IAS पूजा की जिस हरकत पर मचा बवाल उन्हीं बत्तियों पर जगमगाते हैं सपने

लाल-नीली बत्तियां अफसशाही का सिंबल रही हैं. बहुत सारे लोगों के आई ए एस बनने के सपने की झलक इन्ही बत्तियों की रोशनी से मिलती है. लगता है महाराष्ट्र की ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर की तमन्ना भी इन्ही बत्तियों से जगमग हुए हैं. अंग्रेजी में इसे बीकॉन लाइट कहते हैं.

IAS पूजा की जिस हरकत पर मचा बवाल उन्हीं बत्तियों पर जगमगाते हैं सपने
हाइलाइट्स MV एक्ट में संशोधन के बाद भी बत्ती वाली गाड़ियों का रुतबा बरकरार बत्ती वाली गाड़ी में बैठ आम से खास आदमी बनने की तमन्ना बहुतों की बड़ा अफसर बन सुविधाएं पाने के सपने बचपन में 'बो' दिए जाते हैं लाल-नीले फ्लैशर वाली बत्ती. गोल गोल घूमती, चमकती रोशनी से आम आदमी की आंखें चौंधियां जाती हैं. समझ में आ जाता है गाड़ी में कोई बड़ा आदमी है. वीआईपी है, अफसर है. आम आदमी खबरदार हो जाता है. गाड़ी वाले के रुआब से दब जाता है. इस सब के बीच गाड़ी में बैठा आदमी थोड़ा और चौड़ा हो जाता है. ये नजारे आजाद भारत में 2017 तक खूब दिखते रहे. 2017 में मोटर वाहन कानूनों में बदलाव किया गया तब जाकर दिखना कुछ कम हुआ. फिर भी बहुतों के दिमाग में अब भी लाल-नीली बत्ती वाली गाड़ी का रुतबा तैरता ही रहता है. बीकॉन लाइट वाली गाड़ी का जुमला आईएएस बनने के अर्थ में भी रुढ़ हो गया है. बहुत सारे मां-बाप अपनी संतानों को बचपन से ये सपना देखने की आदत डाल देते हैं. पढ़ाई लिखाई का ऐसे लोगों के लिए एक ही मतलब होता है. रुतबा, रुआब और हनक. आम से खास आदमी बन जाना. खास लाल नीली बत्ती वाली गाड़ी के साथ. लगता है इसी का एक सुबूत ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर हैं. पूजा को सपने की जगमग रोशनी हासिल करने की इतनी जल्दी थी कि उन्होंने बगैर अधिकार के ट्रेनिंग के दौरान ही अपनी प्राइवेट गाड़ी पर बत्ती लगवा ली. ये तो सच है कि महाराष्ट्र वाली पूजा खेडकर ने आईएएस की परीक्षा पास की है. हां, उनके रैंक को लेकर सवाल उठ रहे हैं. देर सबेर सवालों के ठीक ठीक जवाब भी आ ही जाएंगे. लेकिन इस पूरे प्रकरण में देखने में ये आ रहा है कि पूजा की तमन्नाओं में लाल नीली बत्ती वाली गाड़ी शुरु से ही रही है. तभी उन्होंने अपनी प्राइवेट गाड़ी पर शान वाली ये बत्ती कानूनों के विपरीत जा कर लगवा ली. लाल-नीली बत्तियों का दौर 2017 में मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन से पहले मंत्रियों और अफसरों की गाड़ियों पर लाल-नीली बत्ती खूब दिखती थी. मंत्रियों के अलावा आईएएस और पीसीएस कैडर के अफसर भी अपनी गाड़ियों पर बत्तियां लगाते थे. अलग अलग राज्यों में इनके रंग अलग अलग थे. हालांकि तकरीबन सभी राज्यों में मंत्रियों की गाड़ियों पर फ्लैशर, मतलब घूमती रोशनी वाली बड़ी सी लाल बत्ती होती ही थी. साथ में सायरन भी बजता था. बत्ती इतनी बड़ी होती थी कि ड्राइवर मंत्रियों को पहनाई गई फूलों की माला बत्ती पर ही लपेट देते थे. खैर, बात बत्ती लगाने के अख्तियार की है, तो उत्तर प्रदेश में जिले के डीएम, एसपी, डिस्ट्रिक एंड सेशंस जज, सीएमओ, बड़ी वाली नीली बत्ती वाहन के छत पर लगाते थे. इनमें घूमने वाला फ्लैशर होता था. जबकि पीसीएस स्तर के अफसर थोड़ी छोटे आकार वाली बिना फ्लैशर की बत्ती लगाते थे. ये भी पढ़ें : पुलिस-प्रशासन से कैसी मिलती है किसी कार्यक्रम की परमिशन, भगदड़ जैसे हालात न हों, क्‍या होता है पूरा प्रोसेस… एसपी-डीएम और जिला जज यहां ये ध्यान देने वाली बात है कि जिले के इंचार्ज एसएसपी या एसपी, डीएम और जज को ही फ्लैशर वाली बत्ती लगाने का अधिकार था. बाकी अफसरों को बत्ती नहीं मिलती थी. फिर भी सभी अलग अलग तर्कों के आधार पर लगाते थे. मसलन, सीएमओ इमरजेंसी सेवा का जिले का सबसे बड़ा अफसर होता है. एडीएम और एसडीएम भी इमरजेंसी में बड़ी जिम्मेदारियां निभाते हैं. लिहाजा सरकारी अफसरों की गाड़ियों पर बत्तियों पर कोई रोक नहीं होती थी. बाकी एंबुलेंस, फायर ब्रिग्रेड और दूसरे राहत वाहनों पर पहले भी पुलिस के वाहनों पर बत्तियां जरुरी होती थी लेकिन 1990 के आखिर तक थाने को मिलने वाली जीपों पर बत्तियां नहीं होती थी. बाद में इन पर भी लाल नीली बत्तियां लगाई जाने लगी. डीआईजी,आईजी, एडीजी और डीजी के वाहनों पर सेना की तरह लाइट और फ्लैग लगाने नियम हैं. उनकी गाड़ियों पर सितारे (स्टार) वाले नीले रंग की प्लेट भी लगाई जाती है. ये दरअसल उनके रैंक का प्रतीक है. लिहाजा उन्हें अलग से छूट रही है. जबकि आईएएस अफसरों के लिए रैंक वाली प्लेट नहीं होती. 2017 में वीआईपी कल्चर का खात्मा बहरहाल, मोदी सरकार बनने के बाद मई 2017 में लाल नीली बत्तियों के इस्तेमाल के कानून में सुधार किया गया. सरकार ने वीआईपी कल्चर खत्म करने के मकसद से नियम बना दिया किसी को भी वीआईपी दिखने के लिए बत्ती लगाने का अख्तियार नहीं रहेगा. इसकी जद में मंत्रियों और हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जजों को भी लाया गया. सिर्फ भारत के चीफ जस्टिस को इससे छूट दी गई. नियम में ये भी कहा गया कि इसका कोई अपवाद नहीं होगा. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एक आदेश में केंद्र से कहा था कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के अलावा लाल बत्ती का प्रयोग गाड़ी पर करने वालों को कठोर अर्थदंड का नियम बनाया जाय. बहरहाल, सरकार ने मोटर वाहन कानून में संशोधन करके ये तय कर दिया कि महज इमरजेंसी सेवाओं में काम करने वाली गाड़ियों पर लाल-नीली बत्तियां लगाई जा सकेंगी. मंत्रियों के लिए लाल बत्ती गाड़ियां वेटिंग में! ये जानना भी रोचक होगा कि राज्यों का परिवहन विभाग जिलों में गाड़ियों के साथ इन लाल बत्तियों को भी रखता था. जब भी कोई मंत्री हवाई जहाज या रेलगाड़ी से किसी जिले में जाता तो उसे स्टेट रोडवेज से बत्ती वाली गाड़ी मुहैया कराई जाती थी. खैर, बात आईएस ट्रेनी पूजा खेडकर के अपनी गाड़ी पर बत्ती लगाने से निकली थी. पूजा को तो बत्ती वाली गाड़ी का बिल्कुल ही अख्तियार नहीं था. वे अभी अपने ट्रेनिंग में हैं. ट्रेनिंग के दौरान आईएएस अफसर को सिर्फ प्रशिक्षण दिया जाता है, गाड़ी और बंग्ला नहीं. वैसे भी ये ट्रेनिंग बहुत थोड़े दिनों की होती है. हां, जिस दिन जिले में अफसर के तौर पर तैनाती हो जाती है, उस दिन से वे वाहन की हकदार हो जातीं. लेकिन नियमों के मुताबिक डीएम के तौर पर तैनाती से पहले बत्ती की हकदार नहीं होतीं. Tags: IAS Officer, Maharastra news, UPSC ExamsFIRST PUBLISHED : July 16, 2024, 13:01 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed