Telangana Flowers Festival: लोकपर्व बतुकम्मा आज से शुरू जानें इसकी प्राचीनता और परंपरा

Bathukamma Festival: तेलुगू में बतुकम्मा का मतलब होता है- देवी मां जिन्दा हैं. बतुकम्मा की पूजा महागौरी के रूप में की जाती है. कह सकते हैं कि देवी माता को खुश करने के लिए ही बतुकम्मा बनाया जाता है. परिवार की सुख-समृद्धि की कामना भी इसमें निहित होती है. एक मान्यता है कि ये त्‍योहार स्त्री के सम्मान में मनाया जाता है.

Telangana Flowers Festival: लोकपर्व बतुकम्मा आज से शुरू जानें इसकी प्राचीनता और परंपरा
हाइलाइट्सबतुकम्‍मा लोकपर्व को तेलंगाना में राजकीय त्‍योहार का दर्जा दिया गया हैशारदीय नवरात्र के समय ही यह पर्व भी मनाया जाता है हैदराबाद. बतुकम्मा को तेलंगाना का सबसे प्राचीन लोकपर्व माना जाता है. शायद इसी वजह से तेलंगाना बनने के तुरंत बाद केसीआर सरकार ने शारदीय नवरात्र (Navratri Festival) के समय मनाए जाने वाले इस पर्व को राजकीय त्‍योहार ( State Festival of Telangana) का दर्जा दे दिया. बतुकम्मा पर्व पितृपक्ष यानि भादो की अमावस्या (जिसे महालया की अमावस्या भी कहा जाता है) से आरंभ होकर नवरात्र की अष्टमी के दिन पूर्ण होता है. शालिवाहन संवत के अनुसार यह पर्व अमावस्या तिथि से शुरू होकर दुर्गाष्टमी तक चलता है. तेलुगू परंपरा में कहें तो 9 दिनों का यह त्‍योहार रविवार यानि येंगली बतुकम्मा से आरंभ होकर सद्दुला बतुकम्मा को समाप्त होगा. अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक इस वर्ष 25 सितम्बर से 3 अक्टूबर 2022 तक बतुकम्मा समारोह आयोजित हो रहा है. बतुकम्मा पर्व तेलंगाना की खास सांस्कृतिक पहचान, समृद्ध परंपरा और अनुपम प्राकृतिक विरासत का प्रतीक है. यह पूरे तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कुछ इलाके में धूमधाम से मनाया जाता है. त्‍योहार में रंग-बिरंगे फूलों की केन्द्रीय भूमिका रहती है और यह पर्व देवी माता को समर्पित है. इसीलिए इसको फूलों का त्‍योहार (Festival of Flowers) भी कहा जाता है. कुछ लोग इसे जल-मिट्टी और मानव के समन्वय का पर्व बताते हैं. इसको वर्षा ऋतु के समापन और शीत ऋतु के आरंभ का द्योतक पर्व भी माना जाता है. तेलंगाना की महिलाएं रंग-बिरंगे फूलों से मंदिर के गौपुरम् ( सिंहद्वार) जैसी आकृति तैयार करती हैं. आमतौर पर इसमें सात स्तर होते हैं. इसको धूप-बत्ती के साथ सजाकर सबसे ऊपर हल्दी का गौराम्मा चढाती हैं, फिर हाथ या माथे पर इसे लेकर मंदिर या दूसरे सार्वजनिक जगहों पर ले जाती हैं. महिलाएं रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधान धारण करती हैं और लोकगीत गाते हुए चलती हैं. जहां सामूहिक उत्सव होता है, उस स्थान पर महिलाएं बतुकम्मा (Bathukamma) की परिक्रमा करते हुए गीत संग नृत्य करती हैं. देखने में यह डांडिया और गरबा नृत्य की झलक देता है. 9 दिवसीय त्‍योहार नौ दिवसीय इस पूजा के पहले दिन तेलंगाना की महिलाएं अपने घर-आंगन में गाय के गोबर से छोटे-छोटे गोपुरम तैयार करती हैं, फिर उसे फूलों से सजाया जाता है. रोज अलग अलग पकवान से भोग भी लगता है. इस तरह अंतिम दिन तक यह बड़े गोपुरम के रूप में तैयार हो जाता है. दुर्गाअष्टमी यानि नौवें दिन विभिन्न प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं और लोग बड़ी श्रद्धा और उत्साह पूर्वक इस लोकपर्व का आनंद लेते हैं. अंतिम दिन फूलों से तैयार बतुकम्मा को जल में विसर्जित कर दिया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि फूलों के विसर्जित करने से जल शुद्ध होता है. Navratri 2022: नवरात्रि में जवारे बोने का महत्व, इनके उगने के रंगों से पहचानें शुभ-अशुभ संकेत बतुकम्मा की प्राचीनता और मान्यता तेलुगू में बतुकम्मा का मतलब होता है- देवी मां जिन्दा है. बतुकम्मा की पूजा महागौरी के रूप में की जाती है. कह सकते हैं कि देवी माता को खुश करने के लिए ही बतुकम्मा बनाया जाता है. परिवार की सुख-समृद्धि की कामना भी इसमें निहित होती है. एक मान्यता है कि ये त्यौहार स्त्री के सम्मान में मनाया जाता है. बतुकम्मा से जुड़ी लोक कथाएं सभी त्यौहारों की तरह बतुकम्मा से जुड़ी कई कहानियां लोकमानस में प्रचलित हैं. एक कहानी के अनुसार देवी गौरी ने महिषासुर नामक दैत्य का वध करने के बाद भीषण युद्ध की थकान मिटाने के लिए आराम करना चाहा. इसी दौरान वो गहरी निद्रा में चली गईं. देवी माता को जगाने के लिए कई दिनों तक लोगों ने प्रार्थना की. कहते हैं कि दुर्गा मां दशमी के दिन अपनी निद्रा से जगीं और उसी के उपरांत से इस दिन को बतुकम्मा के रूप में मनाया जाने लगा. बतुकम्‍मा त्‍योहार का इतिहास काफी पुराना है. तेलंगाना के गठन के तुरंत बाद इसे राजकीय पर्व का दर्जा दे दिया गया था. (न्‍यूज 18 हिन्‍दी) दूसरी कहानी चोल शासक धर्मांगद और उनकी पत्नी सत्यवती ने एक युद्ध में अपने 100 बेटों को खो दिया था. बाद में दोनों लोगों ने देवी लक्ष्मी से उनके घर में उनकी बेटी के रूप में जन्म लेने के लिए प्रार्थना किया. कथा है कि थोड़े ही दिन बाद उनके घर में एक पुत्री का जन्म हुआ. कन्या के जन्म के उपरांत दूर-दूर से साधु-संत राजा के महल में पधारे और उन लोगों ने राजा की बेटी को देवी बतुकम्मा कहा. तभी से इस भू-भाग में प्रत्येक वर्ष देवी बतुकम्मा की पूजा धूम-धाम से की जाने लगी. इस रुप में कह सकते हैं कि इस त्यौहार का इतिहास करीब एक हजार साल पुराना है. तेलंगाना का राजकीय पर्व बना बतुकम्मा लंबे आंदोलन के बाद आंध्रप्रदेश विभाजित हुआ और 2014 में तेलंगाना नाम से पृथक प्रांत भारत के मानचित्र पर सामने आया. तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख के. चन्द्रशेखर राव ने शासन की बागडोर संभालते ही बतुकम्मा को राजकीय पर्व का दर्जा दे दिया. केसीआर की बेटी के. कविता ने तेलंगाना आंदोलन से महिलाओं को जोड़ने के लिए बतुकम्मा पर्व के सार्वजनिक आयोजन की शुरुआत की. उन्होंने हैदराबाद के हुसैन सागर किनारे टैंक बंड पर मेगा इवेंट शुरू किया, जो अब एक परम्परा-सी बन गयी है. शहर से लेकर गांव तक में बतुकम्मा समारोहपूर्वक मनाने के लिए टीआरएस सरकार विशेष फंड का प्रावधान करती है. इसी कड़ी में पिछले पांच साल से केसीआर सरकार पूरे प्रदेश में गरीब महिलाओं को मुफ्त में साड़ी भी बांटती है. इस साल भी तेलंगाना में एक करोड़ बतुकम्मा साड़ी बांटने का काम चल रहा है. ग्लोबल हुआ बतुकम्मा पर्व तेलंगाना सरकार की पहल और यहां के भूमि पुत्रों के प्रयास से बतुकम्मा पर्व अब दुनिया के अनेक देशों में मनाया जाने लगा है. अमेरिका, इंग्लैंड, डरबन, दक्षिण अफ्रीफा से लेकर कनाड़ा, डेनमार्क, मेलबर्न आदि देशों में भी तेलुगू भाषी अपने इस लोक पर्व को जोश-उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं. तेलंगाना सरकार के बतुकम्मा पर्व के लिए खासतौर पर बने बेवसाइट पर वैश्विक स्तर पर बतुकम्मा उत्सव के चित्र और वीडियो देखे जा सकते हैं. इस साल भी अनेक कार्यक्रम होने जा रहे हैं, जिसमें आमजन की बड़ी संख्या में भागीदारी होती है. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Festive Season, TelanganaFIRST PUBLISHED : September 25, 2022, 14:57 IST