आम लोगों के संघर्ष और चुनौतियों की दास्तां है नरेश कौशिक की रब्बी

आम लोगों के संघर्ष और चुनौतियों की दास्तां है नरेश कौशिक की रब्बी
(सिनीवाली शर्मा/Sinivali Sharma) नरेश कौशिक की कहानियां पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं. ‘रब्बी’ उनका पहला कहानी संग्रह है. प्रभात प्रकाशन की सहायक कंपनी प्रतिभा प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित कहानी संग्रह की लेखिका बिना किसी जल्दबाजी के, इत्मीनान से अपना पहला कहानी संग्रह लेकर आई हैं. आमतौर पर ऐसा कम देखा जाता है. इस संग्रह की कुछ कहानियां मैंने पहले भी पढ़ी थीं. लेकिन इस संग्रह की कहानियों से गुजरते हुए एक अलग अनुभूति होती है. इस कहानी संग्रह में ग्यारह कहानियां शामिल हैं. चकाचौंध और शोरगुल से भरे दिल्ली के चांदनी चौक में जब पाठक मन खड़ा होता है तो वह इस मशहूर बाजार को अपनी नजर से देखता है. इस चकाचौंध के साथ रुदन, मौन, विवशता और एक छोटा-सा सपना साथ-साथ चलता है. मैं उस कहानी की बात कर रही हूं जिसका नायक कंजिया जो न जाने कितने लोगों की तरह अपना घर-परिवार छोड़कर रोजी-रोटी के लिए दिल्ली चला आता है. आगे कहानी क्या मोड़ लेती है कहानी पढ़कर जाना जा सकता है. जब कहानी में पात्र नहीं उसका मौन बोलता है तो कहानी पाठक के भीतर गहरे उतरती है. ऐसे दौर में जब दुनिया के कई हिस्सों में कट्टरता बढ़ती जा रही है, ‘रब्बी’ कहानी कुछ सुकून देती है जिसमें कुछ लोग धर्म से ऊपर उठकर इंसानियत को प्रश्रय देते हैं. कई दशकों में फैले घटनाक्रम वाली यह कहानी विभाजन के बाद की पृष्ठभूमि में है. साथ ही इसमें पुराने रइसों, अगली पीढ़ियों का अपनी पुश्तैनी जमीन और हवेली के प्रति उदासीनता भी रेखांकित होती है. जब पास में स्थित दिल्ली ही दूर हो गई तो वे क्या लौटेंगे जो विदेश में जाकर बस गए. लेकिन इन सब के बीच ढहती हवेली को किसी एक व्यक्ति के लौटने का इंतजार है. बात दो धर्मों के लोगों के बीच नफरत की भले हो लेकिन यह कहानी इन धर्मों के बीच प्रेम की बात करती है. एक अन्य कहानी में आम ग्रामीणों की जीवन शैली के साथ ही एक हुनरमंद कलाकार का जीवन भी दर्शाया गया है जो अपने गांव में खुश है. लेकिन ऐसा समय आता है जब अपने भी साथ छोड़ जाते हैं. प्रकृति का नियम भी अजीब है- किसी का आशियाना उजड़ता है तो किसी का वहीं बसता है. जब शादी के लिए लड़की खरीदी जाती है तो उस लड़की का अपना कोई मोल नहीं होता है. कीमत उसकी देह और कोख की होती है. इस कहानी में तमाम बातों के साथ ही उन लड़कियों या महिलाओं के सूनेपन का मर्मस्पर्शी चित्रण है जिन्हें अपने भाई या घरवालों की जिंदगी भर प्रतीक्षा ही रहती है. बेमेल जोड़ी से लेकर विभिन्न प्रकार के समझौतों के बीच भी मोलकी जीने के लिए विवश होती है. गरीबी या अपने ही किसी के द्वारा ठगी के शिकार होने के कारण कुछ लड़कियां जीवन में ऐसे मोड़ पर पहुंच जाती हैं जहां आंखें भी सूख जाती हैं. भाषा की समस्या मुश्किलों को और भी गंभीर बना देती है. प्रेम करना और प्रेमी का मिलना दोनों अलग-अलग बातें हैं. असफल प्रेम से गुजरना किस हद तक दुख और परेशानी से भरा होता है कि वह प्रेम करने वाले को मनोरोगी बना देता है. दिल्ली की मेट्रो की भीड़, उसमें सफर करने वाले का जीवन और कई ऐसी बातों का जिनसे हम रोज के जीवन दो-चार होते रहते हैं – लेखिका ने सूक्ष्मता से उनका वर्णन किया है. प्रेम का अतिरेक भी प्रेम के पौधे को उसी तरह खत्म कर देता है जैसे पानी की अधिकता से भी पौधे मर जाते हैं. अपना खून तभी तक अपना होता है जब तक उसमें स्वार्थ का जहर नहीं घुलता है. अगर पूरे संग्रह ‘रब्बी’ की बात की जाए तो इसकी सभी कहानियां ग्रामीण क्षेत्रों और महानगरों में आम लोगों के रोजमर्रा के संघर्ष, उनके सपनों के बिखराव, जाति, धर्म और विस्थापन की चुनौतियों की दास्तां कहती हैं. नरेश कौशिक वरिष्ठ पत्रकार हैं. जटिल से जटिल बातों को भी वह जिस लहजे से या संकेतों से सामने रखती हैं उससे कहानियों की पठनीयता बढ़ जाती है. संवेदनशीलता से भरी हुई इन कहानियों के लिए नरेश कौशिक जी को हार्दिक बधाई. अपनी पुस्तक के बारे में नरेश कौशिक का कहना है कि उनकी अधिकतर कहानियां वंचितों की पीड़ा को बयां करती हैं. Tags: Hindi Literature, Hindi Writer, New booksFIRST PUBLISHED : July 17, 2024, 11:41 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed