क्या था लाहौर घोषणापत्र जिसके बाद पाक ने छुरा घोंपाअब शरीफ ने कहा-हमारी गलती

Lahore Declaration : वर्ष 1999 में जब तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी समझौता एक्सप्रेस सेवा की पहली बस में बैठकर दिल्ली से लाहौर गए, तब भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती का एक नया माहौल बनता दीख रहा था. क्या था ये समझौता . कहां गड़बड़ हो गई.

क्या था लाहौर घोषणापत्र जिसके बाद पाक ने छुरा घोंपाअब शरीफ ने कहा-हमारी गलती
हाइलाइट्स अटल बिहारी वाजपेयी तब बस में बैठकर लाहौर समझौता करने गए थे लाहौर समझौता दोनों देशों के बीच विश्वास और दोस्ती का एक नया अध्याय लिखता पाक सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ की सेना कुछ और ही साजिश रचने में लगी हुई थी – वो यादगार और ऐतिहासिक दिन था, फरवरी 1999 को भारत और पाकिस्तान के बीच बस सेवा शुरू हुई. इस बस को समझौता एक्सप्रेस कहा गया. इस बस की उद्गाटन सेवा की बस पर सवार होकर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर पहुंचे. ऐसा लग रहा है कि दोनों देशों के बीच ये अमन चैन और दोस्ती के लिए नए युग की शुरुआत हो रही है. – 21 फरवरी 1999 को भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसे लाहौर समझौता कहा गया. अगर ये समझौता लागू हो जाता तो दोनों पड़ोसी मुल्कों के बीच रिश्तों की शक्लोसूरत कहीं बेहतर होती. – इस समझौते के मुश्किल से ढाई महीने के बाद दोनों देशों के बीच कारगिल युद्ध छिड़ गया. लाहौर समझौता खुद ब खुद बीती बात बन गया भारत ने 1999 में पाकिस्तान के साथ आपसी शांति के लिए लाहौर घोषणापत्र पर साइन किया था. लेकिन इसके तुरंत बाद जनरल परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध छेड़कर समझौते को ना केवल तोड़ा बल्कि विश्वासघात भी किया. तब भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे, जो इस समझौते पर साइन करने लाहौर गए थे. पाकिस्तान के पीएम तब नवाज शरीफ थे. जो फिर पाकिस्तान की सत्तारूढ़ पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के अध्यक्ष चुने गए हैं. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने माना इस्लामाबाद ने भारत के साथ 1999 में शांति समझौते का “उल्लंघन” किया. इसके लिए नवाज शरीफ ने जनरल परवेज मुशर्रफ को कोसा, जिन्होंने तब शरीफ को सैन्य तख्तापलट के बाद पीएम की कुर्सी से हटाकर खुद देश के प्रमुख बन गए थे. जब तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी समझौता एक्सप्रेस बस से दिल्ली से लाहौर के लिए रवाना हुए तो वाघा बॉर्डर पर उनका जमकर स्वागत हुआ. इस बस में वाजेपेयी के साथ देव आनंद, सतीश गुजराल, जावेद अख्तर, कुलदीप नैयर, कपिल देव, शत्रुघ्न सिन्हा और मल्लिका साराभाई जैसी भारतीय हस्तियां सवार थीं. तीन दिनों की बातचीत के बाद नवाज शरीफ और अटल बिहारी वाजपेयी ने 21 फरवरी, 1999 को लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए. दोनों देशों के बीच शांति और स्थिरता के दृष्टिकोण पर बात करने वाला ये एक शानदार समझौता था. हालांकि बमुश्किल ढाई महीने ही चल सका. इसी दौरान जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले में बड़े पैमाने पर पाकिस्तानी घुसपैठ हो रही थी. मामला इतना गंभीर हो गया कि मई से युद्ध छिड़ने की नौबत आ गई. दोनों देशों ने वर्ष 1998 में परमाणु परीक्षण किए थे, उससे तनाव बढ़ने लगा था. इसे खत्म करने के लिए इसी साल के अंतिम महीनों में दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों ने शांति प्रक्रिया के लिए पहल शुरू की. इसके तहत 23 सितंबर 1998 को एक द्विपक्षीय समझौता हुआ. दोनों सरकारों ने शांति और सुरक्षा के माहौल को बनाने और सभी तरह के विवाद को द्विपक्षीय बातचीत के आधार पर तय करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, यही लाहौर घोषणा पत्र का आधार बना. क्या था लाहौर घोषणा पत्र अब जानते हैं कि ये लाहौर घोषणापत्र क्या था. ये भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय समझौता और शासन संधि थी. इस समझौते पर जब वाजपेयी और शरीन ने साइन करके इस पर मुहर लगाई तो उसी वर्ष दोनों देशों की संसद ने इसकी पुष्टि भी कर दी यानि कि दोनों देशों की संसद ने भी इसे हरी झंडी दे दी. संधि की शर्तों के तहत, परमाणु शस्त्रागार के विकास और परमाणु हथियारों के आकस्मिक और अनधिकृत इस्तेमाल से बचने की दिशा में आपसी समझ बनी. लाहौर घोषणा ने दोनों देशों के नेतृत्व को परमाणु दौड़ को खत्म करने के साथ आपसी टकराव से बचने की बात की थी. इस संधि का उद्देश्य दक्षिण एशिया में सैन्य तनाव को कम करना भी था. ये समझौता इसलिए अहम था, क्योंकि ये दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास का नया माहौल बना रहा था. यह दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षर की गई दूसरी परमाणु नियंत्रण संधि थी. पहली संधि 1988 में हुई थी. जब ये समझौता हुआ तो ये महसूस होने लगा कि दोनों देश अतीत की कड़वाहट और तनाव के वातावरण को छोड़कर अब साथ आएंगे. एक भाईचारे और दोस्ती की स्थिति दोनों देशों के बीच अब बन जाएगी. इसकी तारीफ देश विदेश हर जगह हुई. – दोनों सरकारों ने शांति, स्थिरता और आपसी प्रगति के दृष्टिकोण और शिमला समझौते और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रति अपनी पूर्ण प्रतिबद्धता पर जोर दिया. – दोनों सरकारों ने विशेष रूप से परमाणु हथियारों के आकस्मिक और अनधिकृत उपयोग से बचने का वादा किया – भारत और पाकिस्तान ने परमाणु संघर्ष से बचने के लिए एक दूसरे को बैलिस्टिक मिसाइल उड़ान परीक्षणों और परमाणु हथियारों के आकस्मिक या अस्पष्टीकृत उपयोग की अग्रिम सूचना देने का फैसला किया. – संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के सिद्धांतों और उद्देश्यों और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सार्वभौमिक स्वीकृत सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता जताई – सार्वभौमिक परमाणु निरस्त्रीकरण और अप्रसार के उद्देश्यों को लेकर वादा किया – कश्मीर संघर्ष और अन्य विवादों को हल करने की कोशिश को तेज करने के साथ द्विपक्षीय वार्ता को बढ़ाने पर जोर दिया – दोनों सरकारों ने आतंकवाद की निंदा की – एक-दूसरे के आंतरिक मामलों और दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ के उद्देश्यों में हस्तक्षेप न करने की बात की – मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के प्रति प्रतिबद्धता जताई. शिखर सम्मेलन के समापन पर दोनों विदेश मंत्रियों के लगातार मिलने और तमाम मुद्दों पर बातचीत के साथ नागरिक बंदियों और युद्ध के लापता कैदियों की जांच के लिए दो सदस्यीय मंत्रिस्तरीय समिति की स्थापना की बात की. आम जनता को ये समझौता बहुत पसंद आया दोनों ही देशों के आम नागरिकों ने इसका दिल खोलकर स्वागत किया. उन्हें ये समझौता बहुत पसंद आया. ये लगा था कि दोनों देश आपसी कटुता के अतीत को भूलकर अब दोस्ती और भाईचारे का माहौल बनाएंगे. राजनीतिक तौर पर भी इसका स्वागत किया दूसरी तरफ पाकिस्तान पीठ में चाकू घोंपने की साजिश में जुटा था किसको मालूम था कि एक ओर तो ये समझौता हो रहा है., दूसरी ओर पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ कुछ और ही साजिश करने में जुटे हैं. उन्होंने चुपचाप कारगिल में घुसपैठ करने शुरू कर दी थी, जिसका पता भारत में देर से चला. फिर कारगिर युद्ध ने सब बर्बाद कर दिया मई 1999 में कारगिल युद्ध के छिड़ने के बाद दोनों देशों के रिश्ते फिर कटुता से भर उठे. जब अचानक पता चला कि पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय प्रशासित कश्मीर में घुसपैठ की. पाकिस्तानी सेना के सैनिकों को बाहर निकालने और विवादित क्षेत्र पर फिर से कब्जा करने के लिए भारतीय सेना को संघर्ष करना पड़ा. युद्ध करीब दो महीने तक चला. दोनों पक्षों के सैकड़ों सैनिकों की जान गई. दोनों देश पूर्ण पैमाने पर युद्ध और संभावित परमाणु संघर्ष के करीब पहुंच गए. इसके बाद से ही दोनों देशों में इस मामले में कोई पहल नहीं हो पाई है. अविश्वास का माहौल भी बहुत बढ़ा. क्यों मुशर्रफ ने ये साजिश रची नवाज़ शरीफ़ ने जनरल जहाँगीर करामत को बर्खास्त करने के बाद 1998 में परवेज मुशर्रफ को सेना प्रमुख नियुक्त किया था. शरीफ़ ने शायद सोचा होगा कि पंजाबी जनरल को यह पद देने की तुलना में मोहाजिर को नियुक्त करना ज़्यादा सुरक्षित दांव रहेगा. वहीं मुशर्रफ़ यह साबित करना चाहते थे कि वे किसी भी पंजाबी की तरह ही पाकिस्तानी हैं, उन्हें मुहाजिर कहकर निष्ठा पर शक नहीं किया जा सकता. इसके चलते मुशर्रफ ने चुपचाप कारगिल में घुसपैठ की योजना बनाई, जिसकी जानकारी शायद पाकिस्तान सरकार को भी नहीं थी. जिसके चलते भारत के साथ पाकिस्तान का एक छोटा तीखा युद्ध हुआ. लेकिन ये युद्ध पाकिस्तान को उल्टा काफी भारी बैठा. फिर पाकिस्तान में सैन्य तख्तापलट इसके बाद शरीफ ने मुशर्रफ को हटाना चाहा लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए. जिसके बाद ही मुशर्रफ ने सैन्य तख्तापलट कर दिया. उन्होंने सेना प्रमुख के रूप में अपना पद बरकरार रखते हुए पाकिस्तान के मुख्य कार्यकारी की भूमिका निभाई. बाद में राष्ट्रपति का पद ग्रहण किया. Tags: India pakistan, India Pakistan Relations, India pakistan war, Lahore newsFIRST PUBLISHED : May 29, 2024, 11:24 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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