जन्मदिन विशेषः दोस्ती का मोदी मॉडल जो दुश्मन के दोस्त को ही अपना बना ले
जन्मदिन विशेषः दोस्ती का मोदी मॉडल जो दुश्मन के दोस्त को ही अपना बना ले
PM Modi Foreign policy: 2014 से पहले क्या कहा जा रहा था कि जिस सीएम को अमेरिका वीज़ा नहीं दे रहा उसके पीएम बनने पर 70 साल से तलवार की धार पर चलने वाली हमारी विदेश नीति का क्या होगा? और आज देखिए, धार कैसी है, और जिस तलवार पर चलने की बात होती थी वो तलवार ही किसने अपने हाथ में ले ली है.
नई दिल्ली. प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल को केवल राजनीतिक चश्मे से देखने में चुनावों में उनकी सफलता इतनी बड़ी परछाई डाल देती है कि मंझे हुए विश्लेषक भी उसमें उलझ कर रह जाते हैं. लेकिन हक़ीक़त ये है कि इतिहास में जब उनके कार्यकाल को आंका जाएगा तब ये चश्मा उतर चुका होगा. और तब शायद विदेश नीति के उस बिंदु पर नज़र साफ़ तौर पर पड़े जो आज अन्य सफलताओं की भीड़ में अपने आप को दर्ज नहीं करवा पा रहा. हालांकि पीएम की विदेश नीति की चपलता पर तो बहुत कुछ कहा जाता है, लेकिन वो विश्लेषण भी पाकिस्तान-अमेरिका-चीन के दायरे से ज़्यादा बाहर नहीं निकल पाता. यूक्रेन युद्ध के बाद तो जिस तरह से पीएम ने अमेरिका और रूस दोनों को साधा उसका तो अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार भी अचंभे की तरह बखान करते हैं. साथ ही ‘ऐक्ट ईस्ट’ नीति भी रेखांकित की जाती है और उसमें आसियान और जापान के साथ जिस तरह से अब भारत के रिश्ते हैं, उसकी भी 70 साल से चली आ रही नीतियों से तुलना की जाती है. लेकिन गुट-निरपेक्षता वाले दौर के भारतीय विदेश नीति के इतिहास के मुक़ाबले जो सबसे बड़ा फ़र्क़ आया है वो है भारत और पश्चिम एशिया के रिश्तों में.
प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति की सबसे अहम उपलब्धियों में पश्चिम एशिया से रिश्ते इसलिए गिने जाएंगे क्योंकि ये वाक़ई 70 साल में नहीं हो पाया. दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, ये उक्ति तो विदेश नीति में ख़ूब इस्तेमाल होती है. लेकिन दुश्मन के दोस्त को अपने साथ कर लो, ये पहले नहीं देखा गया था. पीएम मोदी की विदेश नीति में पुरानी ‘गुटनिरपेक्षता’ के मुक़ाबले अब के नए ‘संतुलन’ के क़ाएल भी पश्चिम एशिया में हुए कारनामे को पहले से बने किसी भी सांचे में नहीं डाल पाते.
पश्चिम एशिया में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को तीन मुख्य बिंदु प्रभावित करते हैं. एक, इज़रायल. दो, शिया-सुन्नी. तीसरा, अमेरिका-रूस. इज़रायल के साथ हो तो बाक़ी मुस्लिम देशों के साथ नहीं हो सकते, शिया ईरान के साथ हो तो सुन्नी सऊदी अरब के साथ होना मुश्किल है, अमेरिका वाले गुट के साथ हो तो रूस वाले गुट के साथ नहीं हो सकते, अब तक यही माना जाता था. इसमें ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर वाला फ़ॉर्मुला तो लग सकता है, और अब तक लगता ही था. लेकिन इस क्षेत्र में हर किसी से गले मिलने वाली दोस्ती गांठ लेने की कला विदेश नीति में पहले नहीं देखी गई थी. इज़रायल के साथ रक्षा क्षेत्र में सौदे भी हो रहे हैं और सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को साथ लेकर अमेरिका के साथ नई चौकड़ी में भी भारत है. चाबहार बंदरगाह में निवेश कर के भारत उस ईरान के साथ है जिस पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए हुए है. लेकिन उससे भी अहम शायद ये है कि अब तक जब भी पाकिस्तान की बात आती थी तो ये पूरा इलाक़ा भारत के साथ खड़ा हुआ नहीं दिखता था.
अभी समरकंद के सम्मेलन में पाकिस्तान के क़रीबी तुर्की के राष्ट्रपति जिस तरह से पीएम मोदी से मिले वो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में कोई साधारण घटना नहीं है. दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बना लेने में तो दोनों का हित होता ही है, लेकिन दुश्मन के दोस्त को भी अपने साथ दोस्ती में हित दिखा देना ही शायद विदेश नीति का ‘मोदी मॉडल’ है, जिसको इतिहास बहतर आंकेगा. याद कीजिए 2014 से पहले क्या कहा जा रहा था कि जिस सीएम को अमेरिका वीज़ा नहीं दे रहा उसके पीएम बनने पर 70 साल से तलवार की धार पर चलने वाली हमारी विदेश नीति का क्या होगा? और आज देखिए, धार कैसी है, और जिस तलवार पर चलने की बात होती थी वो तलवार ही किसने अपने हाथ में ले ली है.
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Tags: Narendra modi, Narendra modi birthdayFIRST PUBLISHED : September 17, 2022, 08:34 IST