पराली जलाने के बजाय यहां लाएं किसान इतने रुपये होगा प्रॉफिट

Delhi Air Pollution: हरियाणा के रोहतक के लाहली गांव में महाराष्ट्र की एक कंपनी ने एक बॉयोगैस प्लांट बनाया है. यहां पर पराली से सीएनजी गैस बनाई जाती है. तीन साल से प्लांट चल रहा है.

पराली जलाने के बजाय यहां लाएं किसान इतने रुपये होगा प्रॉफिट
रोहतक. उत्तर भारती में दिवाली के आसपास धान की पराली जलाने के मामले एक बड़ा मुद्दा बन जाते हैं. क्योंकि पटाखों के धुएं और पराली के जलने से पैदा होने वाले धूएं से वातावरण काफी प्रदूषित हो जाता है और लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है. अस्थमा के मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है. इसके अलावा, वायु प्रदूषण के चलते सांस संबंधी बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है. बेशक कुछ किसान नासमझी में पराली में आग लगाने का शॉर्टकट रास्ता अपना लेते हैं, लेकिन इससे न सिर्फ उन्हें नुकसान होता है, बल्कि वातावरण भी प्रदूषित होता है और साथ ही खेतों से भी कीट मित्र नष्ट हो जाते हैं. आमजन से लेकर सरकार तक को इस परेशानी से दो-चार होना पड़ रहा है. हालांकि, अब उम्मीद की एक किरण जगी है. दरअसल, महाराष्ट्र की एक कंपनी ने हरियाणा के रोहतक के लाहली गांव में एक बॉयोगैस प्लांट लगाया है, जिससे पराली से सीएनजी गैस बनती है. इससे किसानों को भी मुनाफा हो रहा है और वायु प्रदूषण से भी निजात मिल रही है. इस प्लांट की प्रतिदिन 3 टन गैस का उत्पादन करने की क्षमता है, लेकिन फिलहाल प्रतिदिन एक टन सीएनजी गैस का उत्पादन हो रहा है. प्लांट के मैनेजर हरीश कुमार ने न्यूज़ 18 से खास बात करते हुए पराली से कैसे सीएनजी गैस बनाते हैं, उस पूरी प्रक्रिया के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि किसानों से हम पराली खरीदते हैं और नमी को लेकर कुछ पैरामीटर बनाए गए हैं और इसके हिसाब से किसानों को उसका भुगतान किया जाता है. आमतौर पर 50 पैसे से एक रुपये प्रति किलो की दर पर किसानों को भुगतान होता है. तकरीबन प्रति एकड़ 1500 से 2000 रुपये के आसपास किसान की आमदनी होती है. उन्होंने बताया कि पिछले 2 साल से हम यहां पर पराली से सीएनजी गैस बनाने का काम कर रहे हैं और जरूरत के मुताबिक रोहतक और उसके आसपास के एरिया से हम पराली खरीदते हैं. कैसे बनती है सीएनजी गैस एक प्रक्रिया के तहत पराली से सीएनजी गैस बनती है. 15 फ़ीसदी से कम नमी वाली पराली की सबसे पहले कटिंग की जाती है और फिर उसे तूड़ी से भी महीन काटकर मिक्सिंग टैंक में पानी के साथ डाला जाता है. इसके बाद उसे बॉयलर में 42 से 50 डिग्री तापमान पर मेंटेन किया जाता है. करीबन 90 से 120 दिन तक यहां रखने पर सीएनजी गैस का उत्पादन शुरू हो जाता है. हम धान के सीजन में पराली का स्टॉक कर लेते हैं और पूरा साल भर इस प्लांट से गैस का उत्पादन होता रहता है. इन सबके बाद जो वेस्टेज बचता है, उसको खाद के तौर पर प्रयोग में लाते हैं. यानी किसानों को दोहरा फायदा होता है. एक तो वायु प्रदूषण से निजात मिलती है, दूसरा उनको आमदनी के साथ-साथ खेत की उर्वरा शक्ति भी बनाए रखने में मदद मिलती है. हरियाणा में पराली जलाने के मामले हरियाणा में लगातार पराली जलाने के मामले बढ़ रहे हैं. हालांकि, बीते साल के मुकाबले इस बार 24 फीसदी कम पराली जलाई गई है. लेकिन बीते 50 दिन में हरियाणा में पराली जलाने के 850 मामले सामने आए हैं. कैथल जिले में सबसे अधिक पराली जलाई जा रही है. उधर, दिल्ली-एनसीआर का एयर क्वालिटी इंडेक्स लगातार खराब हो रहा है. Tags: Air pollution delhi, Air Quality Index AQI, Stubble Burning, Stubble firesFIRST PUBLISHED : October 25, 2024, 09:56 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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