घान के बीज के साथ करें ये कामबाली में नहीं लगेगा खतरनाक कंडुआ रोग जानें एक

जिला कृषि रक्षा अधिकारी डॉ. संजय कुमार ने बताया कि कंडुआ (False smut) एक बीज जनित बीमारी है. जो धान की बाली आने के बाद धान के दानों में गांठे बनने लगती हैं. इसके बाद बाली के ऊपर पीले रंग का पाउडर लग जाता है जो कि बाद में काला हो जाता है.

घान के बीज के साथ करें ये कामबाली में नहीं लगेगा खतरनाक कंडुआ रोग जानें एक
शाहजहांपुर: खरीफ की फसल धान की रोपाई के लिए किसान इन दिनों नर्सरी तैयार कर रहे हैं. धान की पौध तैयार करते समय किसानों को कुछ खास एहतियात बरतने की जरूरत है. ताकि किसानों को रोग रहित फसल से अच्छा मुनाफा मिल सके. धान की फसल में कंडुआ (False smut) नाम का रोग लगता है. यह एक बीज जनित रोग हैं. जिसका नर्सरी बिजाई के समय ही बीज उपचार करना बेहद जरूरी है. अन्यथा किसानों की तैयार फसल बर्बाद हो सकती है. जिला कृषि रक्षा अधिकारी डॉ. संजय कुमार ने बताया कि कंडुआ (False smut) एक बीज जनित बीमारी है. जो धान की बाली आने के बाद धान के दानों में गांठे बनने लगती हैं. इसके बाद बाली के ऊपर पीले रंग का पाउडर लग जाता है जो कि बाद में काला हो जाता है. बाद में ये रोग धान की पूरी फसल में यह फैलने लगता है. जिससे किसानों को आर्थिक तौर पर भारी नुकसान होता है. डॉ संजय कुमार ने बताया कि कंडुआ रोग की रोकथाम के लिए बीज उपचार करना जरूरी है. इसके साथ-साथ नर्सरी की बिजाई करते समय मृदा शोधन भी करना चाहिए. ऐसा करने से किसानों की फसल 99% तक सुरक्षित रहती है. इस दवा से करें बीज शोधन डॉ. संजय कुमार ने बताया कि धान का बीज शोधन करना बेहद जरूरी है. बीज शोधन से कंडुआ रोग से फसल को सुरक्षित किया जा सकता है. 2 ग्राम से 2.5 ग्राम थिरम या फिर 2 ग्राम से 2.5 ग्राम कार्बेंडाजिम से बीज शोधन कर सकते हैं. धान के बीज को पानी भिगोते समय थिरम या कार्बेंडाजिम में से किसी भी दवा का इस्तेमाल करके भी शोध किया जा सकता है. मृदा शोधन करना भी है जरूरी डॉ. संजय कुमार ने बताया कि बीज शोधन के साथ-साथ मृदा शोध भी बेहद जरूरी है. जिसके लिए किसान खेत की अंतिम जुताई करते समय ट्राइकोडर्मा और बवेरिया बेसियाना को गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर खेत में बिखेर दें. उसके बाद केल्टीवेटर से जुताई कर दें. उसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर दें. फिर क्यारी बनाकर धान की नर्सरी की बिजाई कर दें. बीज शोधन और मृदा शोधन करने से किसानों की फसल 99% तक सुरक्षित हो जाती है. ये उपाय भी कारगर डॉ. संजय कुमार का कहना है कि जब धान की बाली में कंडुआ रोग के लक्षण दिखने लगते हैं. जब तक किसान समझ पाते हैं. तब तक काफी नुकसान हो चुका होता है. क्योंकि गांठ बनने के बाद कंडुआ रोग की आखिरी स्टेज होती है. उस समय किसी भी रसायन का इस्तेमाल करने से कोई फायदा नहीं होता. अगर किसान किसी कारण से बीज शोधन नहीं कर पाते तो जैसे ही बाली निकलने शुरू हो, उस वक्त प्रोपिकोनाजोल नाम के कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं. यह एक अंतः प्रवाही कीटनाशक होता है. जिससे कंडुआ के प्रभाव को काम किया जा सकता है. Tags: Agriculture, Local18, Shahjahanpur News, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : June 8, 2024, 13:49 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed