घुसपैठ का शोर मचाती रही BJP झारखंडियों ने सरमा चौहान को ही समझ लिया बाहरी

Jharkhand Chunav: ये चुनाव परिणाम एक और बात बताते हैं कि दिल्‍ली से थोपे गए नेताओं के दम पर चुनाव जीतना असान नहीं है. चुनावी रणनीति में झारखंड के नेताओं की अहम भागीदारी कम ही रखी गई. बिहार-झारखंड जैसे राज्‍यों में वोटर्स के मानस को समझना बाहरी नेताओं के वश की बात नहीं है.

घुसपैठ का शोर मचाती रही BJP झारखंडियों ने सरमा चौहान को ही समझ लिया बाहरी
झारखंड के मतदाताओं ने भी महाराष्‍ट्र की तरह ही मौजूदा सरकार की वापसी करा दी. नई सरकार में मंत्री बनने वालों की मौज आने वाली है, क्‍योंकि उनके लिए 115 करोड़ की लागत से 11 नए बंगले बनकर लगभग तैयार हैं. यानि एक बंगला 10.5 करोड़ का. लेकिन, जनता की ऐसी मौज नहीं आने वाली है. उसे तो चुनावी वादों के भरोसे ही रहना होगा. और, मुश्किल यह कि ये वादे पूरे करने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं होंगे. सत्‍ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने घोषणा की है कि दोबारा सरकार बनाते ही, दिसंबर 2024 से मंईयां सम्‍मान योजना के तहत ढाई गुना ज्‍यादा (2500 रुपये हर माह) पैसा देंगे. प्रति व्‍यक्ति मिलने वाला राशन भी पांच किलो से बढ़ाकर सात किलो करने का वादा है. गैस सिलेंडर 450 रुपये में देने की भी घोषणा की है. दस लाख नौजवानों को नौकरी-रोजगार देने का भी वादा है. वादे और भी हैं, लेकिन इनके लिए पैसा कहां से आएगा, इसका कोई हिसाब नहीं है. नई सरकार के पास खजाने में महज 6000 करोड़ रुपये होंगे. एक अनुमान के मुताबिक मार्च 2025 तक मंईयां और गोगो दीदी जैसी योजनाओं के लिए ही करीब 8000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी. ऐसे में जनता के पास विकास के लिए इंतजार करने के अलावा शायद ही कोई दूसरा विकल्‍प हो. ऐसे में हेमंत सोरेन फिर से मुख्‍यमंत्री बनते हैं तो उनकी परेशानी बढ़ने ही वाली है. यह तो हुआ चुनावी नतीजों का एक आर्थिक पहलू. अब कुछ राजनीतिक पहलुओं पर नजर डालते हैं. दोहराया 2019 का ‘खेला’, वोट को सीटों में नहीं बदल पाई भाजपा झारखंड में वोटों की गिनती से जो संकेत मिल रहे हैं, उनसे यही लगता है कि बीजेपी इस बार भी पिछली बार की तरह अपने वोट को सीटों में बदलने में कामयाब नहीं रही. 2019 में 33.37 प्रतिशत वोट पाकर बीजेपी को 30.86 प्रतिशत (25) सीटें ही मिल पाई थीं, जबकि जेएमएम को महज 18.72 प्रतिशत वोट मिले थे. लेकिन, जेएमएम को मिली सीटों (30) का प्रतिशत 37.04 था. इस बार भी चुनाव आयोग के मुताबिक बीजेपी को 33.18 प्रतिशत वोट मिले, जबकि जेएमएम को 23.44 प्रतिशत. बीजेपी का वोट प्रतिशत लगभग पिछले चुनाव जितना ही है, लेकिन उसका सीट प्रतिशत पिछली बार से भी कम है. उसे केवल 21 सीटें मिली हैं. झारखंड में वोट प्रतिशत के मामले में भाजपा हमेशा सबसे आगे रही है. 2005, 2009, 2014 और 2019 के चुनावों में भाजपा का वोट प्रतिशत क्रमश: 23.57, 20.18, 31.26 और 33.37 रहा. इन चुनावों में इसके सीटों का प्रतिशत क्रमश: 37.04, 22.22, 45.68 और 30.86 प्रतिशत रहा. इन चुनावों में बीजेपी द्वारा जीती गई सीटों की संख्‍या क्रमश: 30, 18, 37, 25 रही. 2005 से 2019 के बीच जेएमएम का वोट शेयर क्रमश: 14.29, 15.20, 20.43, 18.72 प्रतिशत रहा है. इन चार चुनावों में जेएमएम का सीट प्रतिशत क्रमश: 20.99, 22.22, 23.46, 37.04 प्रतिशत रहा है. जेएमएम द्वारा जीती गई सीटें क्रमश: 17, 18, 19 व 30 रहीं. घुसपैठ का मुद्दा उठाने वाली भाजपा नेताओं को ही मान लिया ‘बाहरी’? झारखंड में बीजेपी ने जिस घुसपैठ को मुद्दा बनाया था, जनता ने उस पर ध्‍यान नहीं दिया. उल्‍टे ऐसा लगता है जैसे उसने भाजपा का चुनाव अभियान संभालने वाले भाजपाई नेताओं को ही ‘बाहरी’ मान कर उनकी बातों को अनसुना कर दिया. शिवराज सिंह चौहान (चुनाव प्रभारी), हिमंता बिस्‍वा सरमा (सह पर्यवेक्षक) जैसे नेताओं से झारखंड की नब्‍ज समझने में गलती हुई. आदिवासी सेंटीमेंट वाले राज्‍य में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का एजेंडा नहीं चल पाया. मध्‍य प्रदेश में सत्‍ता की चाबी अपने पास रखने की छवि बना चुके शिवराज सिंह चौहान उस राज्‍य के बाहर पहली चुनावी जिम्‍मेदारी सफलतापूर्वक नहीं निभा सके. यह बात अलग है कि महाराष्‍ट्र की जीत के शोर में झारखंड की हार दब कर रह जाए. झारखंड के चुनाव परिणामों से एक और बात फिर से साबित हुई है कि नरेंद्र मोदी के नाम पर अब हर जगह चुनाव नहीं जीता जा सकता. वैसे, यह भी सच है कि झारखंड में भाजपा का सबसे अच्‍छा प्रदर्शन 2014 में ‘मोदी लहर’ के दौरान ही हुआ था. तब उसे 37 सीटें मिली थीं. जेएमएम को 19, भाजपा की सहयोगी झारखंड विकास मोर्चा को आठ और कांग्रेस को छह सीटें मिली थीं. भाजपा ने पहली बार गैर आदिवासी मुख्‍यमंत्री (रघुवर दास) बनाया और उन्‍होंने पूरे पांच साल सरकार चलाया. लेकिन, 2019 में ही झारखंड के लोगों ने ‘मोदी लहर’ की हवा निकाल दी थी. अब एक बार फिर उनकी अपील नकार दी है. ये चुनाव परिणाम एक और बात बताते हैं कि दिल्‍ली से थोपे गए नेताओं के दम पर चुनाव जीतना असान नहीं है. चुनावी रणनीति में झारखंड के नेताओं की अहम भागीदारी कम ही रखी गई. बिहार-झारखंड जैसे राज्‍यों में वोटर्स के मानस को समझना बाहरी नेताओं के वश की बात नहीं है. बागियों ने भी खराब किया खेल भाजपा को बागियों ने भी नुकसान पहुंचाया. बगावत की सबसे ज्‍यादा शिकार भाजपा ही हुई थी. इसके सबसे ज्‍यादा सात बागी चुनाव लड़े थे. जेएमएम के चार और कांग्रेस व राजद से एक-एक बागी मैदान में थे. आदिवासियों का गुस्‍सा लोकसभा चुनाव में झारखंड में बीजेपी आदिवासी बहुल सीटें हार गई थी. इसे देखते हुए शायद बीजेपी ने रोटी-बेटी-माटी का मुद्दा उठाया, लेकिन वह मुसलमानों को निशाना बना कर उठाया गया. विरोधी खेमे ने इसका काउंटर किया और हेमंत सोरेन आदिवासियों के बीच यह मैसेज देने में भी कामयाब रहे कि उन्‍हें बीजेपी ने साजिशन जेल भिजवाया था. बीजेपी ने सोरेन खेमे से आदिवासी नेता चंपाई सोरेन को भी अपने पाले में किया, लेकिन वह दावं भी काम नहीं आया. वैसे भी चंपाई सोरेन पूरे राज्‍य में अपील रखने वाले नेता नहीं माने जाते हैं. नए वोटर्स का रोल झारखंड में इस बार करीब 12 लाख नए वोटर्स थे. इनमें भी लड़कियां ज्‍यादा (672575) थी. इनकी भागीदारी से वोटिंग प्रतिशत भी बढ़ा. लगता है इन वोटर्स को 10 लाख नौकरियों/रोजगार का वादा और महिलाओं के लिए स्‍कीम की घोषणा भा गई. Tags: Jharkhand election 2024, Jharkhand ElectionsFIRST PUBLISHED : November 24, 2024, 08:39 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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