मुफ्तखोरी या फिर फ्रीबी का खामियाजा कौन भुगतेगा कर्जदार राज्यों से क्या उम्मीद करें
मुफ्तखोरी या फिर फ्रीबी का खामियाजा कौन भुगतेगा कर्जदार राज्यों से क्या उम्मीद करें
हमें उन सभी से डरना चाहिए जो मुफ्तखोरी को बढ़ा रहे हैं. किसी भी वस्तु, साधन या सेवा को मुफ्त में पाना अच्छा लग सकता है, लेकिन यही रास्ता हमें धीरे-धीरे दिवालिया कर रहा है.
हाइलाइट्सराज्यों की लोक-लुभावन योजनाएं और वादों से बढ़ रहा है कर्ज मुफ्तखोरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त, जताई नाराजगी जो राज्य पहले से ही कर्जदार उनसे आर्थिक विकास की उम्मीद नहीं
भारत की आर्थिक स्थिरता, केंद्र और राज्यों की व्यापक आर्थिक स्थिरता पर निर्भर है. वर्तमान में राज्यों की आर्थिक स्थिति चिंता बढ़ा रही है. पंजाब (Punjab) की हालत खराब है. तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश पर साढ़े 6 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है. महाराष्ट्र पर 6 लाख करोड़, पश्चिम बंगाल पर साढ़े 5 लाख करोड़, राजस्थान पर साढ़े 4 लाख करोड़ का कर्ज है. गुजरात और आंध्र प्रदेश पर भी करीब 4 लाख करोड़ का कर्ज है. केंद्र की ताकत राज्यों में है और यदि राज्य कर्जदार बन रहे हैं, तो अंजाम क्या होगा? इसके कारण गिनाए जा सकते हैं और इसमें मुफ्तखोरी के इर्द-गिर्द बना राजनीतिक संवाद सबसे बड़ा जोखिम है.
मुफ्तखोरी का तो अर्थशास्त्र ही पूरी तरह से गलत है. इस मुफ्तखोरी की राजनीति और अर्थशास्त्र दोनों में गहरी खामियां हैं. यह समृद्धि का रास्ता कतई नहीं है बल्कि यह वित्तीय आपदा की गारंटी है. हमें समझना और समझाना होगा कि मुफ्त कितना खतरनाक है. यह मुफ्त अर्थव्यवस्था, जीवन की गुणवत्ता और सामाजिक सामंजस्य के लिए लंबे समय में बेहद तकलीफदेह है. वित्तीय आपदा को न्यौता देने और लंबे समय तक टैक्स के बोझ में दबे रहने से बचना हो तो हमें मुफ्तखोरी के बचना होगा. हमें उन सभी से डरना चाहिए जो मुफ्तखोरी को बढ़ा रहे हैं. किसी भी वस्तु, साधन या सेवा को मुफ्त में पाना अच्छा लग सकता है, लेकिन यही रास्ता हमें धीरे-धीरे दिवालिया कर रहा है.
पंजाब में मुफ्त की योजनाएं क्या असर डाल रही हैं
जीवन के लिए जरूरी माने जाने वाली रोटी, कपड़ा और मकान ये तीनों ही चीजें मुफ्त में उपलब्ध कराई जा रही है. मुफ्त का राशन, वह भी आपके घर पहुंचाकर, मुफ्त की शिक्षा, मुफ्त की बिजली, मुफ्त का घर, मुफ्त में इलाज जैसे लुभावने वादे और योजनाएं दरअसल राज्यों के लिए बड़ा संकट साबित हो रहे हैं. उन पर लगातार कर्ज का दबाव है. ऐसे राज्यों के लिए राजकोषीय स्थिरता का कोई अर्थ ही नहीं है जो पहले से ही भारी-भरकम कर्ज के बोझ से हांफ रहे हैं. पंजाब के मामले में ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि मुफ्त उपहारों के वादों को लागू करने से करीब 17,000 करोड़ रुपए खर्च हो जाएंगे. सबके अपने-अपने अनुमान हैं, लेकिन यह भी समझना होगा कि पंजाब में कर्ज के बोझ को प्रभावित करने वाली हर चीज को ध्यान में रख लें तो जीएसडीपी के 3 प्रतिशत का अतिरिक्त प्रभाव पड़ेगा. अभी पंजाब का कर्ज और राज्य की जीडीपी का अनुपात 2021-22 के लिए पहले से ही 53.3 प्रतिशत है. मुफ्तखोरी को बढ़ाने वाली योजनाओं से यह अनुपात और अधिक बिगड़ जाएगा और इसका खामियाजा राज्य और राज्य की जनता को ही सहना होगा. ऐसे राज्यों के कारण देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ती है.
राजस्थान की पुरानी पेंशन योजना का फैसला
राज्य आर्थिक विकास की उच्च दर हासिल करने के रास्ते पर क्यों नहीं चलते? जब तक मुफ्त और कर्ज माफी वाली योजनाएं रहेंगी तब तक राजकोषीय स्थिरता की बात बेमानी है. ऐसी योजनाओं पर खर्च होने वाला धन कहां से आएगा ? यह भी समझना होगा कि परिव्यय किसी न किसी प्रकार की सब्सिडी पर केंद्रित किया जा रहा है. राजस्थान ने घोषणा की है कि वह पुरानी पेंशन योजना फिर लागू करेगा. यह योजना पहले इसलिए बंद की गई थी क्योंकि इससे असमानता बढ़ रही थी. राजस्थान में पेंशन और वेतन राजस्व उसके कर और गैर-कर राजस्व का 56 प्रतिशत है. ऐसा बताया गया कि राज्य में 6 प्रतिशत आबादी सिविल सेवकों की है, जिसे राज्य के राजस्व के 56 प्रतिशत से लाभ होता है. ऐसी योजनाओं से समाज में असमानता के खतरे बढ़ जाते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने भी जताई है नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव से पहले लोकलुभावन ऐलान, चीजों को मुफ्त बांटने और कर्ज माफी करने के प्रचलन पर चिंता जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से कहा है कि ये एक गम्भीर मुद्दा है. चुनाव आयोग और सरकार इससे पल्ला नहीं झाड़ सकते और ये नहीं कह सकते कि वे कुछ नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार और चुनाव आयोग इस पर रोक लगाने के लिए विचार करे. सुप्रीम कोर्ट ने फ्रीबी यानी ‘रेवड़ी कल्चर से निपटने के लिए एक विशेषज्ञ निकाय बनाने की वकालत की. कोर्ट ने कहा कि इसमें केंद्र, विपक्षी राजनीतिक दल, चुनाव आयोग, नीति आयोग , आरबीआई और अन्य हितधारकों को शामिल किया जाए. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निकाय में फ्रीबी पाने वाले और इसका विरोध करने वाले भी शामिल हों. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा ये मुद्दा सीधे देश की इकानॉमी पर असर डालता है. इस मामले को लेकर एक हफ्ते के भीतर ऐसे विशेषज्ञ निकाय के लिए प्रस्ताव मांगा गया है. अब इस जनहित याचिका पर 11 अगस्त को अगली सुनवाई होगी.
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Tags: Government of Rajasthan, PunjabFIRST PUBLISHED : August 04, 2022, 21:50 IST