अक्सर किसी के दिमाग में हाईकोर्ट ने गिनाए न्यायसंगत फैसले के दुश्मन

दिल्ली हाईकोर्ट की जज जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने अपने फैसले में कहा कि यह धारणा रखना, विशेष रूप से एक न्यायाधीश के लिए कि एक महिला पुलिस अधिकारी अपने पेशे के कारण व्यक्तिगत या वैवाहिक जीवन में पीड़ित नहीं हो सकती, अन्याय का एक रूप है.

अक्सर किसी के दिमाग में हाईकोर्ट ने गिनाए न्यायसंगत फैसले के दुश्मन
नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में दिल्ली न्यायिक अकादमी के पाठ्यक्रम में लैंगिक समानता और सांस्कृतिक विविधता को शामिल करने के महत्व पर जोर दिया. फैसले में कहा गया कि, ‘अक्सर किसी के दिमाग में छुपे पूर्वाग्रह निष्पक्ष, लिंग-संतुलित और न्यायसंगत निर्णय के दुश्मन होते हैं.’ जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने इन पूर्वाग्रहों को खत्म करने महत्व पर जोर दिया. उन्होंने कहा ये निष्पक्ष और न्यायसंगत फैसलों के विरोधी हैं. अदालत ने न्यायिक शिक्षा को कानूनी सिद्धांतों से आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया और विविध पृष्ठभूमियों और वास्तविकताओं की गहरी समझ का आग्रह किया. अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘न्यायाधीशों पर यह सुनिश्चित करने की अत्यधिक जिम्मेदारी है कि प्रत्येक व्यक्ति, लिंग की परवाह किए बिना, कानून के तहत उचित व्यवहार का हकदार है. न्यायाधीशों के लिए यह नहीं भूलना चाहिए कि निर्णय लिखते समय लिंग तटस्थ होने का विचार न केवल यह है कि निर्णय में प्रयुक्त शब्दावली और शब्द लिंग तटस्थ होने चाहिए, बल्कि इसका अर्थ यह भी है कि न्यायाधीश के दिमाग को लिंग तटस्थ होना चाहिए. लिंग या पेशे के आधार पर पूर्वकल्पित धारणाओं या पूर्वाग्रहों से मुक्त रहें.’ ‘महिला पुलिस अधिकारी भी हो सकती है पीड़ित’ न्यायाधीश ने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498ए और 34 के तहत एक पति और उसके परिवार के सदस्यों को अपराध से मुक्त करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया. न्यायाधीश ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट का फैसला एक पुलिस अधिकारी के रूप में शिकायतकर्ता के पेशे के बारे में रूढ़िवादिता से अनुचित रूप से प्रभावित था. यह भी पढ़ें- चारधाम यात्रा: GMVN गेस्ट हाउस में हो रही बंपर बुकिंग, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए खास व्यवस्था जस्टिस शर्मा ने अपने फैसले में कहा कि यह धारणा रखना, विशेष रूप से एक न्यायाधीश के लिए कि एक महिला पुलिस अधिकारी अपने पेशे के कारण व्यक्तिगत या वैवाहिक जीवन में पीड़ित नहीं हो सकती, अन्याय का एक रूप है. जस्टिस शर्मा ने कहा कि न्यायिक प्रशिक्षण का उद्देश्य विभिन्न दृष्टिकोणों और अनुभवों की व्यापक समझ को बढ़ावा देना होना चाहिए. अदालत ने कहा कि इस तरह की पहल न्यायाधीशों को अधिक जानकारीपूर्ण और न्यायसंगत निर्णय देने में सक्षम बनाएगी, इससे कानूनी प्रणाली में जनता का विश्वास और भरोसा बढ़ेगा. फैसले में दिल्ली न्यायिक अकादमी के निदेशक (शिक्षाविद) से इन निर्देशों को लागू करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने का आग्रह किया गया. यह भी पढ़ें- महिलाओं को सशस्त्र बलों में CDS के जरिये शामिल करने की उठी मांग, हाईकोर्ट ने कहा- 8 हफ्ते में फैसला करे केंद्र इसके अलावा, अदालत ने पूर्वाग्रहों पर फैसले देने के प्रति न्यायाधीशों को आगाह किया, क्योंकि इससे न्यायिक प्रणाली में जनता का भरोसा कम हो सकता है. न्यायाधीश ने कहा,’कानूनी शिक्षा और न्यायिक शिक्षा के बीच अंतर को सभी संबंधित लोगों के लिए समझना महत्वपूर्ण है. कानूनी शिक्षा कानून का ज्ञान प्रदान करती है, जबकि न्यायिक शिक्षा मामलों का फैसला करते समय इन कानूनों के विवेकपूर्ण प्रयोग के लिए आवश्यक कौशल को निखारती है.’ अदालत ने न्यायाधीशों के लिए निष्पक्ष रहने और लैंगिक पूर्वाग्रहों या पेशेवर रूढ़िवादिता से मुक्त होकर प्रत्येक मामले की मेरिट पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया. . Tags: DELHI HIGH COURT, DowryFIRST PUBLISHED : April 28, 2024, 01:40 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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