हिंदू पिता को अपनी अविवाहित बेटी की जब हाईकोर्ट ने कही ये बात

Allahabad High Court: एकल न्यायाधीश ने यह टिप्पणी एक अवधेश सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें सितंबर 2023 के फैसले और प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, हाथरस के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उन्हें रुपये का भरण-पोषण प्रदान करने का निर्देश दिया गया था.

हिंदू पिता को अपनी अविवाहित बेटी की जब हाईकोर्ट ने कही ये बात
प्रयागराजः फैमिली कोर्ट द्वारा पत्नी और बेटी को भरण-पोषण के लिए हर महीने धनराशि देने के फैसले को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में पिता ने याचिका दायर की, जिसपर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश मनीष कुमार निगम की पीठ ने बड़ी टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 के तहत एक हिंदू पुरुष की अपनी बेटी, जो अविवाहित है और अपनी कमाई या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, का भरण-पोषण करने की वैधानिक जिम्मेदारी है. न्यायाधीश ने की बड़ी टिप्पणी लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की पीठ ने कहा, ‘हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20(3) बच्चों और वृद्ध माता-पिता के भरण-पोषण के संबंध में हिंदू कानून के सिद्धांतों की मान्यता के अलावा और कुछ नहीं है. धारा 20(3) अब एक हिंदू के लिए अपनी बेटी का भरण-पोषण करना वैधानिक दायित्व बनाती है, जो अविवाहित है और अपनी कमाई या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है.’ फैमिली कोर्ट के फैसले को दी गई थी चुनौती एकल न्यायाधीश ने यह टिप्पणी एक अवधेश सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें सितंबर 2023 के फैसले और प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, हाथरस के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उन्हें रुपये का भरण-पोषण प्रदान करने का निर्देश दिया गया था. फैमिली कोर्ट ने अवधेश को निर्देश दिया था कि वह अपनी पत्नी (उर्मिला) को 25,000/-प्रति माह और बेटी कु. गौरी नंदिनी को 20,000 रुपये प्रति महीने देंगे. 2009 में आवेदक को घर से निकाल दिया गया एक अन्य याचिका पत्नी और बेटी ने गुजारा भत्ता राशि बढ़ाने की मांग करते हुए दायर की थी. दोनों याचिकाओं को एक साथ जोड़ दिया गया और एक साथ निर्णय लिया गया. पत्नी का मामला यह था कि उसकी शादी 1992 में अवधेश सिंह से हुई थी. इसके बाद, उसके और उसकी बेटी के साथ पति और उसके परिवार के सदस्यों ने दुर्व्यवहार किया और अंततः, उसे 2009 में अपनी बेटी के साथ उसके वैवाहिक घर से बाहर निकाल दिया गया. फैसले से एक दिन पहले बालिग हो गई थी बेटी आवेदक-पत्नी के पास अपना और अपनी बेटी का भरण-पोषण करने का कोई साधन नहीं था, इसलिए उसने वैवाहिक घर से निकाले जाने की तारीख से गुजारा भत्ता की मांग करते हुए अदालत का रुख किया. यह आवेदन अक्टूबर 2009 में दायर किया गया था. दूसरी ओर, यह पति/पिता का मामला था कि गौरी नंदिनी (बेटी) का जन्म 25 जून 2005 को हुआ था और 26 सितंबर 2023 को लागू आदेश से पहले 25 जून 2023 को वह वयस्क हो गई थी. इसलिए याचिका के जरिए यह पेश किया गया कि पारिवारिक अदालत ने बेटी को भरण-पोषण देने में गलती की है, जो आदेश की तारीख पर बालिग थी और सीआरपीसी की धारा 125 के प्रावधानों के मद्देनजर भरण-पोषण की हकदार नहीं थी. Tags: Allahabad high courtFIRST PUBLISHED : August 15, 2024, 07:47 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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