नेत्र बैंक ग्लूकोमा के लिए महाअभियान कुछ ऐसे सेवा कर रही हैं डॉ सरिता
नेत्र बैंक ग्लूकोमा के लिए महाअभियान कुछ ऐसे सेवा कर रही हैं डॉ सरिता
डॉ सरिता अग्रवाल ने संतोष अस्पताल प्रबंधन के साथ मिलकर गाजियाबाद को उसका पहला नेत्र बैंक देने में भी अहम भूमिका निभाई. अब तक जिले की दृष्टिहीन और दृष्टि बाधित मरीजों को दिल्ली जाना पड़ता था. लेकिन इस बैंक के कारण अंधेपन या फिर कॉर्नेल ब्लाइंडनेस से पीड़ित मरीजों को यहीं पर इलाज मिल रहा है.
विशाल झा /गाज़ियाबाद: गाजियाबाद के टॉप नेत्र रोग विशेषज्ञों में आज डॉ सरिता अग्रवाल की गिनती होती है. लेकिन, यहां तक आने का सफर आसान नहीं था. अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए डॉक्टर सरिता ने कठिन परिश्रम कर एमबीबीएस का एग्जाम निकाला. परिवार में बड़ी बहन भी एमबीबीएस में सिलेक्शन हासिल करके गाइनेकोलॉजिस्ट क्षेत्र को चुन चुकी थी. ऐसे में डॉक्टर सरिता पर दबाव था कि वह भी मेडिकल क्षेत्र में जगह बनाकर अपने परिवार का नाम रोशन करें.
इस चुनौती को डॉक्टर सरिता ने स्वीकार कर अपनी मेहनत पर ध्यान दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि वर्ष 1989 में आगरा के टॉप गवर्नमेंट कॉलेज एस. एन मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया. बस यही से डॉक्टर सरिता की चिकित्सा पैसे की शुरुआत हो गई. जब अपना स्पेशलिस्ट फील्ड चुनने की बारी आई तो परिवार में पिता ने कहा कि अपनी बहन की तरह वह भी गाइनेकोलॉजिस्ट बनाकर लोगों की सेवा करें, लेकिन सरिता को कुछ ऐसा करना था जिससे कि लोगों के जीवन में उन्हें नई ऊर्जा मिल सके. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सरिता ने एक बेहतर आप्थाल्मालॉजिस्ट बनने की राह चुनी.
गाजियाबाद में खोला पहले नेत्र बैंक
डॉ सरिता अग्रवाल ने संतोष अस्पताल प्रबंधन के साथ मिलकर गाजियाबाद को उसका पहला नेत्र बैंक देने में भी अहम भूमिका निभाई. अब तक जिले की दृष्टिहीन और दृष्टि बाधित मरीजों को दिल्ली जाना पड़ता था. लेकिन इस बैंक के कारण अंधेपन या फिर कॉर्नेल ब्लाइंडनेस से पीड़ित मरीजों को यहीं पर इलाज मिल रहा है.
इसके अलावा डॉक्टर सरिता मरीजों के बीच जाकर ग्लूकोमा बीमारी की जागरूकता के लिए महाअभियान भी वर्षों से चला रही हैं. डॉ सरिता बताती हैं कि ग्लूकोमा एक ऐसी बीमारी है जिससे मरीज अंधे हो सकते हैं. इसलिए अस्पताल के साथ मिलकर ग्लूकोमा के लिए कई कैंप मरीजों के बीच लगाए जाते है. सभी वर्ग के लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए नुक्कड़ नाटक का भी सहारा लिया जाता है. इसके अलावा जो मरीज अंधे हैं. और अपनी आंखों की रोशनी को खो बैठे हैं. उन सभी मरीजों के लिए आई डोनेशन कैंप भी लगाया जाता है. आम लोगों को जागरूक किया जाता है कि वह भी आई डोनेशन अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले और किसी मरीज की रोशनी बनने का काम करें.
डॉ सरिता बताती है कि उन्होंने संतोष अस्पताल 16 वर्ष पहले ज्वाइन किया था. तब नेत्र विभाग ऐसा नहीं था जैसा आज दिखता है. एक छोटा सा कमरा था बहुत कम मरीज और मरीज के इलाज के लिए काफी सामान्य मशीन. लेकिन, बदलते वक़्त के साथ डॉक्टर सरिता का योगदान भी रंग लाया और आंखों की ओपीडी हाईटेक मशीनों द्वारा मरीजों का इलाज हो रहा है. यही नहीं बल्कि यहां पर मरीजों को भर्ती करने की भी सुविधा है.
पुरुस्कारों से भरा हुआ है ऑफिस
डॉ सरिता बताती हैं कि जब मरीज वापस से अपनी आंखों से मुझे देख पाते हैं तो मुझे कई बार गले लगा कर रोने लगते है. जीवन में यह पल ऐसा लगता है कि शायद मैंने इसी के लिए पढ़ाई की थी और इस डिपार्टमेंट को चुना था. डॉ सरिता ने नेत्र रोग मरीजों के लिए कई प्रकार के कार्य किए हैं. इनके लिए उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार प्राप्त हुए है.
Tags: Ghaziabad News, Local18, Medical18, UP newsFIRST PUBLISHED : May 24, 2024, 17:43 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed