मनमोहन सिंह जब अड़ गए सरकार को दांव पर लगाकर कराई भारत-US न्यूक्लियर डील
मनमोहन सिंह जब अड़ गए सरकार को दांव पर लगाकर कराई भारत-US न्यूक्लियर डील
Manmohan Singh Death: एक वक्त पर देश के सबसे कमजोर पीएम माने जाने वाले मनमोहन सिंह ने कभी अड़ियल रुख भी दिखाया था. भारत-US न्यूक्लियर डील पर मुहर लगवाने के लिए उन्होंने वाम दलों के विरोध की कोई परवाह नहीं की. जबकि सरकार उनके समर्थन से चल रही थी.
हाइलाइट्स मनमोहन सिंह ने भारत-US न्यूक्लियर डील कराई. इस डील के लिए उन्होंने कड़ा रुख दिखाया. वामदलों के विरोध की उन्होंने परवाह नहीं की.
नई दिल्ली. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गुरुवार को करीब 92 साल की उम्र में निधन हो गया. मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति की एक ऐसी कड़ी हैं, जिनके बिना शायद भारत की तस्वीर वो नहीं होती, जो आज है. 1991 में देश में किए गए आर्थिक सुधारों का श्रेय वित्त मंत्री के तौर पर उनको ही दिया जाता है. इसके अलावा जब वो पीएम बने तो उनको काफी कमजोर प्रधानमंत्री माना जाता था. मगर जब बात भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील की आई तो पीएम मनमोहन सिंह ने अपना वो कड़ा रुख दिखाया, जिससे दुनिया भर में अचरज का माहौल बन गया.
भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को पक्का करने के लिए ‘कमजोर’ माने जाने वाले मनमोहन सिंह ने कैसे आश्चर्यजनक लचीलापन और साथ ही कड़ा रुख दिखाया, वो पूरी दुनिया के सामने देशहित की लिए गए फैसलों की एक बानगी भर है. भारत पर लगे परमाणु प्रतिबंधों को खत्म करने के लिए भारत और अमेरिका का न्यूक्लियर डील एक मील का पत्थर थी. जिसके लिए मनमोहन सिंह ने अपने सभी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों दोनों को मात दे दी. भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने ऐसे फैसले लिए, जिन्होंने देश के इतिहास की दिशा बदल दी.
‘देश का सबसे कमजोर पीएम माना जाता था’
सौम्य और प्रोफेसरनुमा मनमोहन सिंह को देश के सबसे कमजोर प्रधानमंत्रियों में से एक माना जाता था. उन्होंने राजनीतिक प्रतिष्ठान के भीतर लॉबियों और दुश्मनों को चुनौती देते हुए अमेरिका के साथ ऐतिहासिक परमाणु समझौता किया और द्विपक्षीय संबंधों को एक नए स्तर पर पहुंचाया. गौरतलब है कि मनमोहन सिंह की सरकार उस वक्त वामदलों के समर्थन पर टिकी हुई थी. जो अमेरिका के साथ परमाणु करार के कड़े विरोधी थे. वामपंथियों के साथ मनमोहन सिंह की परेशानी उस समय शुरू हुई जब प्रकाश करात ने सीपीआई(एम) के महासचिव के रूप में हरकिशन सिंह सुरजीत की जगह ली.
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वामदलों की नहीं की परवाह
सुरजीत और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु, दोनों ने 2004 में प्रधानमंत्री बनने पर मनमोहन सिंह को बार-बार अपना समर्थन देने का भरोसा दिया था. वे कहते थे कि जब तक कांग्रेस साझा न्यूनतम कार्यक्रम का पालन करती है, तब तक उन्हें उनसे कोई परेशानी नहीं होगी. सुरजीत के सीपीआई(एम) के नेतृत्व से हटने के बाद, करात प्रधानमंत्री के लिए कांटा बन गए. जहां करात की सार्वजनिक छवि वैचारिक रूप से अडिग और सख्त वार्ताकार की थी, वहीं निजी रूप से वे सौम्य और एक सज्जन इंसान थे. बहरहाल भारतीयों ने इस बात को स्वीकार किया कि भारत- अमेरिका न्यूक्लियर डील ने भारत को अमेरिका के करीब ला दिया.
Tags: Dr. manmohan singh, Manmohan singhFIRST PUBLISHED : December 26, 2024, 22:31 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed