भारत में हैदराबाद विलय पर पाकिस्तान इतना बौखलाया कि दिल्ली पर बम गिराना चाहता था क्यों नहीं कर सका

ठीक 74 साल पहले जब भारतीय सेनाएं पूरी रणनीति तैयार करके हैदराबाद में घुसीं तो निजाम को कतई उम्मीद नहीं थी कि भारत ऐसी कोई कार्रवाई करेगा. 05 दिनों के संघर्ष के बाद भारतीय सेना ने शहर में परेड निकाल ऐलान कर दिया कि अब ये रियासत निजाम के हाथों से निकल चुकी है. हैदराबाद अब भारत का अंग है.

भारत में हैदराबाद विलय पर पाकिस्तान इतना बौखलाया कि दिल्ली पर बम गिराना चाहता था क्यों नहीं कर सका
हाइलाइट्सतब का हैदराबाद क्षेत्रफल के लिहाज से इंग्लैंड और स्काटलैंड से ज्यादा बड़ा थापाकिस्तान किसी भी हालत में नहीं चाहता था कि हैदराबाद का विलय भारत में होपाकिस्तान तब भारत में सैन्य कार्रवाई करना चाहता था लेकिन कर नहीं पाया आज से ठीक 74 साल पहले भारतीय सेना ने हैदराबाद को भारत में मिलाने की कार्रवाई शुरू की, जिसे आपरेशन पोलो कहा गया. इससे ठीक दो दिन पहले हैदराबाद के निजाम को भड़काने और बरगलाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना की मृत्यु हो चुकी थी. मुश्किल से 05 दिनों में हैदराबाद को भारत में मिला लिया गया. भारत के कदम ने पाकिस्तान को बहुत विचलित किया. उसने हरसंभव कोशिश की थी कि हैदराबाद कभी भारत का नहीं हो पाए. ये बड़ा प्रिंसले स्टेट था. क्षेत्रफल के लिहाज से वो इंग्लैंड और स्काटलैंड से ज्यादा बड़ा. अंग्रेज़ों के दिनों में भी हैदराबाद की अपनी सेना, रेल सेवा और डाक तार विभाग हुआ करता था. आबादी और सकल राष्ट्रीय उत्पाद की दृष्टि से हैदराबाद भारत का सबसे बड़ा राजघराना था. क्षेत्रफल था 82697 वर्ग मील. निजाम बिल्कुल नहीं चाहते थे कि वो भारत में अपनी रियासत का विलय करें. उन्होंने पाकिस्तान के कायदेआजम जिन्ना को काफी मोटी रकम इस बात के लिए दी थी कि वो हैदराबाद को भारत में नहीं देने को लेकर मदद करेंगे. जिन्ना ने भरपूर आश्वासन भी दिया.  निजाम के रिश्ते कई और देशों से भी थे. सबसे बड़ी बात निजाम की शादी तुर्की के आखिरी खलीफा की बेटी से हुई थी. उन्हें “टाइम” मैगजीन ने दुनिया का सबसे धनी शख्स भी आंका था. जिन्ना को क्या संदेश भेजा था हैदराबाद की आबादी के 80 फ़ीसदी हिंदू थे जबकि अल्पसंख्यक होते हुए भी मुसलमान प्रशासन और सेना में महत्वपूर्ण पदों पर बने थे. इतिहासकार केएम मुंशी की किताब ”एंड ऑफ एन एरा” में लिखा है कि निजाम ने जिन्ना को संदेश भेजकर जानने की कोशिश की क्या भारत के खिलाफ लड़ाई में वह हैदराबाद का समर्थन करेंगे? भारतीय सेना की हैदराबाद में 13 सितंबर 1948 को हुई कार्रवाई पटेल चाहते थे किसी भी सूरत में विलय प्रधानमंत्री नेहरू और माउंटबेटन चाहते थे कि पूरे मसले का हल शांतिपूर्ण ढंग से किया जाए. सरदार पटेल सहमत नहीं थे. उनका मानना था कि उस समय का हैदराबाद ‘भारत के पेट में कैंसर के समान था’, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. पटेल को अंदाज़ा था कि हैदराबाद पूरी तरह से पाकिस्तान के कहने में था. यहां तक कि पाकिस्तान पुर्तगाल के साथ हैदराबाद का समझौता कराने की फिऱाक़ में था, जिसके बाद वो गोवा में अपने लिए बंदरगाह बनवाना चाहता था. राष्ट्रमंडल का सदस्य बनने की भी इच्छा थी और तो और हैदराबाद के निजाम ने राष्ट्रमंडल का सदस्य बनने की भी इच्छा जाहिर की थी, जिसे एटली सरकार ने ठुकरा दिया. निज़ाम के सेनाध्यक्ष मेजर जनरल एल एदरूस ने अपनी किताब ”हैदराबाद ऑफ़ द सेवेन लोव्स” में लिखा है कि निज़ाम ने उन्हें ख़ुद हथियार खऱीदने यूरोप भेजा था. वह अपने मिशन में सफल नहीं हो पाए थे. तत्कालीन गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल ने थल सेनाध्यक्ष करियप्पा को बुलाकर पूछा- क्या हम हैदराबाद में सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार हैं. उनका जवाब था – हां करियप्पा ने दिया था पटेल को ये जवाब एक समय जब निज़ाम को लगा कि भारत हैदराबाद के विलय के लिए दृढ़संकल्प है तो उन्होंने ये पेशकश भी की कि हैदराबाद को एक स्वायत्त राज्य रखते हुए विदेशी मामलों, रक्षा और संचार की जिम्मेदारी भारत को सौंप दी जाए. पटेल हैदराबाद पर सैन्य कार्रवाई के पक्ष में थे. उसी दौरान पटेल ने जनरल केएम करियप्पा को बुलाकर पूछा कि अगर हैदराबाद के मसले पर पाकिस्तान की तरफ़ से कोई सैनिक प्रतिक्रिया आती है तो क्या वह बिना किसी अतिरिक्त मदद के उन हालात से निपट पाएंगे? करियप्पा ने इसका एक शब्द का जवाब दिया- हां…और इसके बाद बैठक ख़त्म हो गई. दो बार रद्द हुई सेना की कार्रवाई इसके बाद सरदार पटेल ने हैदराबाद के खिलाफ सैनिक कार्रवाई को अंतिम रूप दिया. भारत के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल रॉबर्ट बूचर इस फ़ैसले के खिलाफ थे. उनका कहना था कि पाकिस्तान की सेना इसके जवाब में अहमदाबाद या बंबई पर बम गिरा सकती है. दो बार भारतीय सेना की हैदराबाद में घुसने की तारीख तय की गई लेकिन लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते इसे रद्द करना पड़ा. निज़ाम ने गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी से व्यक्तिगत अनुरोध किया कि वे ऐसा न करें. हैदराबाद में भारतीय सेना की कार्रवाई में सबसे ज्यादा हैदराबाद के राजकर मारे गए, जो वहां पुलिस का एक अंग थे पटेल ने गुप्त योजना बनाई इसी बीच पटेल ने गुप्त तरीके से योजना को अंजाम देते हुए भारतीय सेना को हैदराबाद भेज दिया. जब नेहरू और राजगोपालाचारी को भारतीय सेना के हैदराबाद में प्रवेश कर जाने की सूचना दी गई तो वो चिंतित हो गए. पटेल ने घोषणा की कि भारतीय सेना हैदराबाद में घुस चुकी है. इसे रोकने के लिए अब कुछ नहीं किया जा सकता. दरअसल नेहरू की चिंता ये थी कि कहीं पाकिस्तान कोई जवाबी कार्रवाई न कर बैठे. ऑपरेशन पोलो भारतीय सेना की इस कार्रवाई को ‘ऑपरेशन पोलो’ का नाम दिया गया क्योंकि उस समय हैदराबाद में विश्व में सबसे ज्यादा 17 पोलो के मैदान थे. पाकिस्तान भी चुपचाप नहीं बैठा. जैसे ही भारतीय सेना हैदराबाद में घुसी, पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाक़त अली खान ने डिफ़ेंस काउंसिल की मीटिंग बुलाई. उनसे पूछा कि क्या हैदराबाद में पाकिस्तान कोई ऐक्शन ले सकता है? बैठक में मौजूद ग्रुप कैप्टेन एलवर्दी (जो बाद में एयर चीफ़ मार्शल और ब्रिटेन के पहले चीफ़ ऑफ डिफ़ेंस स्टाफ़ बने) ने कहा ‘नहीं.’ हैदराबाद आजादी से पहले भारत की अकेली ऐसी रियासत थी, जिसके पास पुलिस, सेना और डाक सेवाएं थीं लियाक़त ने ज़ोर दे कर पूछा ‘क्या हम दिल्ली पर बम नहीं गिरा सकते हैं?’ एलवर्दी का जवाब था कि हां, ये संभव तो है लेकिन पाकिस्तान के पास कुल चार बमवर्षक हैं, जिनमें से सिर्फ दो काम कर रहे हैं. इनमें से एक शायद दिल्ली तक पहुंच कर बम गिरा भी दे लेकिन इनमें कोई वापस नहीं आ पाएगा. पांच दिन चली कार्रवाई भारतीय सेना की कार्रवाई हैदराबाद में पांच दिनों तक चली, इसमें 1373 रज़ाकार मारे गए. हैदराबाद स्टेट के 807 जवान भी मारे गए. भारतीय सेना ने 66 जवान खोए जबकि 96 जवान घायल हुए. भारतीय सेना की कार्रवाई शुरू होने से दो दिन पहले ही 11 सितंबर 1948 को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का निधन हो गया था. 1948 के दौरान हैदराबाद में चारमीनार के आसपास का इलाका संयुक्त राष्ट्र में पाक ने मुंह की खाई पाकिस्तान ने फिर इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठाने की कोशिश की, वो इसमें कामयाब भी हुआ. उस समय आठ सदस्यों ने वोट दिया कि इस पर विचार किया जाये. सोवियत संघ, चीन और यूक्रेन ने तटस्थ रहकर एक तरह से भारत का साथ दिया. अगर ये मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में उठता तो पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय तौर पर काफी फायदा मिल सकता था. संयुक्त राष्ट्र में मामले पर विचार के लिए 17 सितंबर 1948 की तारीख तय की गई. इससे एक दिन पहले ही हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान ने आत्मसमर्पण कर दिया. पाकिस्तान और उसके समर्थकों का चेहरा फीका पड़ गया. रही-सही कसर भारतीय प्रतिनिधियों के बैठक में नहीं आने से पूरी हो गई. यानी पूरा मामला ही खत्म हो गया. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Andhra paradesh, Hyderabad, Sardar patel, TelanganaFIRST PUBLISHED : September 13, 2022, 09:20 IST