बला की खूबसूरत तवायफ जब लड़ी चुनाव कोई मुकाबले को नहीं था तैयार सच्चा किस्सा

दिलरुबा जान (Dilruba Jaan Lucknow) जब चुनाव प्रचार के लिए निकलतीं तो उनके पीछे सैकड़ों की भीड़ चलती. उनकी सभाओं में मनमानी भीड़ उमड़ने लगी.

बला की खूबसूरत तवायफ जब लड़ी चुनाव कोई मुकाबले को नहीं था तैयार सच्चा किस्सा
अंग्रेजी हुकूमत के दौर में अदब और तहजीब का शहर कहा जाने वाला लखनऊ अपनी तवायफों और कोठों के लिए भी मशहूर था. तमाम राजा, महाराजा, नवाब और निजाम अक्सर लखनऊ के कोठों पर शाम की महफिलों में नजर आया करते थे. उन दिनों लखनऊ के चौक इलाके में एक तवायफ हुआ करती थीं दिलरुबा जान, जो बला की खूबसूरत थीं. उनके चाहने वाले लखनऊ से लेकर आसपास के शहरों तक फैले थे. साल 1920 में लखनऊ में नगर पालिका का चुनाव होना था. दिलरुबा जान ने कोठे की दीवार लांघकर चुनाव के मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया. जब चुनाव लड़ गईं दिलरुबा जान दिलरुबा जान (Dilruba Jaan Lucknow) जब चुनाव प्रचार के लिए निकलतीं तो उनके पीछे सैकड़ों की भीड़ चलती. उनकी सभाओं में मनमानी भीड़ उमड़ने लगी. चुनाव के आखिर तक दिलरुबा जान के मुकाबले मैदान में कोई दूसरा प्रत्याशी नहीं था. रिपोर्ट्स से पता चलता है कि तमाम ऐसे प्रत्याशी जो चुनाव लड़ना चाहते थे, दिलरुबा जान और उनकी लोकप्रियता को देखकर अपने पैर पीछे खींच लिए. उन दिनों लखनऊ में एक नामी हाकी हुआ करते थे, जिनका नाम था हकीम शमसुद्दीन. वह भी लखनऊ के चौक के करीब अकबरी गेट इलाके में रहा करते थे. ये भी पढ़ें: बेहद हसीन वो तवायफ जिसे मंदिर के पुजारी से प्यार हो गया, पटना का सच्चा किस्सा मुकाबले को तैयार हुए हकीम साहब हकीम साहब के दोस्तों ने उन पर चुनाव लड़ने का दबाव बनाया और वह तैयार भी हो गए, लेकिन कुछ दिनों में उन्हें लगने लगा कि चुनाव जीतना मुश्किल है. क्योंकि उनके पीछे गिने-चुने लोग थे, जबकि दिलरुबा जान के पीछे पूरा हुजूम. वो दौर चुनावी नारों का था. हकीम साहब ने लखनऊ के तमाम इलाकों में दीवारों पर ऐसा नारा लिखवाया, जो देखते-देखते सबकी जुबान पर चढ़ गया. नारा था- ”है हिदायत लखनऊ के तमाम वोटर-ए-शौकीन को, दिल दीजिए दिलरुबा को, वोट शमसुद्दीन को…’ वोट देना दिलरुबा को, नब्ज शमसुद्दीन को जब दिलरुबा जान को इस नारे का पता चला तो उन्होंने उसी अंदाज में जवाब देने का फैसला किया. उन्होंने चौक से लेकर पुराने लखनऊ की तमाम दीवारों पर लिखवाया- ”है हिदायत लखनऊ के तमाम वोटर-ए-शौकीन को, वोट देना दिलरुबा को, नब्ज शमसुद्दीन को…” दिलरुबा जान और हकीम शमसुद्दीन की मीठी नोकझोंक के बीच चुनाव हुए और जब रिजल्ट आया तो सब कुछ पलट चुका था. दिलरुबा जान भले ही लोगप्रिय थीं और उनके पीछे भीड़ थी, लेकिन उन्हें चुनाव में मुंह की खानी पड़ी. ये भी पढ़ें: देश की वो मशहूर तवायफें जिनकी आवाज और नाजोअदा के जलवे के दीवाने थे बड़े-बड़े हकीम शमसुद्दीन चुनाव जीत गए. इतिहासकार योगेश प्रवीण ने साल 2015 में अपनी पुस्तक तवायफ के विमोचन के दौरान बताया कि चुनाव में हार से दिलरुबा जान बहुत निराश हुईं. उनके कोठे की रौनक चली गई. उन्होंने कहा, ‘चौक में आशिक कम और मरीज ज्यादा हैं…’ Tags: 2024 Loksabha Election, Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, Lucknow newsFIRST PUBLISHED : May 6, 2024, 15:19 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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