जीत सिर्फ कारगिल की चोटियों पर नहीं पूरे पाकिस्तान पर थी नवाज़ को भारी पड़ी भारत से गद्दारी
जीत सिर्फ कारगिल की चोटियों पर नहीं पूरे पाकिस्तान पर थी नवाज़ को भारी पड़ी भारत से गद्दारी
Kargil Day, Heroes of the Indian Army: ले. जनरल अज़ीज़ खान ने जब नवाज़ को कहा कि आपका नाम इतिहास में कश्मीर मुद्दा सुलझाने के लिए याद किया जाएगा तो शरीफ़ ने पलट कर उनसे पूछा आपने ये तो बताया ही नहीं कि श्रीनगर में पाकिस्तानी झंडा कब फहराया जाएगा. परवेज़ मुशर्रफ़ ने तो ऑपरेशन कारगिल में जीत की करीब करीब गारंटी ही दे दी थी.
हाइलाइट्सजैसे-जैसे घुसपैठ का अंदाजा हुआ पाकिस्तानी उम्मीदों के उलट भारत ने एयरफोर्स के इस्तेमाल की इजाज़त दे दी. 26 मई को भारतीय वायु सेना के मिग और मिराज 2000 ऑपरेशन विजय में शामिल हो गए. पाक की डिफ़ेंस कैबिनेट कमेटी में उनकी खुद की वायुसेना और खूफिया विभाग ने ऑपरेशन कारगिल पर असहमति जताई
पिछले लेख में हमने बताया कि किस तरह लाहौर समझौते को हथियार बनाकर पाकिस्तान ने भारत की पीठ में छुपा घोंपा, इस बार देखिए नवाज़ की गद्दारी उन पर ही कैसे भारी पड़ी
चौकड़ी के कब्ज़े में नवाज़
14 मई को कैप्टन सौरभ कालिया के नेतृत्व में पांच लोगों की एक टीम के काकसर सेक्टर में अचानक गायब होने के बाद कुछ पता नहीं चल पा रहा था. 15 मई को उनकी तलाश में 32 लोगों की एक और टीम भेजी गयी जिसका नेतृत्व लेफ्टिनेंट अमित भारद्वाज कर रहे थे. 20 मई को वो भी लापता हो गए. 17 मई को इसी टीम का पता लगाने के लिए मेजर विक्रम सिंह शेखावत को भेजा गया था. लेकिन भयानक गोलीबारी की वजह से वो घायल हो गए.
मेजर शेखावत ने एक चोटी पर घेराबंदी कर ली. 17 मई को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को मुशर्रफ़ समेत पाक सैन्य अधिकारियों ने ऑपरेशन की जानकारी दी. मुशर्रफ़ अब पाक और भारत सेना के बीच में फंस गए. पाक सेना पर उनका बस नहीं था और भारत के जवाब देना उनके बस में नहीं था. 17 मई को हुई नवाज़ को ब्रीफ़िंग में उन्हें कहा गया कि पाकिस्तान में क़ायद-ए-आज़म जिन्ना के बाद सबसे बड़ी भूमिका नवाज़ शरीफ़ की हो सकती है.
पाकिस्तानी पत्रकार नसीम ज़ेहरा लिखती हैं चीफ़ ऑफ़ जनरल स्टाफ़ ले. जनरल अज़ीज़ ख़ान ने नवाज़ से करीब करीब चापलूसी करते हुए कहा, ‘सर, पाकिस्तान को क़ायद और मुस्लिम लीग की कोशिशों के बाद बनाया जा सका था, और इन्हें ही पाकिस्तान बनाने के लिए हमेशा याद किया जाएगा. अल्लाह ने अब ये मौका आपको दिया है कि आप कश्मीर पर कब्ज़ा कर लें. आपका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा.’ उन्होंने नवाज़ के कश्मीरी पुरख़ों की बात करते हुए कहा, ‘क़ायद के बाद फ़तह-ऐ-कश्मीर के तौर पर याद रखे जाने का ये नायाब मौक़ा है.’
हिमालय जितनी बड़ी गलती
ब्रीफ़िंग के दौरान पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी ISI के किसी भी अधिकारी ने कोई भी सवाल नहीं किया. बाद में जानकारी आई कि वो भी ऑपरेशन कोह-ए-पैमा को लेकर खास विश्वस्त नहीं थे. ले. जनरल गुलज़ार ने तो ऑपरेशन केपी को हिमालय जितनी बड़ी गलती बताया. बाद में जब पाकिस्तानी विदेश मंत्री सरताज़ अज़ीज़ ने शरीफ़ से पूछा कि ऑपरेशन केपी लाहौर समझौते से बिल्कुल उलट नहीं है तो नवाज़ ने आराम से जवाब दिया था सरताज़ साहब क्या कश्मीर कागज़ी कार्रवाई से हमें मिल सकता है?
ले. जनरल अज़ीज़ खान ने जब नवाज़ को कहा कि आपका नाम इतिहास में कश्मीर मुद्दा सुलझाने के लिए याद किया जाएगा तो शरीफ़ ने पलट कर उनसे पूछा आपने ये तो बताया ही नहीं कि श्रीनगर में पाकिस्तानी झंडा कब फहराया जाएगा. परवेज़ मुशर्रफ़ ने तो ऑपरेशन कारगिल में जीत की करीब करीब गारंटी ही दे दी थी.
भारत ने एयरफोर्स के इस्तेमाल की इजाज़त दी
इधर भारत में 18 मई को कैबिनेट की रक्षा कमेटी में सेना उप प्रमुख ने इलाका ख़ाली कराने के लिए वायुसेना की मदद मांगी, लेकिन उनकी इस मांग को अस्वीकार कर दिया गया. लेकिन जैसे जैसे घुसपैठ की गंभीरता का अंदाज़ा हुआ पाकिस्तानी उम्मीदों के उलट भारत ने एयरफोर्स के इस्तेमाल की इजाज़त दे दी. 26 मई को भारतीय वायु सेना के मिग और मिराज 2000 ऑपरेशन विजय में शामिल हो गए. पाकिस्तानी जनरलों की चौकड़ी का हवाई किला एक एक करके गिरने लगा. पाकिस्तान सेना प्रमुख मुशर्रफ़ ने नवाज़ का पूरा समर्थन हासिल कर लिया था. 23 मई तक पाकिस्तानी सेना राष्ट्रपति, सीनेटर समेत तमाम लोगों को ना सिर्फ ब्रीफ़िंग देने लगी बल्कि उनके साथ ऑपरेशन केपी की सफलता के लिए विशेष दुआओं के आयोजनों में भी शामिल होने लगी. पाकिस्तानी सरकार सार्वजनिक तौर पर अब भी यही कह रही थी कि घुसपैठ मुजाहिदीनों ने की है, लेकिन पश्चिमी देशों के दूतावासों की जानकारी के आधार पर पाकिस्तानी मीडिया ने बताना शुरू कर दिया था कि मुजाहिदीनों के साथ उनकी सेना भी इसमें शामिल थी.
पाक कमांडर ने कहा, अल्लाह के वास्ते मुझे माफ़ कर दो
26 मई को भारतीय वायुसेना ने मिग और एमआई-17 हेलीकॉप्टर से हमला करना शुरू हुआ. भारत के ऑपरेशन विजय का ये बड़ा मोड़ था, लेकिन फिर भी घुसपैठ का पूरा अंदाज़ा भारत को नहीं हुआ था. इसके अगले दिन नवाज़ शरीफ़ ने डिफ़ेंस कैबिनेट कमेटी बुलाई, जिसमें पाकिस्तानी वायुसेना और ख़ुफ़िया विभाग के प्रमुखों ने कारगिल ऑपरेशन पर असहमति जताई. पाकिस्तानी नौसेना प्रमुख को डर था कि भारत उसकी समुद्री घेराबंदी कर सकता है.
नसीम ज़ेहरा लिखती हैं कि नवाज़ शरीफ़ ने 2 जून को हुई एक बैठक में कहा था कश्मीर का मसला ‘बस से हल नहीं होगा, अब आप बस से श्रीनगर जाएं.’ हालांकि भारत को अब भी यही बताया जा रहा था कि पाकिस्तानी सैनिकों का इस घुसपैठ से कोई लेनादेना नहीं है. लेकिन सच्चाई से उलट लगातार भारतीय हमलों से पाकिस्तानी सेना में दहशत का माहौल था. जून के महीने की शुरुआत में हुई एक बैठक में पाकिस्तान के एफसीएनए के कमांडर जावेद हसन ने एक मीटिंग में कहा था. ‘अल्लाह के वास्ते मुझे माफ़ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई, अब दुआओं का वक्त है.’
बिल क्लिंटन ने शरीफ को सुनाई खरी-खरी
भारी पड़ते भारत से पाकिस्तान में करीब करीब भगदड़ मच गई. तोलोलिंग की चोटी पर भारत का दोबारा कब्ज़ा होते ही पाकिस्तानी सेना के पसीने छूट गए. नवाज़ शरीफ़ और दूसरे अधिकारियों को गुमराह किया जाने लगा. भारत आए पाकिस्तानी विदेश मंत्री सरताज़ अज़ीज़ को प्रधानमंत्री वाजपेयी ने दो टूक कह दिया कि अभी लाहौर समझौते की स्याही भी नहीं सूखी थी कि आपने करगिल कर दिया.
जून की शुरुआत से ही बाज़ी पलटनी शुरू हो चुकी थी. 12 जून को एक मीटिंग में नवाज़ शरीफ ने कारगिल से इज़्ज़त बचाकर निकलने का रास्ता तलाश करने को कह दिया. 4 जुलाई को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शरीफ़ अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मिलने वॉशिंगटन पहुंचे जहां क्लिंटन ने उन्हें खूब खरी खोटी सुनाई. साथ ही पाकिस्तानी को कारगिल से बाहर जाने का आदेश भी सुना दिया.
इस मीटिंग में शामिल रहे शरीफ़ की टीम के एक सदस्य ने बाद में बताया कि बैठक के बाद शरीफ़ बेहद निढाल लग रहे थे. इसी मीटिंग के दौरान ही शरीफ़ को एक और अहम चोटी टाइगर हिल पर हार की खबर भी मिली. कश्मीर के लालच में नवाज़ शरीफ़ अपने ही चुनिंदा जनरलों के हाथों अपनी गद्दी तक गंवा बैठे थे. 8 जुलाई 1999 को शरीफ़ के करीबी साथी तारिक़ फ़तेमी ने भारत के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस को कोड वर्ड में बताया कि पाकिस्तान ने ‘बिस्तर बांधने शुरू कर दिए हैं.’ तीन महीने बाद अक्टूबर 1999 में कारगिल के ऑपरेशन कोह-ए-पैमा को अचूक बताने वाले मुशर्रफ़ ने बस में श्रीनगर जाने का ख़्वाब देखने वाले शरीफ़ का तख़्ता पलट कर दिया. कारगिल मुशर्रफ़ के लिए सत्ता की सीढ़ी था. जिसमें कुर्बानी इतिहास में नाम लिखवाने का प्लान बना रहे नवाज़ शरीफ़ की होनी तय थी.
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Tags: Heroes of the Indian Army, Indian army, Kargil day, Kargil war, Unsung HeroesFIRST PUBLISHED : July 26, 2022, 05:00 IST