सावन-भादों में इन दो चीजों पर पड़ता है बुरा असर इसलिए आती हैं बीमारियां
सावन-भादों में इन दो चीजों पर पड़ता है बुरा असर इसलिए आती हैं बीमारियां
सावन और भादों के महीनों में बरसात और नमी के चलते दो अंग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं और कई तरह की बीमारियां तेजी से फैलती हैं. हालांकि अगर खाने-पीने और रोजाना रूटीन से संबंधित ये 7 उपाय अगर कर लिए जाएं तो इस मौसम का बिना बीमार पड़े लुत्फ उठाया जा सकता है.
सावन और भादों यानि भाद्रपद, वर्षा ऋतु के दो प्रमुख महीने हैं. भारत में श्रावण मास यानि सावन में विशेष रूप से पूजा-अर्चना, व्रत और आहार का विधान देखने को मिलता है. इसका धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन बड़ा वैज्ञानिक महत्व भी है. बारिश के इन महीनों में कई बड़े बदलाव होते हैं, जिसके चलते इन महीनों में बीमारियों का प्रकोप भी सबसे ज्यादा होता है, फिर चाहे वे मक्खी, मच्छर से पैदा होने वाली बीमारियां हों, खान-पान से होने वाली हों या वायरस, फंगस आदि से होने वाली बीमारियां हों. विशेषज्ञ कहते हैं कि इन दो महीनों का शरीर के दो ऑर्गन पर विशेष रूप से खराब असर पड़ता है, जिसकी वजह से स्वास्थ्य चरमरा जाता है.
मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान, नई दिल्ली के निदेशक डॉ. काशीनाथ समगंडी कहते हैं कि भारत में पहले से ही ऋतु के अनुसार आचरण, खानपान, रहन-सहन की व्यवस्था है. इसे ही आयुर्वेद में ऋतु चर्या कहा गया है. इसलिए वर्षा ऋतु में विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है.
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इन महीनों में बीमारियां होती हैं ज्यादा
शिशिर, बसंत और ग्रीष्म के बाद जब वर्षा ऋतु आती है तो इससे तप रही धरती को ठंडक मिलती है और धरती की गर्मी कम हो जाती है. इस मौसम में ज्यादातर समय बादल छाए रहते हैं और सूरज न दिखने के कारण वातावरण में नमी बढ़ जाती है. हर तरफ हरियाली नजर आती है लेकिन मनुष्य के लिए यह मौसम ढेर सारी चुनौतियां लेकर आता है. सूर्य का तेज विलुप्त होने के कारण बैक्टीरिया, वायरस, फंगस आदि के पनपने के लिए अनुकूल समय होता है. इस मौसम में सर्दी, जुकाम, बुख़ार, पेट खराब होना, दस्त, उल्टी लगना, डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, बच्चों और बुजुर्गों, जिनमें इम्युनिटी कम होने के चलते बीमार पड़ने वाले लोगों की संख्या बढ़ जाती है.
इन दो चीजों पर पड़ता है बुरा असर
डॉ. समगंडी कहते हैं कि वर्षा ऋतु से पहले गर्मी के प्रभाव के कारण शरीर में डिहाइड्रेशन यानि पानी की कमी की समस्या सबसे ज्यादा दिखाई देती है. लेकिन वर्षा ऋतु में बारिश होने से मौसम में ठंडक और हवा में नमी बढ़ जाती है. इससे शरीर में वात का संतुलन बिगड़ जाता है. इस मौसम में धूप नहीं निकलने के कारण मेधाग्नि और जठराग्नि, दोनों में कमी आ जाती है, जिसके कारण मन और शरीर दोनों अस्वस्थ हो जाते हैं. ना किसी काम में मन लगता है और ना ही ठीक से भूख लगती है. वहीं शरीर में भी पाचन शक्ति गड़बड़ हो जाती है. पीने का पानी धूल-मिट्टी और कचरा फैलने के कारण अधिक दूषित होता है और यही पानी शरीर के भीतर जाकर तरह-तरह की बीमारियां पैदा करता है.
बीमारियों से बचाव के लिए करें ये 7 काम
. व्रत करें
वर्षा ऋतु में व्रत का पालन करने से शारीरिक अशुद्धियां दूर होती है और पाचन तंत्र सुचारु रूप से काम करता है. सावन में इसीलिए हफ्ते में एक दिन व्रत रखना चाहिए. आजकल इंटरमिटेंट फास्टिंग का प्रचलन भी है, इसमें फास्टिंग कुछ घंटों के लिए की जाती है और उसके बाद भोजन किया जाता है. यह भी फायदेमंद है.
. पहले पचाएं फिर खाएं
पहले खाया हुआ भोजन पचाने के बाद ही अगला भोजन सेवन करना है. अगर मल-मूत्र का सही से विसर्जन, शरीर और मन में हल्कापन महसूस होना, डकारें शुद्द होना, शरीर और मन में उत्साह का महसूस होना, भूख-प्यास सही से लग रही है, इसके बाद भोजन करें.
. ताजा खाना, पुराने अनाज खाएं
इन दो महीनों में घर में बना हुआ गरम और ताजा भोजन करें, बाहर का खाना अवॉइड करें. पुराने अनाज यानि एक साल पुराने गेंहू, जौ, ज्वार, चावल का सेवन करें. दाल में गाय के घी या सरसों के तेल में जीरा, हींग, सेंधा नमक, अदरक का तड़का जरूर लगाएं. हरी पत्तेदार सब्जियां न खाएं.
. दही सिर्फ दिन में खाएं
बारिश के मौसम में कभी कभी दिन में ही दही खाएं, रात को न खाएं. अचार, काला नमक, सोंठ आदि खाएं. तला भोजन न करें.
. पानी का रखें विशेष ध्यान
डॉ. समगंडी कहते हैं कि इस मौसम में पानी से तमाम बीमारियां फैलती हैं, इसलिए संक्रमित पानी पीने से बचें. पानी को उबालकर, गुनगुना कर पीएं.
. इनसे बचें
– नंगे पैर गीली मिट्टी पर न चलें.
– दिन में न सोएं.
– अधिक शारीरिक परिश्रम करें.
करें ये योगासन और प्राणायाम
वर्षा ऋतु में जठराग्नि को प्रदीप्त करने के लिए पादहस्तासन, त्रिकोणासन, ऊष्ट्रासन, उत्तानमंडूकासन, वज्रासन, शशकासन और बद्ध कोणासन और सेतुबंधासन का अभ्यास करने से पेट की मांसपेशियों की अच्छी टोनिंग होती है, पेट संबंधी समस्त बीमारियों से राहत मिलती है और पाचन तंत्र भी बेहतर रहता है और खुलकर भूख लगती है.
इसके अलावा नाड़ीशोधन, भ्रामरी और सूर्यभेदन के अभ्यास से फेफड़े मजबूत होते हैं, पाचन क्षमता बेहतर होती है और शरीर में ऊष्मा पैदा होती है. साथ ही इससे वात का संतुलन स्थापित होता है. इससे प्राण शक्ति का प्रवाह बढ़ता है और मन शांत और स्थिर होता है.
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Tags: Delhi heavy rain, Delhi Rain, Diseases increased, Global disease, Health News, Sawan MonthFIRST PUBLISHED : July 31, 2024, 13:13 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed