क्यों किसी पार्टी को सिर पर नहीं बिठाता UP हर दो चुनावों के बाद बदलता है मूड
क्यों किसी पार्टी को सिर पर नहीं बिठाता UP हर दो चुनावों के बाद बदलता है मूड
पहले चुनावों के बाद से यूपी का मूड रहा है कि वो किसी भी पार्टी को सिर पर नहीं बिठाता. ये इस सूबे का सियासी इतिहास है कि हर दो चुनावों के बाद वो अपना मूड बदलता है और नई लकीर खींच देता है.
हाइलाइट्स 1952 के पहले चुनाव के बाद से ही है यूपी का ऐसा मूड जिस पार्टी को सूबे ने उठाया उसे नसीहत भी दी यूपी के चुनाव परिणाम देश की सियासी दिशा भी तय करते हैं
चंद महिने पहले अयोध्या में जिस राम मंदिर की भव्य प्राण प्रतिष्ठा हुई. जिसके इर्द-गिर्द की राजनीति भारतीय जनता पार्टी यानि बीजेपी पिछले ढाई दशकों से कर रही थी. वहां की फैजाबाद संसदीय सीट से बीजेपी हार गई है. बनारस का ये मूड नजर आया कि जहां जोशोखरोश से काशी विश्वनाथ का मंदिर और कॉरीडोर बना, वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिले वोट कम हो गए. ये वो यूपी है जिसने इस चुनाव में बीजेपी को पांच साल पहले की तुलना में आधी सीटों पर समेटने का बिगुल बजा दिया.
ये यूपी है, जो सियासी तौर पर देश का सबसे मुखर राज्य भी है. कभी यहां के सियासी सन्नाटे के भीतर बहुत कुछ पक रहा होता है तो ये कभी खुलेआम किसी पार्टी के पक्ष में फैसला सुना देता है. वैसे यूपी का सियासी इतिहास है कि ये जिस भी पार्टी को अकूत सीटें और वोट देकर सिर पर बिठाता है, उसे उतार भी देता है.
यूपी का ये सियासी तेवर और मूड आज से नहीं बल्कि 1952 में तब से है जब भारतीय लोकतंत्र की शुरुआत हुई. लिहाजा जो भी पार्टियां यूपी को अपने साथ मानती हैं और सोचती हैं कि ये तो अब उनकी लहर पर सवार है तो ये तुरंत उनकी इस खामख्याली को सुधार देता है.
जिस जमाने में नेहरू की तूती बोलती थी, उस जमाने में उत्तर प्रदेश ने उन्हें झटका दे दिया था. जब देश के दूसरे सूबे कांग्रेस के साथ खड़े दिखते थे, तब भी यूपी ने अलग बिगुल बजाया था.
आपातकाल के बाद देश में अगर इंदिरा गांधी के खिलाफ अगर किसी राज्य ने सबसे ज्यादा गुस्सा दिखाया था तो भी ये उतर प्रदेश था और जब उन्हीं इंदिरा की हत्या हुई तो सहानुभूति से उपजी लहर में रिकॉर्ड सीटें जिताने का काम भी इस सूबे ने किया. जब वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव हुए तो बीजेपी को 71 सीटें दिलाकर केंद्र में उसकी सरकार बनवाने का काम भी यूपी से ही हुआ.
ये उत्तर प्रदेश का इतिहास है कि वो दलों को तोलता मोलता है. तब रिजल्ट सुनाता है. ये कहना चाहिए कि नेहरू से लेकर मोदी तक इस प्रदेश ने उन्हें सिर पर बिठाया लेकिन उन्हें नसीहत भी भरपूर दी. आइए देखते हैं कि यूपी किस तरह अपना मूड बदलता रहा है.
1952 चुनाव – देश को नई नई आजादी मिली थी. देश में नई उमंग थी. पहली बार 1952 में तब देश में पहले चुनाव हुए. सीटों के लिहाज से सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश. जिसकी 86 सीटोंं के लिए चुनाव हुए. तब कांग्रेस ने 81 सीटें जीतीं. दूसरा कोई भी दल उसके आसपास नहीं था. नेहरू तब जननायक थे.
1957 चुनाव – दूसरा लोकसभा चुनाव आते आते यूपी में बदलाव की बयार कुछ हद तक दिखने लगी थी. अबकी बार एक झटके में जनता ने कांग्रेस की 11 सीटें उस दौर में हरा दीं, जबकि पूरे देश में अब भी नेहरू का जबरदस्त क्रेज था. कांग्रेस को 70 सीटें मिलीं तो जनसंघ को 02 सीटें.
1962 चुनाव – दो चुनावों के बाद साफ तौर पर यूपी का चुनावी मूड बदला हुआ था. तीसरे लोकसभा चुनाव आते आते यूपी ने अपना सियासी मूड और बदल दिया. देश अगर अभी भी कांग्रेस के साथ खड़ा दीख रहा था तो यूपी में कांग्रेस की सीटें और घटकर 62 रह गईं जबकि जनसंघ को 07 सीटें मिलीं.
1967 चुनाव – ये चुनाव इसलिए अलग था क्योंकि नेहरू के निधन के बाद सहानुभूति कांग्रेस और उनकी बेटी इंदिरा गांधी के लिए दीख रही थी. इसी वजह से 85 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस ने 73 सीटें जीतीं. साथ ही भारतीय जनसंघ को 12 सीटें जीतकर और मजबूत हुई. ये बात दिखाने के काफी थी कि यूपी को कांग्रेस की धुर विरोधी राजनीतिक धारा के साथ भी जा रही थी.
1971 – अबकी बार इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को तोड़कर कांग्रेस एस बना ली थी. तो यूपी ने पुरानी कांग्रेस को खारिज कर दिया और वह इंदिरा गांधी की नई कांंग्रेस के साथ खड़ी नजर आई. उसने इंदिरा की कांग्नेस को छप्पर फाड़ 73 सीटें दीं. जनसंघ को 04 सीटें मिलीं.
1977 – यूपी आपातकाल लगने से उबल रहा था. इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल को लेकर बहुत गुस्सा था. इंदिरा ने जो ज्यादतियां कीं, अबकी बार यूपी उसका हिसाब बराबर करने के लिए तैयार था. और उसने इस कदर ये हिसाब बराबर किया कि हर कोई हैरान रह गया. आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली, उसका खाता तक नहीं खुल सका. चुनावों से ठीक पहले बनी नई जनता पार्टी ने पूरी 85 सीटों पर कब्जा किया.
1980 – जनता पार्टी अपनी गलतियों से केवल ढाई साल में गिर गई तो देश में मध्यावधि चुनाव हुए. यूपी फिर इंदिरा गांधी के साथ खड़ी नजर आई. 85 सीटों पर कांग्रेस ने 50 सीटें जीतीं तो जनता पार्टी सेकुलर ने 29 सीटें.
1984 – इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर से उत्तर प्रदेश भी अछूता नहीं रहा. उसने 85 में 83 सीटें जीतीं तो बीजेपी का खाता भी नहीं खुल पाया. इतनी जबरदस्त जीत तो कांग्रेस को तब भी नहीं मिली थी, जब नेहरू के दौर में उसने पहला चुनाव लड़ा था.
1989 – इस बार फिर यूपी का मूड बदला हुआ था. उसने अगर पांच साल पहले कांग्रेस को सिर पर बिठाया था, तो इस बार बिल्कुल ही गिरा दिया. 85 में 15 सीटें केवल कांग्रेस को मिलीं. बीजेपी को 08 सीटें हासिल हुईं तो वीपी सिंह की अगुवाई में बने जनता दल ने 54 सीटें जीतीं.
1991 – पहली बार सूबे ने बीजेपी का उभार देखा. उसने पहली बार 51 सीटें जीतीं और अपना आगाज किया. इस बार कांग्रेस को केवल 05 सीटें मिलीं, जो उसका खराब प्रदर्शन कहा जाएगा. जनता दल को 22 सीटें मिलीं.
1996 – कांग्रेस फिर 05 सीटों पर सिमटी रही तो बीजेपी ने 52 सीटों पर जीत हासिल कीं. समाजवादी पार्टी 16 तो बीएसपी ने 06 सीटों पर जीत पाई. लेकिन इस चुनाव ने ये भी दिखाया कि यूपी अब नई तरह की क्षेत्रीय पार्टियों के साथ खड़ा हो रहा है.
1998 – कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली. तो बीजेपी को 57 सीटें हासिल हुईं. समाजवादी पार्टी को 20 सीटें और बीएसपी की 4 सीटों पर जीत.
1999 – कांग्रेस ने अपना आंकड़ा शून्य से 10 तक पहुंचाया तो बीजेपी के खाते में 29 सीटें आईं यानि इस बार उसे 28 सीटों का नुकसान हुआ, समाजवादी पार्टी इस बार 35 सीटों के साथ सबसे आगे रही. बीएसपी को 14 सीटें मिलीं.
2004 – उत्तराखंड बनने के बाद पहली बार यूपी में 80 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस को 09 सीटें मिलीं तो बीजेपी को 10. इस बार समाजवादी पार्टी ने 35 तो बीएसपी ने 19 सीटें पाईं. अगर आप देखें तो ये चुनाव फिर दिखा रहा कि सूबे का सियासी मूड बदला हुआ है.
2009 – यूपी में कांग्रेस ने खुद बेहतर करते हुए 22 सीटों पर जीत हासिल की. इस बार के परिणाम बीजेपी के लिए वैसे ही रहे यानि 10 सीटें उसे मिलीं तो समाजवादी पार्टी को 22 सीटें हासिल हुईं और बीएसपी को 20. लेकिन ये आखिरी चुनाव था जबकि कांग्रेस दहाई तक पहुंच पाई, इसके बाद इस सियासी पार्टी को उस सूबे में सीटों के लिए तरसना पड़ गया, जिसने वाकई उसे सिर आंखों पर बिठाया था.
2014 – ये वो चुनाव था जिसने यूपी में बीजेपी का परचम लहराया और देश में सियासी बदलाव पर मुहर लगा दी. कांग्रेस और अन्य दलों का सूपड़ा काफी हद तक साफ हो गया. बीजेपी ने 71 सीटें जीतीं तो समाजवादी पार्टी को 05 सीटें मिलीं तो कांग्रेस को केवल दो सीटें.
2019 – बीजेपी की इस बार 09 सीटें कम तो हुईं लेकिन तब भी वह 80 लोकसभा सीटों में 62 सीटें जीतकर सबसे आगे थी. कांग्रेस को केवल एक सीट हासिल हुई. बीएसपी ने 10 पर जीत पाई तो समाजवादी पार्टी ने 05सीटें पाईं.
Tags: 2024 Loksabha Election, Loksabha Election 2024, UP politics, Uttar Pradesh Congress, Uttar Pradesh ElectionsFIRST PUBLISHED : June 4, 2024, 16:23 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed