Explainer: अमेरिका हटाने जा रहा परमाणु प्रतिबंध उससे क्या होगा भारत को फायदा

मई 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने कई भारतीय परमाणु ऊर्जा कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया था. अब 26 साल बाद अमेरिका इन प्रतिबंधों को हटाने जा रहा है, इससे क्या फायदा होगा.

Explainer: अमेरिका हटाने जा रहा परमाणु प्रतिबंध उससे क्या होगा भारत को फायदा
हाइलाइट्स अमेरिका हटाएगा भारतीय परमाणु संस्थाओं पर से प्रतिबंध 1998 में पोखरण विस्फोट के बाद से लगा हुआ था प्रतिबंध भारत को छोटे परमाणु रिएक्टरों के लिए तकनीक की जरूरत अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा है कि अमेरिकी सरकार भारतीय परमाणु संस्थाओं पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया में है ताकि भारत के साथ ऊर्जा संबंध स्थापित किए जा सकें. 20 वर्ष पुराने ऐतिहासिक परमाणु समझौते को मजबूती मिल सके. दरअसल भारत अपनी ऊर्जा की बड़े पैमाने पर आपूर्ति परमाणु बिजली घरों के जरिए करता है. 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा हस्ताक्षरित एक समझौते के तहत अमेरिका को भारत को असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी बेचने की अनुमति दी गई थी. लेकिन इसकी शर्तें ऐसी थीं कि इसमें अड़चन आती रही, ये लागू नहीं हो सका. जिन नियमों के कारण इस समझौते में अड़चन आ रही थी, अब अमेरिका उन्हें हटाने की बात कर रहा है. सुलिवन ने दो दिवसीय यात्रा के दूसरे दिन नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में कहा, “संयुक्त राज्य अमेरिका अब उन दीर्घकालिक नियमों को हटाने के लिए आवश्यक कदमों को अंतिम रूप दे रहा है, जिनके कारण भारत की अग्रणी परमाणु इकाइयों और अमेरिकी कंपनियों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग में बाधा आ रही है.” सवाल – भारत ने 1998 में क्या किया था जो अमेरिका ने भारत की कई संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाए? – भारत ने 11 और 13 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण किए. इस परीक्षण को ऑपरेशन शक्ति के नाम से जाना गया था. हालांकि इसके बाद कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. अमेरिका अमेरिका ने तब 200 से अधिक भारतीय संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिए. सवाल – क्या ये प्रतिबंध अब भी लागू हैं? – नहीं ज्यादातर देशों ने भारत पर लगाए ये प्रतिबंध हटा लिए हैं. अमेरिका ने भी द्विपक्षीय संबंधों के विकसित होने के बाद कई संस्थाओं को इस सूची से हटा दिया. जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, तब अमेरिका के साथ एक परमाणु समझौता हुआ लेकिन उसकी कुछ कड़ी शर्तों पर भारत को एतराज था, जिस कारण ये समझौता अधर में लटक गया. भारत और अमेरिका ने मार्च 2006 में असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये लेकिन भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध किसी भी सहयोग में बाधा बने रहे. अमेरिकी संघीय रजिस्टर के अनुसार, अमेरिकी निर्यात प्रशासन ब्यूरो ने 1998 में भारतीय परमाणु ऊर्जा विभाग की कुछ संस्थाओं जैसे भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र, इंडियन रेयर अर्थ्स, परमाणु रिएक्टरों पर प्रतिबंध लगा दिया था. सवाल – अब इसे लेकिन क्या ताजातरीन स्थिति है? – अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का चार साल का कार्यकाल 20 जनवरी को समाप्त होगा, उन्होंने पीएम मोदी को एक पत्र भेजकर भारत-अमेरिका संबंधों में वृद्धि को याद किया. ये पत्र अमेरिकी एनएसए सुलिवन भारत लेकर आए. अब अमेरिका भारतीय कंपनियों को प्रतिबंधित इकाई सूची से हटाने के लिए अपने कार्यवाहियों को अंतिम रूप दे रहा है ताकि असैन्य परमाणु क्षेत्र में सहयोग की अनुमति मिल सके. इसे भारत की की अग्रणी परमाणु संस्थाओं और अमेरिकी कंपनियों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग शुरू हो जाएगा. सवाल – इससे भारत और अमेरिका का क्या फायदा होगा? – अमेरिकी परमाणु क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियों का कारोबार भारत में बढ़ेगा तो भारत के निजी क्षेत्र, वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकी विदों को अमेरिका के के साथ गहन सहयोग करने का अवसर मिलेगा. इसे बहुत बड़ी बात माना रहा है. इससे दोनों देशों के संबंध मजबूत होंगे. सवाल – अमेरिका क्यों अब इस मामले में लचीला पड़ रहा है? – दरअसल परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत लगातार बेहतर कर रहा है. अमेरिका को अच्छी तरह मालूम है कि भारत के साथ मिलकर काम करने पर उसको फायदा होगा. क्योंकि अब ऊर्जा से लेकर अंतरिक्ष तक के कई सेक्टर ऐसे हैं, जहां दोनों देशों को एक दूसरे की जरूरत है. अमेरिकी और भारतीय कंपनियों को अगली पीढ़ी की सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकियों के निर्माण के लिए मिलकर काम करते देखेंगे. साथ ही अमेरिकी और भारतीय अंतरिक्ष यात्री मिलकर अत्याधुनिक अनुसंधान और अंतरिक्ष अन्वेषण करेंगे. फिर अमेरिका भारत में बड़ा निवेश कर रहा है. उसी तरह भारत ने अमेरिकी निवेश में भूमिका निभाई है. पिछले दो दशकों में दोनों देश करीब आए हैं. आपसी विश्वास बढ़ा है. कुछ अनुमानों के अनुसार अमेरिका में भारतीय निवेश ने 4,00,000 नौकरियां पैदा की हैं. सवाल – क्या इस समझौते के बारे में पूरी जानकारी सामने आई है? – अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने विस्तृत जानकारी नहीं दी, लेकिन सूत्रों से पता चला है कि तीन संस्थाओं को काली सूची से हटाया जा सकता है, लेकिन वर्तमान में भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग को आगे बढ़ाने में दो प्रमुख कानूनी बाधाएं हैं. अमेरिकी पक्ष में, एक महत्वपूर्ण बाधा ’10सीएफआर810′ प्राधिकरण (अमेरिकी परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1954 के संघीय विनियमन संहिता (भाग 810) के शीर्षक 10 का भाग 810) है, जो अमेरिकी परमाणु विक्रेताओं को कुछ सख्त सुरक्षा उपायों के तहत भारत जैसे देशों को उपकरण निर्यात करने की अनुमति देता है, लेकिन उन्हें यहां कोई भी परमाणु उपकरण बनाने या कोई भी परमाणु डिजाइन कार्य करने की अनुमति नहीं देता. इसमें दुर्घटना होने की स्थिति में पीड़ितों को मुआवजा का दायित्व लेने में भी गतिरोध रहा है. देखना होगा कि उसको दोनों देश कैसे संबोधित करते हैं. सवाल – मोटे तौर पर क्या लगता है कि अमेरिका क्यों अब इसे लेकर भारत से हाथ मिलाना चाहता है? – भारत में परमाणु उर्जा और परमाणु रिएक्टरों का बड़ा बाजार है. भारत लगातार इसे आगे बढ़ा रहा है. भारत बड़े पैमाने पर परमाणु रिएक्टरों, विशेषकर छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों या एसएमआर, जिनकी क्षमता 30 मेगावाट से 300 मेगावाट के बीच है, उनका निर्माण करना चाहता है. उन्हें भविष्य के लिए स्थापित करना चाहता है. चीन भी इसी तरह की महत्वाकांक्षी योजना पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है, हालांकि वह बड़े रिएक्टरों के मामले में अपेक्षाकृत देर से आगे आया है. भारत को असैन्य परमाणु कार्यक्रम में छोटे रिएक्टर और उससे ऊपर के निर्माण में विशेषज्ञता है लेकिन भारत के लिए समस्या इसकी रिएक्टर तकनीक है. हेवी वाटर और प्राकृतिक यूरेनियम पर आधारित PHWRs लाइट वाटर रिएक्टर (LWR) के साथ तालमेल बिठाने में हम तेजी से पिछड़ रहे हैं जिस तकनीक पर अब दुनियाभर में प्रमुख रिएक्टर बन रहे हैं. रूस और फ्रांस के साथ-साथ अमेरिकी भी LWR प्रौद्योगिकी में अग्रणी है. Tags: India US, Nuclear EnergyFIRST PUBLISHED : January 7, 2025, 11:51 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed