इधर योगी तो उधर फणनवीसBJP को नेताओं की नई पांत में कैसे मिल रहे नए चेहरे

Maharashtra Politics News: महाराष्ट्र में देवेंद्र फणनवीस ने एकनाथ शिंदे से प्रतिस्पर्द्धा में सीएम की कुर्सी हासिल कर ली. भाजपा के एक बड़े धर्मसंकट का खात्मा हो गया. केंद्र में भाजपा को शिंदे के सहयोग की जरूरत है तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की पसंद देवेंद्र फणवीस को भाजपा के उत्थान के लिए महाराष्ट्र की सत्ता पानी जरूरी थी. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और असम के सीएम हिमंता विश्वशर्मा के बाद देवेंद्र फणनवीस अब आरएसएस के चहेते सीएम हैं. भाजपा में ये नई पंक्ति के उभरते नेता के रूप में देखे जा रहे हैं

इधर योगी तो उधर फणनवीसBJP को नेताओं की नई पांत में कैसे मिल रहे नए चेहरे
मुंबई: महाराष्ट्र में चुनावी नतीजे आने के 12वें दिन तस्वीर साफ हुई कि तीसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फणनवीस ही शपथ लेंगे. इसके लिए उन्हें 10 दिनों की जद्दोजहद करनी पड़ी. भाजपा के सहयोगी दलों से लगातार संपर्क और दिल्ली की दौड़ में फणनवीस ने धैर्य नहीं खोया. वे इस बात पर अड़े रहे कि महाराष्ट्र की जनता ने उन्हें ही सीएम बनाने का जनादेश दिया है. वे दो बार सीएम रह भी चुके हैं. उनके धैर्य का आलम यह था कि सहयोगी दलों के नेताओं और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ बातचीत के अलावा उन्होंने अपनी जुबान पर नियंत्रण रखा. सब्र का फल हमेशा मीठा होता है. फणनवीस को उनके सब्र का फल मिला है. सहयोगी दलों में शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे और एनसीपी के दूसरे गुट के नेता अजित पवार डेप्युटी सीएम बनने को तैयार हो गए और देवेंद्र फणनवीस को सीएम की कुर्सी मिल गई. पहले भी सीएम होते रहे हैं डिमोट महाराष्ट्र में इस प्रयोग पर कुछ लोगों को आश्चर्य भी हो रहा होगा कि सीएम रह चुके शिंदे डेप्युटी सीएम बनने के लिए कैसे तैयार हो गए. इसे उनका डिमोशन बताने वालों की भी कमी नहीं होगी. पर, सच यह है कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा. इसके पहले बिहार में ऐसा तीन लोगों के साथ हो चुका है. वर्ष 1970 में बिहार में कांग्रेस के दारोगा प्रसाद राय मुख्यमंत्री थे। 1972 में कांग्रेस के ही के केदार पांडेय भी बिहार के मुख्यमंत्री बने. दोनों बाद की सरकारों में कैबिनेट मंत्री बने थे. इसी तरह अगस्त 1983 से मार्च 1985 तक बिहार के 16वें मुख्यमंत्री रहे चंद्रशेखर सिंह बाद में राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में 1985 से जुलाई 1986 तक पेट्रोलियम राज्य मंत्री के पद पर रहे थे. ऐसा पहली बार हुआ था, जब कोई मुख्यमंत्री रहा व्यक्ति केंद्र में राज्यमंत्री बना हो. इसलिए एकनाथ शिंदे के डेप्युटी सीएम बनने पर डिमोशन बताने वाले लोगों को सियासी मजबूरी और व्यवस्था की हकीकत भी जान लेनी चाहिए. देवेंद्र फणनवीस को वाजिब फल मिला अब सवाल उठता है कि जब महाराष्ट्र में यही होना था तो फिर सरकार बनने में 13 दिनों का वक्त क्यों लग गया. क्यों इतना लंबा खिंचा सीएम चयन का मामला. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि महाराष्ट्र चुनाव में महायुति को मिली अपार सफलता के पीछे सीएम रहते एकनाथ शिंदे के विकास कार्यक्रमों और लाड़की बहन योजना जैसे जन कल्याण के कार्यों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. शिंदे इसी आधार पर सीएम पद की दावेदारी पर भी अड़े हुए थे. इसके साथ यह भी सच है कि भाजपा ने देवेंद्र फणनवीस को ही आगे कर चुनाव लड़ा. फणनवीस ने पूरी ईमानदारी से मेहनत की. चुनाव के दौरान उन्होंने सूबे में 64 रैलियों का रिकार्ड बनाया. नतीजा भी उनकी मेहनत के अनुरूप ही आया. भाजपा सर्वाधिक सीटों वाली पार्टी बन कर उभरी. महायुति में भाजपा के दोनों सहयोगी दल उसके मुकाबले आधी से भी कम सीटें लाए. इसलिए देवेंद्र की दावेदारी भी कम पुख्ता नहीं थी. भाजपा चाहती तो अजित पवार की एनसीपी का समर्थन लेकर सरकार बना सकती थी. पर, शिंदे को विश्वास में लेना भाजपा की मजबूरी थी. शिंदे को साधना भाजपा की मजबूरी सभी जानते हैं कि केंद्र में 2014 और 2019 की तरह भाजपा को अपने बूते सरकार बनाने का बहुमत नहीं मिला है. उसे एनडीए के साथी दलों के भरोसे बहुमत हासिल हुआ है. यानी भाजपा के लिए एक-एक सांसद का काफी महत्व है. एकनाथ शिंदे की शिवसेना के 7 सांसद हैं. शिंदे ने महाराष्ट्र में महायुति की सरकार बनाने के लिए अपनी पार्टी तोड़ी. भाजपा के भरोसेमंद साथी बने. ऐसे किसी साथी को नाराज कर भाजपा केंद्र में अपने लिए खतरा कैसे मोल लेती. यही वजह रही कि भाजपा ने शिंदे को मनाने की लगातार कोशिश की और इस मान-मनौवल में 10-12 दिन लग गए. शिंदे की सहमति का मतलब महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति सरकार का निष्कंटक राज तो है ही, केंद्र की सरकार में किसी तरह का व्यवधान न होने की गारंटी भी है. RSS का सपोर्ट देवेंद्र के काम आया एक और बात. चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा जरूर यह चाहती थी कि देवेंद्र फणनवीस ही सीएम बनें. पर, फणनवीस के साथ आरएसएस भी मजबूती से खड़ा था. संघ से देवेंद्र के ताल्लकुकात को इसी से समझा जा सकता है कि उन्होंने चुनाव परिणाम आने के बाद सबसे पहले संघ मुख्यालय में ही फोन किया था. यह भी सच है कि संघ ने लोकसभा चुनाव की तरह महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अन्यमनस्कता नहीं दिखाई. यही कारण रहा कि पांच महीने पहले लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी (एमवीए) का उठान विधानसभा चुनाव में ढलान पर आ गया. एमवीए ऐसा धराशायी हुआ कि अब उसके उठने की बजाय उसमें बिखराव की बतकही होने लगी है. देवेंद्र भाजपा की नई पांत के नेता हैं भाजपा नेताओं की नई पांत को मिला चेहरा बहरहाल, भाजपा को नेताओं की नई पांत में देवेंद्र फणनवीस का चेहरा मिल गया है. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ, असम में हिमंता विश्वशर्मा और महाराष्ट्र में देवेंद्र फणवीस भाजपा में नई पांत के उभरते सितारे हैं. संयोग से इन्हें संघ का भी पूरा समर्थन मिला हुआ है. संघ की चिंता यह है क आने वाले समय में भाजपा को नई पांत के नेताओं की जरूरत पड़ेगी. अमित शाह में भी अभी संभावना शेष है, लेकिन उम्र के हिसाब से नरेंद्र मोदी रिटायरमेंट की ओर बढ़ रहे हैं. ऐसे में भाजपा को भी नई पांत के नेताओं की जरूरत पड़ेगी और संघ इसमें अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहा है. Tags: BJP, Devendra Fadnavis, Maharashtra NewsFIRST PUBLISHED : December 7, 2024, 14:44 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed