आखिर बंगाल में क्यों होती है इतनी राजनीतिक हिंसा कौन है इसका जिम्मेदार
आखिर बंगाल में क्यों होती है इतनी राजनीतिक हिंसा कौन है इसका जिम्मेदार
Political Violence in West Bengal: पश्चिम बंगाल में राजनीति की बात होती है तो पहले वहां की सियासी हिंसा की चर्चा होती है. देश के करीब-करीब हर राज्य में चुनाव के दौरान हिंसा की छिटपुट घटनाएं होती हैं. यानी इन राज्यों में हिंसा चुनावी होती है. वहीं, पश्चिम बंगाल में हिंसा का नाता चुनाव से नहीं राजनीति से हो गया है.
पश्चिम बंगाल में हिंसा और राजनीति एक दूसरे के पूरक हैं. जब भी पश्चिम बंगाल में राजनीति की बात होती है तो पहले वहां की सियासी हिंसा की चर्चा होती है. देश के करीब-करीब हर राज्य में चुनाव के दौरान हिंसा की छिटपुट घटनाएं होती हैं. यानी सभी राज्यों में हिंसा चुनावी होती है. वहीं, पश्चिम बंगाल में हिंसा का नाता चुनाव से नहीं राजनीति से हो गया है. पश्चिम बंगाल में दशकों से राजनीतिक हिंसा आम बात है.
आजादी के बाद से बंगाल ने कई राजनीतिक दलों के नेतृत्व वाली सरकारें देखी हैं. जिनमें दो दशकों से अधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस और तीन दशकों से अधिक समय तक शासन करने वाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा शामिल हैं. ममता बनर्जी की अगुआई वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) मौजूदा सरकार का नेतृत्व करती है. इन सभी शासनों में, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के बीच, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, हिंसक झड़पों की संस्कृति पिछले कुछ वर्षों में ही पनपी है. इन घटनाओं ने पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा को सुखियों में दिया है.
पुराना है राजनीतिक हिंसा का इतिहास
पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा की शुरुआत नक्सल आंदोलन के साथ हुई. 1960 से 1970 के बीच शुरू हुई नक्सली हिंसा धीरे-धीरे राजनीतिक हिंसा में बदल गई. एक सरकारी आंकड़े की मानें तो इन पांच दशकों में पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा में करीब 30 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. लेकिन सूबे में राजनीतिक हिंसा का दौर आज भी जारी है. पिछले दो दशकों में सबसे ज्यादा मौत सिंगुर और नंदीग्राम आंदोलन में हुईं. राजनीतिक जानकार इस बात से भी डरे हुए थे कि जैसे-जैसे राज्य में आम चुनाव होंगे राजनीतिक हिंसा में बढोतरी होगी.
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क्या क्षेत्रीय राजनीति है इस हिंसा की जिम्मेदार
पश्चिम बंगाल में हिंसा का दौर 1960 के बाद शुरू हुआ. उसके बाद 1967 में राज्य में लेफ्ट पार्टी की सरकार आई जो 2011 तक यानी 34 साल तक रही. एक आंकड़े के मुताबिक इन 34 वर्षों के दौरान राज्य में राजनीतिक हिंसा में 28 हजार लोग मारे गए. ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुए नंदीग्राम और सिंगुर आंदोलन को पश्चिम बंगाल की सरकार ने जिस हिंसात्मक तरीके से दबाया वो ताबूत में आखिरी कील साबित हुई और 34 साल की लेफ्ट सरकार का पतन हुआ. लोगों को उम्मीद जगी कि अब सरकार बदलने के बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा खत्म हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पंचायत चुनाव हो या विधानसभा-लोकसभा चुनाव, पश्चिम बंगाल में हिंसा कम नहीं हुई. अब तो बिना किसी चुनाव के भी राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या और उन पर हमला आम बात हो गई है.
राजनीतिक हिंसा और लोकतंत्र
आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक पेपर के मुताबिक लोकतंत्र और हिंसा का सहजीवी संबंध है. यहां तक कि दुनिया के सबसे परिपक्व लोकतंत्र भी इस तरह के गहरे संबंध को खत्म करने में असमर्थ रहे हैं. उदाहरण के लिए, 1980 के दशक के उत्तरार्ध और 2000 के दशक के बीच, ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड, इटली और जर्मनी जैसे पश्चिमी यूरोप के देशों में वामपंथी और दक्षिणपंथी चरमपंथी समूहों की ओर से राजनीतिक हिंसा का विस्फोट देखा गया. हाल के वर्षों में, दुनिया ने यूनाइटेड किंगडम (यूके) में ब्रेक्सिट मुद्दे, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) में ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन और 2020 के अमेरिकी चुनावों पर राजनीतिक हिंसा की घटनाएं देखीं. हालांकि, कोई यह कह सकता है कि अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों में राजनीतिक हिंसा अधिक आम है.
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तो आखिर कैसे बदलेगी तस्वीर
बंगाल में लेफ्ट के 34 साल और ममता बनर्जी के 13 साल के कार्यकाल में राजनीतिक हिंसा की तस्वीर बदलती नजर नहीं आई. ऐसे में लोगों की उम्मीद अब किसी तीसरे विकल्प पर है. यह विकल्प 2026 के विधानसभा चुनावों में तय होगा. साफ है कि पश्चिम बंगाल की जनता के सामने लेफ्ट और कांग्रेस, टीएमसी और बीजेपी तीन विकल्प होगें. जिनमें कांग्रेस, लेफ्ट और टीएमसी का विकल्प वहां की जनता पहले ही आजमा चुकी है. ऐसे में बीजेपी अपने आप को राज्य में मजबूत विकल्प के रूप में देख रही है. शायद इसीलिए बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है.
Tags: BJP, BJP VS TMC, Congress, Mamta Banarjee, West bengal newsFIRST PUBLISHED : May 24, 2024, 16:15 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed