Twin Towers Demolition: ट्विन टावर धराशायी होने के बाद कोर्ट के फैसले पर पूरा अमल होना जरूरी

Twin Towers Demolition: ट्विन टावर गिराए जाने को भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून की जीत कहा जा रहा है तो कुछ लोग वैकल्पिक पहलुओं पर बहस कर रहे हैं. उनके अनुसार सरकार दोनों टावर गिराने की बजाय, उनका सरकारी या सामाजिक काम के लिए इस्तेमाल हो सकती थी.

Twin Towers Demolition: ट्विन टावर धराशायी होने के बाद कोर्ट के फैसले पर पूरा अमल होना जरूरी
नोएडा में सुपरटेक के दोनों टावर के फ़िल्मी अंदाज़ में जमींदोज होने के बाद लगभग 80 हज़ार टन या 35000 क्यूबिक मीटर निकलने के कयास हैं. इसके निस्तारण के लिए कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के अलावा पर्यावरण के अन्य नियमों का ध्यान रखना होगा. मलबे की बिक्री से शार्टकट पैसे कमाने के चक्कर में नोएडा और यमुना नदी के पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचे, यह सुनिश्चित करना जरूरी है. क्या इन टॉवरों को बचाया जा सकता था पूरी दुनिया में इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून की जीत कहा जा रहा है तो कुछ लोग वैकल्पिक पहलुओं पर बहस कर रहे हैं. उनके अनुसार सरकार शत्रु देश की प्रॉपर्टी को जब्त करके नेक काम के लिए इस्तेमाल को परमिट करती है. तो फिर उसी तर्ज़ पर इन दोनों टावर को गिराने की बजाय, उनका सरकारी या सामाजिक काम के लिए इस्तेमाल हो सकता था. इससे पर्यावरण को हुई बड़ी क्षति को रोकने के साथ आसपास के निवासियों को बढ़े खतरे और असुविधा को भी रोका जा सकता था. लेकिन कहते हैं की क़ानून की देवी के आंखों में पट्टी बंधी है. नए नज़रिए से कही जा रही ऐसी बातों पर विचार के लिए यह जरूरी था कि राज्य या केंद्र सरकार उन्हें अदालत के सामने रखती. लेकिन उन बातों से अगर अन्य बिल्डिंगों के निवासी सहमत नहीं होते तो फिर उन गैरकानूनी बिल्डिंग को गिराने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता. इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2014 और सुप्रीम कोर्ट के अगस्त 2021 के लम्बे चौड़े फैसले को पढ़ने पर ऐसी कई बातों का जवाब मिलता है. दोनों टॉवर का धराशायी होना नागरिक शक्ति का प्रतीक- देश के सभी कस्बों और महानगरों में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे, बिल्डर माफिया नेक्सस और म्युनिसिपल अधिकारियों के भ्रष्टाचार के किस्से आम हैं. ऐसे लाखों मामले विजिलेंस जांच और अदालतों की फाइलों में अटके रहते हैं लेकिन लोगों को राहत नहीं मिलती. लेकिन नोएडा में एमराल्ड कोर्ट के आरडब्ल्यूए के पदाधिकारियों ने सन 2010 में इस लड़ाई को शुरू करके बगैर थके, 12 साल बाद इसे अंजाम तक पंहुचाया. नोएडा अथॉरिटी ने बिल्डर को 2004 में प्लॉट आवंटित किया, जिसमे अगले 8 साल में दो अवैध टावर खड़े हो गए. आरडब्ल्यूए की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2014 में दोनों टावर्स को ध्वस्त करने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ बिल्डर के साथ नोएडा अथॉरिटी ने भी सुप्रीम कोर्ट में लम्बी लड़ाई लड़ी. इसकी वजह से हाईकोर्ट के आदेश को लागू होने में 8 साल से ज्यादा लग गए. इसके पहले सुप्रीम कोर्ट के 2019 के आदेश के अनुसार केरल के मराडू में जनवरी 2020 में 18 मंजिल के कांप्लेक्स को गिराया गया था. लेकिन देश के अनेक शहरों में कई अवैध बिल्डिंग अदालतों के प्रतिकूल आदेश के बावजूद सीना ताने खड़े होकर क़ानून को ठेंगा दिखा रही हैं. टॉवरों को गिरना क्यों जरूरी हो गया दरअसल जिस जगह ये दो टावर थे, वह ग्रीन जोन था जिसमे पार्क और बच्चों के खेलने की जगह थी. वहां पर इन दो टॉवरों को तानकर बिल्डर ने 915 फ्लैट 21 दुकानें और दो बेसमेंट बना कर हज़ारों ग्राहकों को चुना लगा दिया. इसकी वजह से अनेक नियम और कानूनों का उल्लंघन हुआ. हाईकोर्ट के सामने जब यह मामला गया तो पता चला कि बिल्डिंग की मंजूरी के लिए जो कागज दिखाए जा रहे हैं उसमें सक्षम अधिकारी के दस्तखत ही नहीं थे. इन बिल्डिंगों को बनाने में यूपी अपार्टमेंट एक्ट 2010, यूपी इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट एक्ट 1976 और नेशनल बिल्डिंग कोड के अनेक नियमों का उल्लंघन हुआ. हाईकोर्ट में दायर याचिका के अनुसार इन गैरकानूनी टॉवरों की वजह से अन्य इमारत में रहने वाले लोगों की प्राइवेसी खत्म होने के साथ कॉलोनी की मूलभूत सुविधाओं पर बेवजह का बोझ बढ़ जाता. कुतुबमीनार से ऊंचे इस टॉवरों से धुप और रोशनी बाधित होने के साथ वेंटिलेशन भी प्रभावित होता. पीड़ित लोग जो अब हीरो हैं, उन्होंने कोर्ट को बताया की नेशनल बिल्डिंग कोड और फायर रोकने के नियमों का पालन नहीं करने से लोगों की जान को खतरा है. हाईकोर्ट ने माना कि बिल्डर के गैरकानूनी कामों का खामियाजा कानून का पालन करने वाले शरीफ लोगों को नहीं उठाना चाहिए. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कई पहलुओं पर अमल अभी बाकी दोनों टावर रियल स्टेट में बढ़ रहे भ्रष्टाचार के प्रतीक थे. इनको गिराने के साथ कोर्ट ने और भी कई जरूरी आदेश दिए थे जिन पर सही अमल होने से सुशासन की नई इमारत खड़ी हो पाएगी- 1. बिल्डर ने इन दो टॉवरों को बनाने में सिर्फ 200 करोड़ खर्च किये थे. लेकिन निवेशकों की हज़ार करोड़ से ज्यादा की रकम इसमें फंसी है. कोर्ट के आदेश के अनुसार बिल्डर को 12 फ़ीसदी ब्याज के साथ पूरी रकम वापस करना है. जिन निवेशकों ने कैश में पेमेंट किया होगा उन्हें अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. नोएडा और अनेक शहरों में बिल्डर दिवालिया हो रहे हैं, जिससे लाखों निवेशकों का पैसा फंसा है. सुपरटेक टावरों में निवेशकों को बकाया रकम ब्याज के साथ समय पर मिल सके तो उनकी आंशिक क्षति पूर्ति हो सकेगी. 2. कोर्ट के आदेश के अनुसार इस लम्बी लड़ाई के लिए आरडब्ल्यूए को 2 करोड़ का हर्जाना मिलेगा. टॉवरों को गिराने वाली एडिफाईस एजेंसी को तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 17.55 करोड़ की रकम मिल जाएगी. अगल बगल की बिल्डिंग में किसी नुकसान की भरपाई के लिए 200 करोड़ का इंश्योरेंस हुआ था. इसके बाद बच्चों, बूढों और बीमार लोगों के मेडिकल जांच जरूरी है. डिमोलिशन की कवायद से अथॉरिटी, पुलिस, प्रशासन और अन्य निवासियों पर जो आर्थिक बोझ पड़ा है, उसकी भरपाई भी बिल्डर से कराने की जरूरत है. 3. ट्विन टावर को गिराने के आदेश में कोर्ट ने कहा था, म्युनिसिपल अधिकारियों को नागरिकों के हितों के लिए काम करना चाहिए. फैसले में कोर्ट ने नगरीय प्रशासन और कानून का पालन करने वाले लोगों के अधिकारों की रक्षा की बात कही है. कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी और बिल्डर के बीच भ्रष्ट रिश्ते को भी अपने आदेश में उजागर किया है. इस आदेश की सफलता के बाद नोएडा और दूसरे शहरों में बिल्डर के भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ अदालत के पेंडिंग आदेशों पर अमल करने की जरूरत है. देश की राजधानी से सटे नोएडा के जागरूक लोगों ने पहले एक नेता और फिर महिला वकील को जेल की राह दिखाई. उसके बाद अब सुपरटेक के आरडब्लूए की दो दशक लम्बी लड़ाई को अंजाम तक पंहुचने से क़ानून के शासन की धमक पूरे देश में महसूस हो रही है. इन टॉवरों के धराशायी होने से उस नागरिक शक्ति का भी सुखद एहसास होता है, जिनके योगदान से 25 साल बाद नए भारत के निर्माण का सपना साकार हो सकता है. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Supertech twin tower, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : August 28, 2022, 18:05 IST