बोले के हाथ पर देबे के फूल पर कैसे चुनाव में लोकल फैक्टर हो रहा डिकोड

Loksabha Chunav 2024: ऐसा नहीं है कि भूमिहारों का एकमुश्त वोट अजय निषाद को गया हो. भूमिहार ब्राह्मण फ्रंट के सकरा ब्लॉक के एक नेता ने राज खोला- बोलना है हाथ पर, गया है फूल पर. यही तो बिहार की पॉलिटिक्स है. असली-असली जानकारों की हालत खराब कर देती है.

बोले के हाथ पर देबे के फूल पर कैसे चुनाव में लोकल फैक्टर हो रहा डिकोड
बोले के हाथ पर, देबे के फूल पर. और देने के बाद भी इसी को दोहराना है क्योंकि दो फेज बाकी हैं. बात बिहार के मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र की हो रही है. 20 मई को वोटिंग हो चुकी है. लेकिन बगल वाली वैशाली सीट पर 25 मई को होनी है. मुजफ्फरपुर में टैक्टिकल वोटिंग ही नहीं हुई है. कैंपेनिंग भी हुई है और इसका लेना-देना आस-पास की कई लोकसभा सीटों से है. मुजफ्फरपुर में एनडीए और महागठबंधन ने कैंडिडेट की अदला-बदली कर ली. बीजेपी से सांसद अजय निषाद इस बार कांग्रेस से लड़े तो कभी वीआईपी से निषाद के खिलाफ लड़ने वाले राजभूषण बीजेपी से लड़े. अजय निषाद के पापा कैप्टन जयनारायाण निषाद यहां 1996, 98, 99 और 2009 में जीते. फिर विरासत बेटे के पास. इस बार इंटरनल फीडबैक खराब था. तो पार्टी ने टिकट काट दिया. लेकिन राजभूषण को टिकट देने से बेचैनी फैल गई. दरअसल, यहां भूमिहार और मल्लाह वोट हार-जीत तय करते हैं. मुजफ्फरपुर के ही बोचहां विधानसभा उपचुनाव में भूमिहारों ने आरजेडी के पक्ष में बंपर वोटिंग कर एक बीजेपी को तगड़ा मैसेज दिया था. बेबी कुमारी हार गईं और आरजेडी के अमर पासवान जीत गए. ये बात 2022 की है, जब जेडीयू-बीजेपी यू-टर्न पॉलिटिक्स के उस दौर में साथ थी. खुश जेडीयू आलाकमान भी थी. 2020 में जिस तरह जेडीयू कैंडिडेट्स हारे थे, उसमें उन्हें बीजेपी का खेल समझ आ रहा था. बीजेपी की हार के पीछे पार्टी के बड़े नेता सुरेश शर्मा और भूमिहार-ब्राह्मण फ्रंट चला रहे कांटी के पूर्व विधायक अजीत कुमार की अहम भूमिका रही. इस बार राजभूषण को समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर लाने पर भूमिहारों में फिर नाराजगी है. खास कर तब जब तेजस्वी यादव ने वैशाली से भूमिहार डॉन रहे मुन्ना शुक्ला को टिकट दिया है. इसका असर आस-पास की कई सीटों पर है. कहीं वोटिंग हो चुकी और कुछ सीटों पर बाकी है. क्यों है भूमिहारों की नाराजगी? अब भूमिहारों की नाराजगी इस बार तेज क्यों है, ये समझिए. फोन पर शहर के कच्ची-पक्की चौक पर रहने वाले कुछ लोगों से बात हुई. उनका कहना था-‘बीजेपी ने क्या मुजफ्फरपुर को मलाह के हाथ बेच दिया है. यहां कोई लोकल नेता नहीं दिखा. छह बार बड़े-छोटे निषाद को हमने देख लिया. इस बार तो भूमिहार को टिकट देता. नहीं, ले आए समस्तीपुर के मल्लाह डॉक्टर को. तो हम लोग भी कुछ करेंगे न. जब ऐसा ही है तो पुरनके निषाद जी में क्या दिक्कत है.’ किसे गया भूमिहारों का एकमुश्त वोट ऐसा नहीं है कि भूमिहारों का एकमुश्त वोट अजय निषाद को गया हो. भूमिहार ब्राह्मण फ्रंट के सकरा ब्लॉक के एक नेता ने राज खोला- बोलना है हाथ पर, गया है फूल पर. यही तो बिहार की पॉलिटिक्स है. असली-असली जानकारों की हालत खराब कर देती है. हमने पूछा ऐसा क्यों भाई. जवाब मिला- अरे, ऐसा नहीं बोलेंगे तो वैशाली में मल्लाह मुन्ना शुक्ला को वोट नहीं देगा. हवा बनानी है कि भूमिहार वोट कांग्रेस को गया है. तब उधर मुन्ना शुक्ला आसानी से निकल जाएंगे. एनसीआर नहीं समझ आएगा वोटिंग ट्रेंड मैंने अपने गांव के दो बूथ पर हुई वोटिंग का ट्रेंड समझने की कोशिश की. जिस बात की कल्पना यहां एनसीआर से नहीं की जा सकती. वैसा जमीन पर हो रहा है. हमारे गांव में सबसे ज्यादा वोटर अनुसूचित जाति के हैं. इनमें राम समुदाय के वोटर ज्यादा हैं और पासवान समुदाय के कम. पता चला पासवान वोट 10-20 परसेंट छोड़ बीजेपी को गया लेकिन राम समुदाय का वोट एकमुश्त कांग्रेस को गया. मैंने अपने बचपन के दोस्त रमेश राम से पूछा कि ये क्या हो रहा है. वो पंजाब में जलछत का काम करता है. वोटिंग के लिए गया है. उसने बताया –अरे यहां तो 400 पार, 400 पार से ही गड़बड़ हुआ है. समाज के लोग मोदी सरकार चाहते हैं लेकिन 400 क्यों चाहिए इस पर डर है कि संविधान बदल देंगे. 2014 और 19 से कैसे अलग है यह चुनाव? मेरी समझ एसी ऑफिस में बैठे-बैठे तो यही थी कि गांव में I.N.D.IA गठबंधन संविधान बदलने का डर नहीं फैला पाएगी. लेकिन कुछ तो है. साथ ही 2014 और 2019 के उलट एकदम लोकल मोहल्ले के स्तर पर विकास की बात लोकसभा चुनाव में हो रही है. मतलब सिर्फ मोदी फैक्टर नहीं जैसा पहले के दो चुनावों में था. लोकसभा चुनाव 2024 में लोकल फैक्टर का टेस्ट चल रहा है. पांच चरणों के चुनाव हो चुके हैं. दो बाकी हैं. कुल सात चरणों ने लोकल फैक्टर को फलने-फूलने का मौका दिया. अगर एक या दो चरण में वोटिंग हो जाए तो नए मन-भेद नहीं बनते. लेकिन इस बार बिल्कुल उलट हो रहा है. पहले फेज में जाटलैंड में क्या हुआ, उसकी रीडिंग अगले तीन फेज तक होती है. राजा भैया बदल जाते हैं. संगम लाल गुप्ता और विनोद सोनकर जैसे बीजेपी कैंडिडेट मंच पर भावुक होने लगते हैं. यूपी-बिहार में लोकल फैक्टर की एंट्री तो उधर बिहार में अनंत सिंह परोल पर बाहर आते हैं. इंटरव्यू लेने वालों को बेदम कर देते हैं और मुंगेर से ललन सिंह को जितवाने का वादा करते हैं. लोकल के लिए वो बहुत वोकल हैं. एक से तो साफ कहते हैं.. मुंगेर से आगे कुछ जनबै नहीं करते हैं. मुंगेर से ललन सिंह के खिलाफ डॉन अशोक महतो की बेगम खड़ी हैं. लिहाजा नीतीश कुमार को उसी लेवल के नेता की जरूरत थी. परोल ने ये पूरी कर दी. संयोग देखिए अशोक महतो लोकल फैक्टर और बढ़ा ले जाते हैं. नालंदा, राजगीर, बख्तियारपुर, मोकामा में महतो की पुरानी रंगबाजी याद आने लगती है. अब वहां के लोग बता रहे कि इसका असर तो पड़ेगा. एक बात तय है कि कोई लहर नहीं है, हवा हो सकती है. मोदी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर तो कतई नहीं है. और यहीं मामला फंस भी रहा है क्योंकि मोदी की अपनी लहर का आवेग 2019 जैसा नहीं है. इसीलिए यूपी-बिहार में लोकल फैक्टर का प्रेवश हुआ है. मेरे हिसाब से अंतिम नतीजों पर इसका ज्यादा असर नहीं होगा लेकिन लर्निंग लेसंस कई होंगे. Tags: Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, Muzaffarpur newsFIRST PUBLISHED : May 22, 2024, 13:49 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed