कुंडा बाबागंज के विरोध के बाद भी क्‍या टनाटन हैट्रिक लगा पाएंगे सोनकर

कौशांबी के सीट पर सोमवार को मतदान हो चुका है. वोटरों ने अपना जनादेश इवीएम में दे दिया है, लेकिन रघुराज प्रताप सिंह के कड़े विरोध के बाद बीजेपी सांसद विनोद सोनकर फिर से संसद में पहुंच कर हैट्रिक बना पाएंगे या नहीं ये अभी भी चर्चा का विषय है. रघुराज प्रताप सिंह ऊर्फ राजा भैया की असर वाले दो विधान सभा क्षेत्र कौशांबी सीट का हिस्सा हैं.

कुंडा बाबागंज के विरोध के बाद भी क्‍या टनाटन हैट्रिक लगा पाएंगे सोनकर
हाइलाइट्स विनोद सोनकर के लिए रघुराज प्रताप सिंह का विरोध करना राजनीतिक तौर पर फायदेमंद ही होता है. इस लोकसभा क्षेत्र की तीन विधानसभा सीटों पर पिछड़े-दलित और मुसलमानों की संख्या अच्छी खासी है. 2014 में जब सोनकर को बीजेपी ने कौशांबी से टिकट दिया तो बहुत से लोगों को हैरानी हुई थी. कौशांबी : कौशांबी सांसद विनोद सोनकर ने सोमवार को मतदान के बाद दूसरे उम्मीदवारों की तरह बड़ा दावा किया. उन्होंने पूरे विश्वास से कहा कि वे इस बार जीत की हैट्रिक लगा लेंगे. प्रयागराज और फतेहपुर के बीच प्रतापगढ़ से सटी इस सीट की दो विधान सभाएं- कुंडा और बाबागंज गंगा पार पड़ती हैं. गंगा पार की इन दोनों सीटों से सोनकर को कड़ी चुनौती मिलती है. ये दोनों विधानसभा सीटें कुंडा के रघुराज प्रताप सिंह ऊर्फ राजा भैया की सीटें मानी जाती है. एक से वे खुद जीते हैं तो दूसरे पर उन्हीं की पार्टी के विधायक हैं. 2014 और 2019 के चुनाव में मोदी लहर ने तो सोनकर की नैया गंगा पार से उठी विरोध की आंधी के बाद पार करा दी थी, लेकिन इस बार उनकी राह कठिन दिख रही है. 2014 के पहले राजनीतिक गलियारों में विनोद सोनकर की बहुत थोड़ी सी पहचान थी. सब्जी का ठेला लगाने वाले परिवार में जन्मे विनोद ने खुद भी अपनी राह मेहनत मजदूरी से बनाई. गांव-घर से निकल कर दूसरी जगहों पर काम किया. काम-धंधा ठीक चल पड़ा तो चायल में गैस एजेंसी खोल ली. फिर भी इलाहाबाद और कौशांबी जैसी राजनीतिक चेतना वाली जगह पर सांसद बनने के लिए ये काफी नहीं था. राजनीतिक बैकग्राउंड के बगैर पहली बार बीजेपी से टिकट मिला 2014 में जब उन्हें बीजेपी ने कौशांबी से टिकट दिया तो बहुत से लोगों को हैरानी हुई थी. उस दौर में मोदी लहर चली और सोनकर देश की संसद में पहुंच गए. यहां ये भी बताना दिलचस्प होगा कि इलाहाबाद की दो सीटों में से एक फूलपुर से पंडित जवाहर लाल नेहरू पहले सांसद थे तो चायल से मुंशी मसूरियादीन थे. मसूरियादीन की लोकप्रियता की कहानियां अभी भी इलाहाबाद और कौशांबी में कही सुनी जाती हैं. चायल लोकसभा सीट खत्म करके 2009 में जब कौशांबी नाम से सीट बनी तो समाजवादी पार्टी से शैलेन्द्र कुमार यहां के पहले सांसद बने. इस बार विनोद सोनकर का मुकाबला समाजवादी पार्टी के पुष्पेंद्र सरोज से है. पुष्पेंद्र के पिता इंद्रजीत सरोज पांच बार के विधायक और समाजवादी पार्टी के महासचिव हैं. इंद्रजीत सरोज अभी भी मंझनपुर से विधायक हैं. पुष्‍पेंद्र अभी अभी लंदन से अपनी पढ़ाई पूरी करके लौटे हैं. तीन सुरक्षित विधानसभाओं वाली सीट दरअसल, इस लोकसभा क्षेत्र की तीन विधानसभा सीटों पर पिछड़े-दलित और मुसलमानों की संख्या अच्छी खासी है. परिसीमन से पहले इस सीट में फतेहपुर की खागा और इलाहाबाद की शहर पश्चिमी विधानसभा सीट आती थी. शहर पश्चिमी सीट भी मुसलमानों के प्रभाव वाली सीट मानी जाती रही है. इन दोनों विधानसभा सीटों को हटाकर 2009 में प्रतापगढ़ की कुंडा और बाबागंज सीट को इसमें जोड़ दिया गया. इस तरह कुल पांच विधानसभा सीटों में से तीन सुरक्षित सीटें इस लोकसभा सीट में हैं. इस तरह पूरी लोकसभा सीट पर दलित-पिछड़े और मुसमानों का दबदबा है. नहीं आए साथ, फिर भी कैशांबी में गूंजे ‘राजा भैया-अखिलेश यादव जिंदाबाद’ के नारे, क्या है माजरा? राजा भैया का विरोध और टनाटन सीरीज के वीडियो ऐसे में विनोद सोनकर के लिए रघुराज प्रताप सिंह का विरोध करना राजनीतिक तौर पर फायदेमंद ही होता है, क्योंकि इन जातियों और सवर्ण कही जाने वाली क्षत्रीय जाति में छत्तीस का ही रिश्ता रहता है. सोनकर मंच से उनका विरोध कर अपने समर्थकों को खुश करते हैं तो रघुराज प्रताप सिंह भी पूरी ताकत से उनके विरोध में लगे रहते हैं, लेकिन इस बार क्षेत्र में विनोद सोनकर की कम सक्रियता से लोगों में नाराजगी बताई जा रही है. कहा जा रहा है कि दो बार सांसद बनने के बाद वे जनता से दूर हो गए हैं. यहां तक कि सोनकर ने सिराथू के शम्साबाद गांव को गोद लिया था. वहां भी विकास के काम पूरे नहीं हुए. क्षेत्र में सोनकर के कुछ कथित वीडियो भी वायरल किए गए हैं, जिनमें वे सस्ते में मंहगी जमीने दिलाने की बात करते दिखाए गए हैं. वीडियो कितना सच है या नहीं इस पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसे पैसे लेकर जमीन दिलाने वाले ‘टनानटन सीरीज’ के वीडियो के तौर पर प्रचारित किया गया है. एक मोटे अनुमान के मुताबिक, इलाके में 15 फीसदी से ज्यादा मुसलमान मतदाता हैं. वे भी सोनकर का साथ नहीं देंगे. ऐसे में कुंडा और बाबागंज का विरोध और प्रभावी हो सकता है. कौशांबी सीट का इतिहास कौशांबी इलाका 1997 तक प्रयागराज यानी इलाहाबाद जिले में आता रहा. जिला मुख्यालय से तकरीबन 55 किलोमीटर दूर इस नए जिले का मुख्यालय मंझनपुर में है, जबकि कौशांबी नाम से लोकसभा सीट का गठन 2009 में किया गया. सीट और जिला जितना नया है इस इलाके का इतिहास उतना ही पुराना है. पौराणिक कथाओं को सच माने तो पांडवों ने अपने वनवास का एक लंबा हिस्सा इसी क्षेत्र में गुजारा था. बताया जाता है कि युधिष्ठिर के कुल में उत्पन्न राजा नरेश ने वत्स देश के कौशांबी नगरी को अपनी राजधानी बनायी था. ये भी कहा जाता है कि राजा कुटुंब के नाम पर इस क्षेत्र का नाम कौशांबी पड़ा. यहां बौद्धकालीन अवशेष बहुत बड़ी मात्रा में हैं. बल्कि खुद महात्मा बुद्ध के यहां रहने के प्रमाण भी मिलते हैं. अशोक के समय का एक स्तंभ भी यहां मिला था, जिसे इलाहाबाद के किले में ले जाकर सुरक्षित रखा गया. यहां जैन समुदाय के भी महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने यहां की ऐतिहासिकता पर बहुत शोध किया है. बहरहाल, उससे पहले यहां की विधानसभाएं चायल सुरक्षित लोकसभा सीट के तहत आती थी. Tags: Kaushambi news, Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, Raja bhaiyaFIRST PUBLISHED : May 21, 2024, 13:11 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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