उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) की निजी जिंदगी बहुत उतार-चढ़ाव भरी रही. उनकी तीन शादियां हुईं. साल 1899 में जब गोविंद बल्लभ पंत महज 12 साल के थे तब उनकी पहली शादी हुई. साल 1909 में पंत की पहली पत्नी गंगादेवी का बच्चे को जन्म देते वक्त निधन हो गया. इसके बाद साल 1912 में पंत की दूसरी शादी हुई. दूसरी पत्नी भी 2 साल बाद गुजर गईं. आखिरकार साल 1916 में उन्होंने तीसरी बार शादी की.
कैसा था शुरुआती जीवन
गोविंद बल्लभ पंत अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव में 10 सितंबर 1887 को जन्में थे. उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से साल 1907 में ग्रेजुएशन किया. फिर 1909 में यहीं से लॉ की डिग्री हासिल की. कॉलेज के दिनों में ही वह राजनीतिक रैलियों और सभाओं में हिस्सा लेने लगे. वरिष्ठ पत्रकार श्यामलाल यादव रूपा पब्लिकेशन से प्रकाशित अपनी किताब ‘एट द हार्ट ऑफ पावर: द चीफ मिनिस्टर्स ऑफ उत्तर प्रदेश’ में लिखते हैं कि गोविंद बल्लभ पंत जब बीए फर्स्ट ईयर में थे तब 1905 में पहली बार बनारस में कांग्रेस के एक कैंप में कार्यकर्ता के तौर पर शामिल हुए. उस कैंप की अध्यक्षता गोपाल कृष्ण गोखले कर रहे थे. इसके बाद साल 1908 में प्रयागराज के कुंभ में कांग्रेस का एक कैंप लगा.
क्यों कॉलेज से निकाले गए?
कुंभ के उस कैंप में गोविंद बल्लभ पंत ने बहुत जोरदार भाषण दिया. उनका भाषण इलाहाबाद यूनिवर्सिटी प्रशासन को नागवार गुजरा. पंत को कॉलेज से निकाल दिया गया और उनके परीक्षा में शामिल होने पर पाबंदी लगा दी गई. बाद में उनके कुछ शिक्षकों और पंडित मदन मोहन मालवीय के हस्तक्षेप से उन्हें परीक्षा देने की इजाजत मिली.
क्रांतिकारियों का मुकदमा लड़ा
लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद गोविंद बल्लभ पंत अल्मोड़ा लौट आए और साल 1910 में अल्मोड़ा में वकालत शुरू की. कुछ दिनों बाद रानीखेत आ गए और फिर काशीपुर. यहीं साल 1914 में उन्होंने प्रेम सभा नाम की एक संस्था शुरू की. पंत देखते ही देखते देश के नामी वकीलों में शुमार हो गए. उन्होंने काकोरी कांड में क्रांतिकारियों का मुकदमा लड़ा. साल 1927 में कांग्रेस ने उन्हें आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत का अध्यक्ष नियुक्त किया.
वो चोट जो जीवन भर परेशान करती रही
साल 1928 में जब साइमन कमीशन आया तो उसके खिलाफ देश भर में प्रदर्शन शुरू हो गए. यह कमीशन 30 नवंबर 1928 को लखनऊ पहुंचा. इसके विरोध में कांग्रेस ने बड़ी सभा बुलाई. जवाहरलाल नेहरू खुद इसकी अगुवाई कर रहे थे. उनके साथ गोविंद बल्लभ पंत भी मौजूद थे. श्यामलाल यादव लिखते हैं कि प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज हो गया. इस लाठीचार्ज में नेहरू को चोटें आईं, लेकिन सबसे ज्यादा चोटिल गोविंद बल्लभ पंत हुए. वह 6 फीट के लंबे-तंबे कद थे और आसानी से नजर आ जाते थे. इसलिये पुलिसवालों ने उन्हें निशाना बनाया. उनकी पीठ पर एक लाठी इतनी जोर से पड़ी कि उसका दर्द आजीवन उनके साथ रहा.
जमींदारी प्रथा खत्म की
गोविंद बल्लभ पंत 1952 में उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री नियुक्त हुए. 1952-53 में जब उन्होंने अंतरिम बजट पेश किया तो एक ऐसा ऐलान किया जिससे उनके खिलाफ मोर्चा खुल गया. पंत ने जमींदारी प्रथा खत्म करने का ऐलान कर दिया. यह फैसला किसानों के नजरिए से तो क्रांतिकारी था लेकिन जमीनदार वर्ग इसका तीखा विरोध कर रहा था. हालांकि वह पीछे नहीं हटे. कुमाऊं और गढ़वाल (जो तब यूपी का हिस्सा था) के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर जमींदारी वाला कानून कड़ाई से लागू किया गया.
Tags: Congress, UP CM, Uttar pradesh cmFIRST PUBLISHED : September 10, 2024, 12:26 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed