पर्यावरण के लिए गांव-गांव जाता है ये युवक उसकी मुहिम के मुरीद हो रहे हैं लोग
पर्यावरण के लिए गांव-गांव जाता है ये युवक उसकी मुहिम के मुरीद हो रहे हैं लोग
पहले पैदल चल कर करते थे पौधारोपन, पैदल ही किया नेपाल तक का सफ़र. अब साइकिल से देश भर में घूम कर देते हैं पर्यावरण संरक्षण का संदेश. अब तक लगा चुके हैं कुल 1 लाख 32 हज़ार 455 पौधे.
25-26 साल की उम्र में लोग अक्सर शान-ओ – शौकत के ख्वाब देखते हैं और हर कोई लग जाता है जिंदगी की जद्दोजहद के बीच अपने ख्वाबों को पूरा करने में. लेकिन उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के रहने वाले सुंदरम अपनी उम्र के बाकी युवाओं से काफी अलग हैं. क्योंकि 25 की उम्र में पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी त्याग कर वह पौधरोपण में लग गए. इतनी कम उम्र में ही उन्होंने अपना जीवन पौधरोपण और पर्यावरण संरक्षण को समर्पित कर दिया है. सुंदरम ने अपने इस सफर की शुरुआत 2017 में मन में पर्यावरण संरक्षण का दृढ़ निश्चय और हाथों में कुछ पौधे लेकर की थी. पिछले पांच वर्षों में वह कई राज्यों में जाकर पौधरोपण कर चुके हैं.
न्यूज 18 से बातचीत के दौरान वह विस्तार से चर्चा करते हैं अपने इस सफर के बारे में. वह बताते हैं कि उनका यह पांच साल का सफर दो भागों में बंटा हुआ है. दरअसल, पहले वह पैदल चलकर ही अलग-अलग जगह जाकर पेड़-पौधे लगाते थे और लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक भी करते थे. वह बताते हैं कि पैदल चलकर गांव-गांव जाने के पीछे का उनका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण संरक्षण के साथ ही सेहतमंद रहने के लिए प्रेरित करना भी था.
उन्होंने सबसे पहले शुरुआत की अपने राज्य उत्तर प्रदेश से. उन्होंने उत्तर प्रदेश के 12 जिलों की यात्रा करते हुए वहां पौधरोपण किया. उनके मुताबिक पौधरोपण के लिए सबसे उपयुक्त जगह गौशाला है क्योंकि वहां खाद, पानी आदि निशुल्क उपलब्ध होता है. इसके बाद बिहार की यात्रा करते हुए वह नेपाल की राजधानी काठमांडू पहुंचे. उन्होंने काठमांडू में भी पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के लिए पौधरोपण किया और फिर वापस स्वदेश लौट आए.
नेपाल से लौटने के कुछ वक़्त बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से पुनः अपना पौधरोपण का सफर आरंभ किया. पर इस बार अंतर केवल इतना था कि वह पैदल नहीं बल्कि साइकिल पर निकले थे. वह कहते हैं कि अपनी साइकिल पर एक थैली टांग कर वह निकल पड़े पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक और सचेत करने.
देना चाहते हैं तीन संदेश
साइकिल पर थैली टांगने के पीछे का कारण पूछने पर वह बताते है कि पहले गांव के हर घर में एक साइकिल होती थी और लोग अपनी साइकिल पर थैली टांग कर ही सामान लेने जाते थे इससे प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं होता था. अपने इस सफर से वह तीन संदेश देना चहते हैं – पहला साइकिल एकदम ईको- फ्रेंडली वाहन है. इससे ना कोई ध्वनि प्रदूषण होता है और ना ही वायु प्रदूषण. दूसरा वह कहते हैं कि साइकिल चलाने से लोग स्वस्थ रहेंगे और तीसरा उनकी थैली से प्रेरित होकर लोग प्लास्टिक को त्याग कपड़े की थैली का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित होंगे.
कहां से ली प्रेरणा
उनके प्रेरणा स्रोत के बारे में पूछने पर वह बताते हैं कि पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई) में भारत आखिरी पायदान पर है. इतना ही नहीं बल्कि दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में आधे से ज्यादा नाम भारत के शहरों के हैं. दिन प्रतिदिन भारत की स्थिति बिगड़ती ही जा रही है इसलिए उन्होंने पर्यावरण संरक्षण पर अनुसंधान शुरू किया और स्वयं इसका बीड़ा उठाने का निर्णय लिया.
किया कई राज्यों का सफर
वह बताते हैं कि अब तक उन्होंने दस राज्यों और एक देश का सफर तय किया है. इन दस राज्यों के सफ़र के दौरान उन्होंने 18 हज़ार स्कूल, कॉलेजों और पंचायतों में जन सभाएं की हैं. उन्होंने अब तक साइकिल चलाकर कुल छह हज़ार किलोमीटर की दूरी तय की है. वह हर दिन करीबन 70 किलोमीटर साइकिल से तय करते हैं. 2017 में शुरू किए गए इस 5 वर्षीय सफर में अब तक उन्होंने 1 लाख, 32 हजार, 455 पौधे लगाए हैं.
गांव के लोग करते हैं थोड़ी-बहुत मदद
सुंदरम ने पिछले पांच सालों से अपना पूरा समय पर्यावरण संरक्षण को समर्पित किया है. वह बताते है कि वह जिस भी गांव में जन सभा करते हैं वहां उनसे कुछ लोग अवश्य प्रेरित होते हैं और उनके साथ जुड़ना चाहते हैं. वहीं दूसरी और कुछ लोग आशीर्वाद के तौर पर उनकी थोड़ी बहुत सहायता कर देते है. उनके मुताबिक उनकी यह यात्रा केवल और केवल उनके परम मित्र के सहयोग से ही अब तक जारी है. उनके परम मित्र राहुल त्रिपाठी का गोरखपुर में व्यवसाय है और वह बतौर एक मित्र उनसे जो बन पाता है वह करते हैं. सुंदरम का मानना है कि ऐसे ही कुछ लोगों की सहायता और साथ की वजह से वह इतनी दूर तक आ पाए हैं.
रास्ते में आती हैं कई दिक्कतें
वह कहते हैं खाने से लेकर सोने तक हर चीज की दिक्कत आती है. वह साइकिल पर अपने साथ ज़्यादा सामान लेकर नहीं चल सकते हैं इसलिए उनके पास केवल दैनिक जरूरतों की बहुत ही सीमित चीजें हैं. वह बताते हैं कि वह कुछ भी खा लेते हैं और कहीं भी सो जाते हैं. कई बार तो वह पेट्रोल पंप और खुले आसमान के नीचे मैदान में भी सोये हैं. तो कई दफा मच्छरों के चलते सोये ही नहीं.
अमृतसर में चोरी हो गया था फोन
उनके मुताबिक एक दिन सुबह-सुबह सात बजे अमृतसर में दो लोग उनका फोन छीन कर भाग गए थे. जिसके बाद उन्होंने पुलिस से शिकायत की जो कि बेअसर रही. वह कहते हैं कि पुलिस वालों ने उल्टा उनसे ही कहा कि उन्हें पहले से सूचित करके आना चाहिए था. इस घटना का उनके मनोबल पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा था पर उन्होंने खुद को समझाया और इस पथ पर आगे चलते रहे.
परिवार वाले थे चिंतित
वह कहते हैं कि उन्होंने बी फार्मा किया और उसके तुरंत बाद ही वह इस कार्य में जुट गए. उनके इस निर्णय से उनके परिवार वाले काफी चिंतित थे. वे कहते कि इससे कैसे गुजारा होगा, कोई काम धंधा करना चाहिए. यह सब क्या शुरू कर दिया. आस-पास के लोग भी मजाक उड़ाते थे. पर सुंदरम ने किसी की बातों को खुद पर हावी नहीं होने दिया और अपने निर्णय पर अटल रहे.
सरकार ने नहीं की कभी कोई मदद
वह कहते हैं कि उन्हें इस बात का काफी दुख है कि ना ही कभी राज्य सरकार की तरफ़ से और ना ही कभी केंद्र सरकार की तरफ से उन्हें सराहा गया. वह अलग-अलग राज्यों में जाते तब भी सरकार की तरफ से कभी कोई मदद उपलब्ध नहीं कराई गई.
भविष्य की नीति
वह बताते हैं कि उन्होंने लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से इस सफर की शुरुआत की थी और वह एक जन आंदोलन लाना चाहते है जहां हर व्यक्ति पर्यावरण के प्रति सचेत हो और पर्यावरण संरक्षण के लिए जिम्मेदार हो.
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