येदियुरप्पा की वापसी सिद्धारमैया के लिए कितनी चिंताजनक! अब बोम्मई का क्या समझिए कर्नाटक की पहेली
येदियुरप्पा की वापसी सिद्धारमैया के लिए कितनी चिंताजनक! अब बोम्मई का क्या समझिए कर्नाटक की पहेली
पूर्व सीएम और विपक्ष के नेता सिद्धारमैया की निर्विवाद लोकप्रियता ने भी भाजपा को परेशान कर दिया है और 3 अगस्त को दावणगेरे में कांग्रेस नेता के 75वें जन्मदिन पर लाखों लोगों की भारी भीड़ ने सत्तारूढ़ पार्टी के खेमे में खतरे की घंटी बजा दी है. कांग्रेस के सबसे ताकतवर और लोकप्रिय नेता का मुकाबला करने के लिए बीजेपी येदियुरप्पा को रिटायरमेंट से वापस लाने को मजबूर है. येदियुरप्पा के खेल में वापस आने के साथ कर्नाटक की राजनीति एक बार फिर एक बड़े मुकाबले की तैयारी कर रही है.
हाइलाइट्सकर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने राजनीतिक पिच पर एक बड़ी जीत हासिल की है. पार्टी ने उन्हें संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का सदस्य बनाया है. येदियुरप्पा की वापसी से भाजपा को बड़े पैमाने पर मदद नहीं मिल सकती है.
बेंगलुरु. भारत के 76वें स्वतंत्रता दिवस के एक दिन बाद कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने राजनीतिक पिच पर एक बड़ी जीत हासिल की. भाजपा के सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकाय सदस्य के रूप में उन्हें दो पदों से पुरस्कृत किया गया है. पार्टी ने उन्हें संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का सदस्य बनाया है. 75 वर्ष से अधिक आयु के नेताओं को कोई राजनीतिक पद नहीं देने के अपने स्वयं के निर्णय के खिलाफ जाते हुए भाजपा आलाकमान ने येदियुरप्पा को महत्वपूर्ण कर्नाटक विधानसभा चुनाव और उसके एक साल बाद लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सक्रिय राजनीति में वापस लाने का फैसला किया.
इसके बाद कर्नाटक भाजपा में तुरंत जश्न शुरू हो गया और मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व में राज्य नेतृत्व येदियुरप्पा को उनके घर पर बधाई देने के लिए पहुंचा. येदियुरप्पा पुनर्गठित संसदीय बोर्ड में सबसे वरिष्ठ नेता हैं. इसके साथ ही वह भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और वह जनसंघ से भी जुड़े थे. साल 1967 में वे जनसंघ से जुड़े.
येदियुरप्पा होने का अपना महत्व
उनके अचानक पदोन्नत होने से कुछ बातें साबित हुई हैं. येदियुरप्पा होने का अपना महत्व है. वे राजनीतिक हलकों में काफी लोकप्रिय हैं. भाजपा को एहसास है कि उनके ना होने से आगामी विधानसभा चुनाव में कितना नुकसान हो सकता है. लिंगायत वोटों पर येदियुरप्पा का नियंत्रण है.
अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक आलाकमान ने भविष्य में पार्टी का नेतृत्व करने के लिए एक नया नेतृत्व आधार बनाने के इरादे से उनसे छुटकारा पाया था. लेकिन पिछले एक साल में उन्होंने महसूस किया है कि येदियुरप्पा के बिना कर्नाटक को फिर से जीतना एक कठिन काम होगा और उन्हें वापस लाने की जरूरत है. पिछले साल जुलाई में येदियुरप्पा की जगह लेने वाले बोम्मई पार्टी के भीतर और बाहर कई लड़ाइयां लड़ रहे हैं. अपने पूर्ववर्ती के कद और लोकप्रियता में कमी ने भी उनके संकट को और बढ़ा दिया है. पार्टी बीच में बंट गई है और अधिकांश नेता अभी भी येदियुरप्पा के साथ अपनी पहचान बना रहे हैं.
बोम्मई मुख्य रूप से पहले अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वह न तो पार्टी को और ना ही सरकार को अपने नियंत्रण में ले पाए हैं. जिसका लाभ अब येदियुरप्पा को मिला है. लेकिन इस फैसले को लेकर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भाजपा का मज़ाक उड़ाते हुए दावा किया कि भाजपा के आलाकमान ने येदियुरप्पा को मार्गदर्शक मंडल के करीब एक कदम आगे ला दिया है.
सिद्धारमैया की लोकप्रियता से भाजपा परेशान
पूर्व सीएम और विपक्ष के नेता सिद्धारमैया की निर्विवाद लोकप्रियता ने भी भाजपा को परेशान कर दिया है और 3 अगस्त को दावणगेरे में कांग्रेस नेता के 75वें जन्मदिन पर लाखों लोगों की भारी भीड़ ने सत्तारूढ़ पार्टी के खेमे में खतरे की घंटी बजा दी है. कांग्रेस के सबसे ताकतवर और लोकप्रिय नेता का मुकाबला करने के लिए बीजेपी येदियुरप्पा को रिटायरमेंट से वापस लाने को मजबूर है. येदियुरप्पा के खेल में वापस आने के साथ कर्नाटक की राजनीति एक बार फिर एक बड़े मुकाबले की तैयारी कर रही है.
लेकिन भाजपा और कांग्रेस दोनों ही गुटबाजी से ग्रस्त हैं और विभिन्न नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं से विधानसभा चुनावों में समग्र प्रदर्शन प्रभावित होने की संभावना है. हाल ही में, परिवहन मंत्री और भाजपा के प्रभावशाली आदिवासी नेता बी श्रीरामुलु ने मुख्यमंत्री पद के लिए सिद्धारमैया को खुले तौर पर समर्थन देकर एक धमाका किया. शर्मिंदा भाजपा ने इसे अपना ‘व्यक्तिगत विचार’ करार दिया और केपीसीसी अध्यक्ष डीके शिवकुमार के नेतृत्व में कांग्रेस में सिद्धारमैया विरोधी खेमे की असुरक्षा बढ़ गई है.
कर्नाटक की राजनीतिक स्थिति जटिल
भाजपा अक्सर लोगों को याद दिलाते हुए कांग्रेस पर हमला करती है कि सिद्धारमैया बनाम शिवकुमार की लड़ाई उन्हें महंगी पड़ सकती है. कर्नाटक की स्थिति इतनी जटिल है कि भाजपा और कांग्रेस निश्चित रूप से येदियुरप्पा और सिद्धारमैया की भारी लोकप्रियता को पसंद नहीं करते हैं. लेकिन उनके बिना रह भी नहीं कर सकते हैं. दोनों नेता कई मायनों में अपरिहार्य हो गए हैं और उन्हें व्यापक हित में समायोजित और सहन करना होगा.
सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार
येदियुरप्पा, सिद्धारमैया और एचडी देवेगौड़ा ने मिलकर कर्नाटक में कुल वोट शेयर का 35 प्रतिशत से अधिक पर कब्जा कर लिया, जिससे वे अजेय हो गए हैं. चुनाव के करीब सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही है, जिससे कांग्रेस खेमे में चिंता पैदा हो रही है, जो सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है.
इधर येदियुरप्पा की वापसी से भाजपा को बड़े पैमाने पर मदद नहीं मिल सकती है क्योंकि अगर पार्टी सत्ता बरकरार रखने का प्रबंधन करती है तो उनके सीएम के रूप में लौटने की संभावना बहुत कम है. ज्यादा से ज्यादा यह भाजपा के वोट बैंक के और क्षरण को रोक सकता है और पार्टी कैडर को उत्साहित कर सकता है. फिलहाल इस प्रकार कर्नाटक राजनीति की पहेली जारी है.
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Tags: BS Yediyurappa, KarnatkaFIRST PUBLISHED : August 18, 2022, 13:17 IST