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed