यूपी के मंत्री ने क्यों कहा बंदर जंगली जानवर नहीं वैसे तो यह पालतू भी नहीं

Explainer: बंदर अब वन्य जीव संरक्षण की श्रेणी में नहीं हैं. इन्हें वन्यजीव संरक्षण श्रेणी से हटा दिया गया है. नगर निगम, नगर पालिका, ग्राम पंचायतें अब इन्हें पकड़ सकते हैं. वन्य जीव संरक्षण की श्रेणी में यह संशोधन होने से पहले बंदरों को जंगली जानवर माना जाता था. बंदर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत कानून द्वारा संरक्षित थे.

यूपी के मंत्री ने क्यों कहा बंदर जंगली जानवर नहीं वैसे तो यह पालतू भी नहीं
उत्तर प्रदेश के वन विभाग का मानना है कि बंदर वन्यजीव नहीं हैं. इसीलिए बंदरों से होने वाली किसी तरह की दिक्कत के लिए विभाग जिम्मेदार नहीं है. आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये मुद्दा उठा क्यों. दरअसल उत्तर प्रदेश का मेरठ जिला बंदरों से आतंकित है. यहां बंदरों की वजह से आये दिन हादसे हो रहे हैं. बंदरों द्वारा लोगों को काटने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. लेकिन लगता है कि प्रदेश सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. यहां तक कि उत्तर प्रदेश के वनमंत्री अरुण कुमार ने भी कहा कि बंदर जंगली जानवर नहीं है. इसलिए उनको नियंत्रित करने की ज़िम्मेदारी भी उनके विभाग की नहीं है. हालांकि बंदर को लेकर मंत्री जी यह जरूर कहते हैं वो वन्य जीव हैं, उन्हें पाला नहीं जा सकता. उन्होंने वाइल्ड लाइफ की कैटेगरी से बंदर को आउट कर दिया. लेकिन ऐसे में लोगों को क्या करना चाहिए ये सलाह वनमंत्री जरूर दे गए. उन्होंने कहा कि अगर आप बंदरों से परेशान हैं तो नगर निगम और नगर पालिका में शिकायत कीजिए. ये भी पढ़ें- ब्रिटेन के शाही महल से 4 गुना बड़ा है बड़ौदा का ये महल, जानिए क्यों है चर्चा में  बंदर अब वन्य जीव संरक्षण की श्रेणी में नहीं हालांकि यह बात तो सही है कि बंदर अब वन्य जीव संरक्षण की श्रेणी में नहीं हैं. इन्हें वन्यजीव संरक्षण श्रेणी से हटा दिया गया है. नगर निगम, नगर पालिका, ग्राम पंचायतें अब इन्हें पकड़ सकते हैं. बस बंदरों को पकड़कर भगाने वाले इस बात का ध्यान रखें कि बंदरों को पकड़ कर अनुकूल वातावरण वाले स्थानों पर छोड़ा जाए और इस काम में बंदरों का उत्पीड़न कतई न हो. वन्य जीव संरक्षण की श्रेणी में यह संशोधन होने से पहले बंदरों को जंगली जानवर माना जाता था. बंदर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत कानून द्वारा संरक्षित थे. इस अधिनियम के तहत, किसी भी जंगली जानवर को पालतू जानवर के रूप में रखना गैरकानूनी था. ये भी पढ़ें- हिमालय में पायी गई सांपों की नई प्रजाति, जानिए क्यों दिया गया उसे हॉलीवुड एक्टर डिकैप्रियो का नाम डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार बंदरों पर अध्ययन करने वाले एक एनजीओ वातावरण की संस्थापक-निदेशक, प्राइमेटोलॉजिस्ट इकबाल मलिक कहती हैं, “बंदर और इंसान हमेशा एक स्थिर और शांत सह-अस्तित्व में रहे हैं. दोनों के बीच तनाव, भय और कड़वाहट पिछले लगभग 50 वर्षों में ही विकसित हुई है. और हम रिश्ते को केवल यह समझकर ही बहाल कर सकते हैं कि यह कैसे टूटा.” एक अन्य प्राइमेटोलॉजिस्ट के मुताबिक, “समस्या दोहरी है. पहला और स्पष्ट कारण शहरीकरण, औद्योगीकरण और कृषि में तेजी से वृद्धि के कारण निवास स्थान का नुकसान. लेकिन एक बार जब बंदरों का दल इंसानों से परिचित हो जाता है, तो वे अपने प्राकृतिक आवास में वापस जाना पसंद नहीं करते. हम इसे राष्ट्रीय उद्यानों के साथ-साथ राजमार्ग के किनारे स्थित स्थानों पर भी देखते हैं, जहा पर्यटक बंदरों को खाना खिलाते हैं. फिर वे इंसानों के निवास वाले क्षेत्रों के करीब चले जाते हैं,” ये भी पढ़ें- Explainer: इमरजेंसी लैंडिंग के दौरान विमान हवा में ही ईंधन क्यों गिरा देते हैं, कहां जाता है वो फ्यूल? शहरी क्षेत्रों में निवास स्थान की कमी और खराब अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली से बंदरों की भोजन तक पहुंच आसान हो गई है. यही कारण है कि बंदर शहरों में आ रहे हैं. शहरों में रहने वाले बंदर अत्यधिक कुशल हो गए हैं, उन्होंने पैक किए गए खाद्य पदार्थों, बोतलों को खोलना और कचरे को छानना सीख लिया है. शहरी क्षेत्रों में जहां प्राकृतिक भोजन उपलब्ध नहीं है, बंदर पूरी तरह से मानव प्रदत्त भोजन, कूड़े के ढेर और घरों पर छापे पर निर्भर हैं. इसलिए उनकी जन्म दर और आक्रामकता में कमी सुनिश्चित करने के लिए अपशिष्ट प्रबंधन आवश्यक है. हालांकि, दिशानिर्देशों में कहा गया है कि नगरपालिका अधिकारियों को इस दृष्टिकोण पर सावधानी से चलना चाहिए क्योंकि बंदरों की भोजन आपूर्ति में बाधा डालने से वे अधिक आक्रामक हो जाते हैं. भारत में बंदरों की कितनी प्रजातियां भारत में बंदरों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से सबसे ज्यादा मैकॉक और लंगूर हैं. भारत में लंगूरों की 10 प्रजातियां पाई जाती हैं. ये सभी प्रजातियां सेमनोपिथेकस और ट्रेचीपिथेकस दो जेनेरा से संबंधित हैं . भारत में पाया जाने वाला धूसर लंगूर भी लंगूर ही है. कोलोबिनाए पूर्वजगत बंदरों का एक जीववैज्ञानिक उपकुल है. इसमें 10 वंशों में वर्गीकृत 59 जीववैज्ञानिक जातियां आती हैं. दुनिया में बंदरों की कुल 264 प्रजातियां पाई जाती हैं. बंदरों को दो मुख्य प्रजातियों में बांटा गया है… ये भी पढ़ें- Explainer: जहरीली शराब पीने से लोग अंधे हो जाते हैं? जानें कौन सा केमिकल इसका जिम्मेदार नई दुनिया के बंदर: ये बंदर मध्य और दक्षिण अमेरिका में रहते हैं. इनकी नाक चपटी होती है और नथुने बगल की ओर होते हैं. पुरानी दुनिया के बंदर: ये बंदर अफ्रीका और एशिया में रहते हैं.  भारत में बंदरों की कितनी आबादी इस साल जून में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक बंदरों की संख्या अपेक्षा से कहीं कम हो गई है. लंबी पूंछ वाला मैकाक, जिसका वैज्ञानिक नाम मैकाका फेसिकुलरिस है, ये दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे भारत, फिलीपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया, बर्मा, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस और थाईलैंड का मूल निवासी है और मनुष्यों के साथ रहने का इनका एक लंबा इतिहास है. एक अध्ययन में पाया गया कि लंबी पूंछ वाले मैकाक की आबादी पहले की अपेक्षा 80 फीसदी तक कम हो गई है.  शोधकर्ता ने कहा कि हम इस प्रजाति के लिए संरक्षण उपायों को प्राथमिकता देने और सुधार करने की सलाह दे रहे हैं. अगर उत्तराखंड की बात करें 2015 में जब गणना की गई थी तो एक लाख 46 हजार बंदर पाए गए थे. लेकिन, 2021 की गणना में एक लाख दस हजार बंदर पाए गए. इसके पीछे प्रदेश में पिछले कई सालों से की जा रही बंदरों की नसबंदी को बड़ा कारण माना जा रहा है. विशेषज्ञ भी कहते हैं कि नसबंदी ही बंदरों की पापुलेशन को थामने का सबसे सटीक उपाय है.  ये भी पढ़ें– Explainer: क्या ब्रिक्स आने वाले समय में दुनिया का सबसे दमदार संगठन होगा, जी-7 को छोड़ देगा पीछे? बंदरों से जुड़े कुछ और नियम भारत में, जंगल से बाहर भटक रहे बंदरों को मारने पर अब कोई सजा नहीं होगी. वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में बदलाव के बाद, बंदरों को वर्मिन की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है. वर्मिन यानी हानिकारक जानवरों की श्रेणी में वे जानवर आते हैं जो मनुष्यों, पशुधन, फसलों, या संपत्ति के लिए खतरा पैदा करते हैं. हालांकि, बंदरों को जंगल में मारने की अनुमति नहीं है. बंदरों को पालतू जानवर के रूप में रखना गैरकानूनी है. बंदरों से खेल करवाकर लोगों का मनोरंजन करना या उन्हें कैद में रखना गैरकानूनी है. वाइल्ड लाइफ़ एक्ट 1972 की धारा 51 के मुताबिक, किसी जानवर की जिंदगी से मनोरंजन के लिए खिलवाड़ नहीं किया जा सकता. बंदर के काटने से हुए घाव का इलाज, कुत्ते के काटने से हुए घाव की तरह ही किया जाता है. Tags: Monkeys problem, Wild animals, Wild life, Wildlife departmentFIRST PUBLISHED : October 25, 2024, 19:08 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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