UP का पहला बुलडोजर बाबा कौन इलाहाबाद से काशी तक उस अफसर का खौफ
UP का पहला बुलडोजर बाबा कौन इलाहाबाद से काशी तक उस अफसर का खौफ
गरजता बुलडोजर इन दिनों राजनीति में खूब चर्चा में है. राजनीति में इसका अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन उत्तर प्रदेश का पहला बुलडोर बाबा कौन था. इसका जवाब तलाशने पर बाबा हरदेव सिंह का नाम याद आता है. सख्ती से अतिक्रमण हटाने की कहानियां उन्हीं की जुबानी.
हाइलाइट्स माफिया डीपी यादव ने भी मोहलत ले कर ग़ाज़ियाबाद में खुद हटाया था अतिक्रमण मंदिरों के बाबा भी आखिर क्यों नहीं कर पाते थे विरोध
बुलडोर इन दिनों यूपी समेत बहुत से दूसरे प्रदेशों में भी चर्चा में है. पक्ष-विपक्ष राजनीति में भी बुलडोजर पर खूब गरज रहे हैं. गरजरते बुलडोजर की गूंज सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गई थी. लेकिन उत्तर प्रदेश में एक प्रशासनिक अधिकारी की ख्याति बुलडोजर बाबा के तौर थी. ‘ख्याति’ इसलिए लोगों ने मान लिया था कि हरदेव सिंह उनके जिले में आ गए हैं तो कम से कम उनके कार्यकाल में अतिक्रमण हटाना ही होगा. और हटा भी लेते थे.
इलाहाबाद ‘बंधवा’ से अतिक्रमण हटवाया, सुर्खियों में छा गए
वैसे तो एडीएम के तौर पर हरदेव सिंह अलीगढ़ और मुरादाबाद में भी बुलडोर चला कर अतिक्रमण हटवा चुके थे. लेकिन वे सुर्खियों में आए इलाहाबाद से. यहां उनका बुलडोजर बाबाओं पर चलने लगा. दरअसल, अब प्रयागराज हो चुके इस शहर को गंगा के कोप से बचाने के लिए बांध बनाया गया है. इसे बधवां के तौर पर जाना जाता है. ये बांध संगम, गंगा और शहर को अलग अलग करता है. ठीक बांध के दूसरी ओर गंगा के मैदान में श्रद्धालुओं के कल्पवास के लिए तंबुओं का शहर बनता है. इसी तरफ विशाल शंकर मंडपम के नाम से शिवजी का दक्षिण शैली में बनाया गया मंदिर है. उसके आगे लेटे हनुमान जी का स्थान है. बांध पर तमाम छोड़े बड़े मंदिर अभी भी हैं. बांध से लगे दारागंज और मीरापुर इलाके को देखने से बिल्कुल बनारस की फीलिंग आती है. यहां भी बहुत सारे मंदिर हैं. इन छोटे छोटे मंदिरों के महंतों ने अपने मंदिर के आस पास ही थोड़ी थोड़ी जगह कब्जा करके अपने रहने के लिए दो-दो, तीन -तीन कमरों का निर्माण करा लिया था. कुछेक ने तो अपनी सुविधा के हिसाब से इन कोठरीनुमा कमरों को किराए पर भी दे रखा था.
मेले के समय 1994-95 में हरदेव सिंह की तैनाती अपरमेला अधिकारी के तौर पर हुई. अपर मेला अधिकारी ही मेला अधिकारी या डीएम की ओर से मेले का काम-काज देखा करते थे. उन्होंने सबसे पहला काम किया कि पूरे बंधवा से मंदिरों को छोड़ कर सारा अवैध निर्माण हटवाना शुरु कर दिया. शहर में हंगामा मचा. बाबा लोग हाई कोर्ट तक गए. लेकिन कोर्ट ने भी अवैध निर्माण की सुनवाई करने से मना कर दिया. दरअसल गंगा का डूब क्षेत्र सरकार की संपत्ति होता है. साथ ही बांध पर तो कोई निर्माण हो ही नहीं सकता. बाबा हरदेव सिंह कहते हैं – “बांध का निर्माण शहर की सुरक्षा के लिए किया गया था. इस पर अवैध निर्माण से बांध कमजोर हो रहा था. इससे पूरे शहर को खतरा हो सकता था.” जब विरोध शुरु हुआ और बाबा जुटे तो उन्होंने कहा – “देखिए, मैंने मंदिरों को नहीं तुड़वाया है. अगर आप लोग नहीं माने तो देवायतन बनवा कर सभी मूर्तियों को वहां सम्मान से प्रतिष्ठित करा दूंगा.” जब बाबा लोग ने राजनीतिक दलों की सिफारिश के बाद भी दाल गलती नहीं देखी और मंदिरों पर भी कार्रवाई की बात सुनी तो किनारे हो गए.
नाम से ‘बाबा’ कैसे जुड़ा
हरदेव सिंह के नाम से बाबा कैसे जुड़ा, इस सवाल पर वे कहते हैं कि अलीगढ़ में तैनाती के दौरान उनके अच्छे कामों को देख कर कुछ युवकों ने सफाई अभियान चलाने की पहल की. युवकों के निमंत्रण पर हरदेव सिंह वहां पहुंचे. वहीं भाषण में युवकों ने कहा कि उनका काम काज ऐसा है जैसे घर के किसी अभिभावक की हो. इसलिए वे घर के मुखिया -बाबा -है. हरदेव सिंह याद करते हैं -“फिर मीडिया ने बाबा को नाम से ही जोड़ दिया. ” हालांकि ये बाबा पूजा पाठ वाला बाबा नहीं था. वे 1985 से 88 तक अलीगढ़ में एडीएम रहे. इस लिहाज से ये बात सही नहीं है कि बनारस में उन्हें बाबा का नाम मिला.
ग़ाज़ियाबाद को अतिक्रमण मुक्त किया
हरदेव सिंह ग़ाज़ियाबाद के मुख्य नगर अधिकारी रह चुके हैं. ये पद अब नगर आयुक्त कहलाता है. यहां रहते हुए उन्होंने नगर निगम के पास के एक पार्क को दुकानों के अतिक्रमण से मुक्त कराया था. वे याद करते हैं – “ये सुन कर पुलिस अधिकारियों को यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये अतिक्रमण भी हटवाया जा सकता है. उस समय बहुत सजी सजाई दुकाने वहां आबाद कर दी गई थी. उनमें से बहुतों में तो एसी वगैरह भी लगे थे.” लेकिन कानूनी तरीके से नोटिस दे कर हरदेव सिंह ने दुकानदारों को समझा दिया था कि वे चाहें कोर्ट से आदेश ले आए या फिर अपनी दुकानों को खाली कर दें. क्योंकि अगर कोर्ट से आदेश नहीं मिला तो बुलडोजर गरजेगा. हुआ भी यही और दो ढाई घंटे में दो बुलडोरों ने सारा अतिक्रमण हटा दिया. उस वक्त ये खबर सुर्खिया बनी थी.
माफिया सांसद डी पी यादव से ‘मुठभेंड़’
ग़ाजियाबाद में ही वे याद करते हैं- “सांसद रह चुके माफिया डीपी यादव के मकान का एक हिस्सा अतिक्रमण करके बनाया गया था. उनके घर पर निशान लगा दिया गया. निशान और नोटिस देख कर डीपी यादव का फोन आया. उन्होंने कहा कि आपके स्टॉफ के लोग आए थे, उन्होंने अतिक्रमण पर निशान लगा दिया है. लेकिन आपसे आग्रह है कि आप अपना बुलडोजर मत भेजिएगा. वो बहुत नुकसान पहुंचाता है. आज के छठें दिन मैं खुद ही अतिक्रमण हटवा कर आपको फोन करुंगा, आप चेक करा लीजिएगा. और हुआ भी बही.”
बनारस की तंग गलियों सड़कों से अतिक्रमण हटवाया
वाराणसी में साफ सफाई और अतिक्रमण हटाने का सेहरा भी हरदेव सिंह के ही सिर है. सबसे पहले बनारस की तंग गलियों को उन्होंने ही चलने लायक और सड़कों को गाड़ियां निकलने लायक बनाया था. हरदेव सिंह बताते हैं -” वहां बहुत कुछ करना नहीं पड़ा. पहले से लोगों में ये ख्याति पहुंच चुकी थी. मैंने बस ये किया कि एक सूचना अखबार में छपवा दी कि शहर की नालियां दुकान या मकान से ढकी नहीं होनी चाहिए. अगर ढकी दिखी तो नगर निगम तुड़वा कर इसका खर्च संबंधित व्यक्ति से वसूलेगी. इसी तरह की सूचना सड़कों पर अतिक्रमण कर रहे इमारतों के छज्जे के बारे में भी जारी करा दी. लोगों की समझ में आ गया कि निगम तोड़ेगा और खर्च भी वसूलेगा. सूचना में ये भी था कि मलवा गलियों या सड़कों से हटाना पड़ा तो निगम उसका भी खर्च वसूलेगा. अधिकतम लोगों ने इस नोटिस पर ही अतिक्रमण हटा लिया. मलवा फेंक दिया.” हरदेव सिंह वाराणसी में 1997 से 99 तक मुख्य नगर अधिकारी और वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के तौर पर रहे.
‘सिविक सुविधाओं’ का खयाल रखना जरूरी
जहां भी हरदेव सिंह तैनात रहे उन्होंने इसी तरह ईमानदारी से काम किया. वे खुद भी कहते हैं कि अगर इमानदारी और बिना पक्षपात के काम किया जाय तो अधिकारी को कोई दिक्कत नहीं आती. हां, काम करने से आम जनता को लाभ होना चाहिए. वे कहते हैं- “मैंने इस सूत्र पर काम किया कि लोगों को सिविक सुविधाएं मिलें. इसके लिए मैं हमेशा सतर्क रहता था. अगर किसी के घर के सामने सीवर के ओवरफ्लो से बदबू और गंदगी की दिक्कत हो रही है और विभाग में उसकी सुनवाई नहीं हो रही है. मेरे सामने शिकायत पहुंची तो मैं हेल्थ महकमे के इंचार्ज को उसके सामने बुला शिकायत करने वाले से कहता था कि अगर शाम तक तुम्हारी दिक्कत दूर नहीं हुई तो एक चारपाई अपने घर के सामने लगवा देना. रात में डॉक्टर साहब (इंचार्ज हेल्थ डिपार्टमेंट) वहीं रहेंगे और इन्हें वहीं खाना भी खिलाना. डॉक्टर साहेब और उनका विभाग समझ जाता कि शाम तक सफाई न होने पर क्या होगा. शिकायत का निपटारा हो ही जाता था.”
पीसीएस एसो. के अध्यक्ष रहे, राजनीति में भी ‘प्रयोग’ किए
हरदेव सिंह पीसीएस एसोसिएशन के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष भी रहे. कई बार अफसरों को काम काज का तरीका बदलने की सलाह दी, लेकिन ज्यादातर अधिकारियों ने अनसुना ही किया. बाद में खुद विधान परिषद की ग्रेजुएट कांस्टीट्यूनेंसी से चुनाव लड़े लेकिन हार गए. कुछ दिनों के लिए आरएलडी में शामिल हो कर राजनीति में आए, लेकिन जल्द ही समझ में आ गया कि राजनीति उनका काम नहीं है. वे कहते हैं-“वह एक एक्सपेरीमेंट था. जो सफल नहीं हुआ.”
Tags: Administrative Authority, UP bulldozer actionFIRST PUBLISHED : September 5, 2024, 12:27 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed