Kargil Vijay Diwas 2022: क्या लाहौर का बदला था ऑपरेशन कोह-ए-पैमा यानी कारगिल
Kargil Vijay Diwas 2022: क्या लाहौर का बदला था ऑपरेशन कोह-ए-पैमा यानी कारगिल
Kargil Day, Kargil Vijay Diwas 2022: 21 फ़रवरी 1999 को भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने लाहौर समझौते पर दस्तख़त किए. भारत-पाकिस्तान रिश्तों में ये एक अहम पड़ाव था. लेकिन पाकिस्तानी सेना को किसी भी हाल में भारत और पाकिस्तान के बीच सुधरते रिश्ते मंज़ूर नहीं थे.
हाइलाइट्स ऑपरेशन कोह-ए-पैमा ( ऑपरेशन केपी ) मुख्य तौर पर परवेज़ मुशर्रफ़ की देखरेख में ही चल रहा था.3 मई 1999 को कुछ स्थानीय चरवाहों के ज़रिए कारगिल में पाक सेना की घुसपैठ का पता लगा.भारतीय सेना ने 9 मई को सियाचिन से लौट रही दो बटालियन को बटालिक सेक्टर में घुसपैठ पर काबू पाने के लिए रोक दिया गया.
नई दिल्ली: 20 जनवरी 1999 को जब तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वाघा बॉर्डर (Wagah Border) से पाकिस्तान में प्रवेश किया तो भारत और पाकिस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया की नज़रें उन पर टिकी हुई थीं. भारतीय समय के मुताबिक करीब 4 बजकर 40 मिनट पर 22 खास भारतीयों के साथ वाजपेयी पाकिस्तानी सीमा से लाहौर की तरफ़ बढ़े. पाकिस्तान में बेहद मशहूर रहे अभिनेता देवानंद भी प्रधानमंत्री वाजपेयी के साथ बस में थे. उन्होंने वाजपेयी-नवाज़ की मुलाकात को भविष्य की पीढ़ियों के लिए यादगार लम्हा बताया था. वाजपेयी, शरीफ़ और दोनों देशों की जनता इस मुलाक़ात को काफ़ी उम्मीदों से देख रहे थे.
पाकिस्तान देश की विडंबना ये है कि वहां सरकारें जनता की नहीं सेना की कृपा पर रहती हैं. वाजपेयी के दौरे पर पाकिस्तान सेना प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ़ ने उन्हें औपचारिक तौर पर सलामी नहीं दी थी. हालांकि इस बात को ज़्यादा तूल नहीं दिया गया लेकिन बाद में अंदाज़ा लगाया गया कि मुशर्रफ़ को ‘ऑपरेशन बद्र’ के तहत पाकिस्तान की नॉर्दर्न लाइन इन्फेंट्री को 1998 से ही एलओसी पार करके कुछ अहम ऑपरेशन करने थे.
ऑपरेशन बद्र के तहत पाकिस्तानी सेना को ज़ोजी-ला पर कब्ज़ा करके श्रीनगर-लेह-करगिल हाईवे पर पूरी तरह से नियंत्रण करना था. इसके अलावा ऑपरेशन में कश्मीर में जेहादी तत्वों को बढ़ावा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर का मुद्दा उछालना और लद्दाख में अहम श्योक नदी के किनारे पर बसे गांव तुरतुक पर कब्ज़ा करना था.
पाक सेना को मंजूर नहीं थे सुधरते रिश्ते
21 फ़रवरी 1999 को भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने लाहौर समझौते पर दस्तख़त किए. भारत-पाकिस्तान रिश्तों में ये एक अहम पड़ाव था. लेकिन पाकिस्तानी सेना को किसी भी हाल में भारत और पाकिस्तान के बीच सुधरते रिश्ते मंज़ूर नहीं थे.
कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना प्रमुख जनरल वेद प्रताप मलिक ने अपनी किताब कारगिल: फ्रॉम सरप्राइज़ टू विक्ट्री में लिखा है ‘लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर के तुरंत बाद मुशर्रफ़ हेलीकॉप्टर से लाइन ऑफ़ कंट्रोल यानी एलओसी पर गए, जहां उन्होंने ऑपरेशन बद्र में हिस्सा लेने वाले कुछ तत्वों से मुलाक़ात की. ये निजी तौर पर एक हिम्मत भरा फ़ैसला था. ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि पाकिस्तानी सेना के अधिकारी और जवान लाहौर घोषणापत्र से ना भटकें.’
चीफ ऑफ जनरल स्टाफ ने किया खुलासा
कारगिल युद्ध के वक्त पाकिस्तान के चीफ़ ऑफ़ जनरल स्टाफ़ लेफ़्टिनेंट जनरल ( रिटा.) शाहिद अज़ीज़ ने बाद में दावा किया कि कारगिल की कारस्तानी पाकिस्तानी सेना की चौकड़ी की उपज थी. पाकिस्तानी अख़बार डॉन ने अज़ीज़ के हवाले से लिखा कि पूरा ऑपरेशन सिर्फ चार लोगों की जानकारी में था. पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ़, चीफ़ ऑफ़ जनरल स्टाफ़ ले. जन मोहम्मद अजीज़, फ़ोर्स कमांड नॉर्दर्न एरियाज़ ( एफ़सीएनए) कमांडर ले. जन जावेद हसन और 10 कोर कमांडर ले. जन महमूम अहमद. यानी ना तो पाकिस्तानी फ़ौज के आला अधिकारी और ना ही पाकिस्तानी सरकार को इसकी भनक तक थी.
पाकिस्तान के रॉयल यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट के लिए लिखी गई अपनी रिपोर्ट में इस्लामाबाद पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के उपाध्यक्ष और पूर्व सैनिक शौकत क़ादिर ने दावा किया कि अप्रैल के महीने में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को पूरे ऑपरेशन की औपचारिक जानकारी दी गई. इस ब्रीफ़िंग में पाकिस्तान के चीफ़ ऑफ़ नेवल स्टाफ़ शामिल नहीं थे क्योंकि वो विदेश दौरे पर थे.
ऑपरेशन कोह-ए-पैमा
भारत को कारगिल में घुसपैठ की खबर 3 मई 1999 को पहली बार मिली. कारगिल युद्ध के बाद भारत सरकार की बनी कारगिल रिव्यू कमेटी की रिपोर्ट में लिखा गया, ‘ 3 मई 1999 को कुछ स्थानीय चरवाहों के ज़रिए घुसपैठ का पता लगा. अगले कुछ दिन तक जांच की गई. 7 मई को इस घुसपैठ की पुष्टि की गई. भारतीय सेना ने 9 मई को सियाचिन से लौट रही दो बटालियन को बटालिक सेक्टर में घुसपैठ पर काबू पाने के लिए रोक दिया गया.” 9 को हुए हमले में पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने कारगिल में भारतीय गोला-बारूद के एक बड़े ज़खीरे को बर्बाद कर दिया. रणनीति के तहत पाकिस्तान ने ये कहना शुरू कर दिया कि पहाड़ों पर स्थानीय आतंकवादी हैं.
पाकिस्तानी सरकार ने शुरुआत से इस दावे को खारिज करना शुरू कर दिया कि उसकी सेना इस इलाके में सक्रिय है. ऑपरेशन कोह-ए-पैमा ( ऑपरेशन केपी ) मुख्य तौर पर परवेज़ मुशर्रफ़ की देखरेख में ही चल रहा था. 6 मई को छुट्टी के बहाने गिलगिट आए, यहीं के शानदार रिज़ॉर्ट शांग्रीला में उन्हें तफ़सील से कुछ बेहद चुनिंदा अफ़सरों के साथ ऑपरेशन केपी की ताज़ा जानकारी दी गई.
कारगिल का खयाली पुलाव
घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों के बारे में पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी आपस में भी बेहद ख़ुफ़िया तौर पर बातें करते थे. उनकी कोशिश ये थी कि किसी तरह जून तक भारत को उलझा कर रखा जाए. ये कहा जाए कि कारगिल पर स्थानीय आतंकियों ने कब्ज़ा किया है. मुशर्रफ़ को अंदाज़ा था कि बर्फ़ पूरी तरह से पिघलने के बाद भारत से जून में टकराव होने पर पाकिस्तान कारगिल की चोटियों पर तैनात अपने सैनिकों की पूरी मदद करता. लेकिन उनका सबसे गलत अंदाज़ा इस बात का था कि भारत सीधे टकराव से बचेगा.
पाकिस्तानी सेना में काम कर चुके शौक़त क़ादिर ने अपने रिसर्च पेपर में लिखा है, ‘पाकिस्तान का मकसद था कि जब भारत की सेना कारगिल में उलझी होगी तो उसे कश्मीर के बाकी इलाकों से भी जवानों को सीमा की तरफ़ भेजना होगा. जुलाई तक ये स्थिति बनानी थी कि भारत पाकिस्तानी सेना और आतंकियों से घिर जाए. मजबूरन उसे बातचीत की मेज़ पर आना ही होगा और यहां पाकिस्तान भारत को एक बड़ा इलाका खाली करने के लिए मजबूर कर देता. मेजर जनरल जावेद हसन ने तो हल्के अंदाज़ में ये भी कह दिया था कमज़ोर भारतीय कभी जंग नहीं लड़ेंगे…
कोहरे में भारत
पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों की चौकड़ी ने एक बात को नज़रअंदाज़ किया, वो थी भारतीय सेना की वीरता. “फ्रॉम कारगिल को कू: इवेंट्स दैट शुक पाकिस्तान” में पाकिस्तानी पत्रकार नसीम ज़ेहरा ने लिखा है कि पाक सेना के अशफ़ाक़ कियानी वो इकलौते अधिकारी थे जिन्होंने अंदाज़ा लगाया था कि भारतीय सेना सीधे कारगिल में ही सामना करेगी, जबकि मुशर्रफ़ समेत दूसरे अधिकारियों का दावा था कि भारत सीधी लड़ाई से बचेगा. भारतीय सेना ने खोई हुई चोटियों पर दोबारा कब्ज़े की कोशिश शुरू कर दी.
तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने कारगिल पर लिखी अपनी किताब “कारगिल: फ्रॉम सरप्राइज़ टू विक्ट्री” में लिखा है, ‘मैं उस वक्त प्राग में था जहां चेक रिपब्लिक में भारत के राजदूत गिरीश धूमे ने मुझे इंटरनेट पर पाकिस्तानी मीडिया की वो रिपोर्ट दिखाईं जिसमें लिखा था पाकिस्तानी मुजाहिदीन ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पास कुछ भारतीय इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया है.
दिल्ली से इस पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं थी लेकिन कुछ भारतीय अखबारों ने कारगिल सेक्टर में मुजाहिदीनों की घुसपैठ की बात लिखी थी. मैंने उन्हें वास्तविक तस्वीर दिखाई साथ में ये भी कहा कि मुजाहिदीन आमतौर से इलाकों पर कब्ज़ा नहीं करते.” 20 मई तक भी ये साफ़ नहीं हो पाया था कि घुसपैठ करने वालों में मुजाहिदीन थे या पाक सैनिक. इतना अंदाज़ा लगना शुरू हो गया था कि कारगिल में डेरा जमाने वाले 70 फीसदी मुजाहिद थे और 30 फ़ीसदी पाकिस्तानी सैनिक.
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Tags: India pakistan war, Kargil, Kargil dayFIRST PUBLISHED : July 25, 2022, 19:34 IST