सूरज - चांद प्रेमी प्रेमिका हैं ग्रहण के समय पर्दा लगाकर प्रेमलीला करते हैं
सूरज - चांद प्रेमी प्रेमिका हैं ग्रहण के समय पर्दा लगाकर प्रेमलीला करते हैं
प्राचीन समय में तो ग्रहण को लेकर डर समझ में आता है लेकिन अब भी जब ग्रहण पड़ता है, इसे लेकर तमाम अंधविश्वास लोग मानने लगते हैं. ग्रहण को लेकर धार्मिक अंधविश्वास और मान्यताएं भी कम नहीं हैं. लेटिन अमेरिका की एक प्रजाति मानती है कि ग्रहण पड़ने का मतलब है सूर्य और चांद के प्रेमी और प्रेमिका के तौर पर मिलन का समय.
हाइलाइट्सक्या-क्या अंधविश्वास फैले हुए हैं दुनियाभर में ग्रहण को लेकर पहले लोग ग्रहण होते ही डर जाते थे इसे आसमानी ताकतों की नाराजगी समझते थेवैसे अब भी विज्ञान के बावजूद ग्रहण को धार्मिक तौर पर अच्छा नहीं समझा जाता
25 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण है. इस ग्रहण में पूर्ण सूर्यग्रहण की स्थिति बनेगी. जब मनुष्य को खगोल, विज्ञान और ब्रह्मांड की घटनाओं की जानकारी नहीं थी तो उसे हर खगोलीय घटना डराती थी, कौतुहल पैदा करती है – ये हमेशा से होता आया है. फिर वह अपनी बुद्धि से इस ग्रहण को तमाम उन पारलौकिक या रहस्यपूर्ण घटनाओं से जोड़ देता था, जिसे लेकर हजारों सालों से कहानियां बनाई जाती रही हैं.
सूर्य ग्रहण भी डराता रहा है. कुछ को अपशकुन लगता है, कुछ को लगता है कि ये स्थिति तब आती है जब सूरज के साथ कुछ अनहोनी होने लगती है. इस दुनिया के एक इलाके के लोग पहले ये मानते थे कि दरअसल सूरज प्रेमी और चंद्रमा उसकी प्रेमिका है. दोनों की मुलाकात कम ही हो पाती है. और जब होती है तो दोनों चाहते हैं कि कुछ ऐसा हो कि दुनिया दोनों का मिलन देख नहीं पाएं.
दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र के मूल निवासी और अमेरिका के उत्तर-पश्चिम तट पर रहने वाले स्थानीय अमेरिकी कबीले मानते थे कि सूरज और चांद प्रेमी-प्रेमिका हैं. ग्रहण के दौरान वे धरती से पर्दा करके प्रेमलीला करते हैं. अब प्रेमलीला तो वो सबको दिखाकर नहीं कर सकते इसलिए दुनिया को पता नहीं लगने देते कि उनकी प्रेमलीला में क्या हो रहा है.
आमतौर पर ग्रहण को खतरे का प्रतीक ज्यादा माना जाता रहा है. इसके होने के बाद माना जाता है कि दुनिया में ये ग्रहण कोई अनिष्ट लाने वाला है या इससे कुछ ऐसा होगा जिसको अच्छा नहीं कहा जा सकता.
विज्ञान के राज के बाद भी अंधविश्वास
हिंदू मिथकों में इसे अमृतमंथन और राहु-केतु नामक दैत्यों की कहानी से जोड़ा जाता है. ग्रहण हमेशा से इंसान को हैरान करता है, डराता रहा है.बेशक दुनिया में अब विज्ञान का राज है लेकिन इसके साथ साथ भी धार्मिक और दूसरे अंधविश्वास तो बने ही हुए हैं.
प्राचीन काल ही नहीं बल्कि मध्य काल में भी ग्रहण के समय दुनिया किसी अनिष्ट की आशंका से डरी रहती थी. उसे लगता था कि जिस तरह दिन में रात हो गई है, वो बहुत अनहोनी घटना है, इससे डर कर लोग घऱों में छिपकर भी खौफ में रहते थे. (फाइल फोटो)
धार्मिक क्रियाकलाप बंद कर दिया जाता है
अब भी दुनियाभर में ग्रहण के दौरान इसी वजह से धार्मिक क्रियाकलाप बंद कर दिये जाते हैं. इस बार ही भारत में दीवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा थी, जिसे केवल सूर्यग्रहण के कारण एक दिन आगे टाल दिया गया. मतलब ग्रहण अब भी अंधविश्वास का जनक तो बना ही हुआ है.
हनुमान से सूरज को खा लिया था
हिंदु मान्यता ये भी है कि दरअसल हनुमान जी के सूरज को कुछ देर के लिए खा लेने की वजह से भी सूर्यग्रहण होता है. दरअसल हनुमान जी बालक थे, तब वह खेलते खेलते हुए सूरज के पास पहुंचे और इसे कोई खिलौना समझकर खाने लगे. उन्हें किसी तरह ऐसा नहीं करने के लिए मनाया गया तो उन्होंने सूरज को छोड़ दिया.
पश्चिमी एशियाई देशों में मान्यता है कि ग्रहण में ड्रैगन सूरज को निकल लेता है.
ड्रैगन सूरज को निगलने की कोशिश करता है
पश्चिमी एशिया में मान्यता थी कि ड्रैगन सूरज को निगलने की कोशिश करता है. इसलिए वहां ग्रहण पड़ने के दौरान ड्रैगन को भगाने के लिए ढोल-नगाड़े बजाए जाते थे. चीन में माना जाता था कि स्वर्ग का एक कुत्ता सूरज और चांद को निगल लेता है, जिससे ये ग्रहण पड़ते हैं. पेरुवासियों के मुताबिक यह एक विशाल प्यूमा था. वाइकिंग मान्यता थी कि ग्रहण के समय आसमानी भेड़ियों का जोड़ा सूरज पर हमला करता है.
लोगों को लगता था कि आसमानी ताकतें नाराज हैं
ग्रहण जब प्राचीन समय में आता था तो लोग घरों से बाहर नहीं निकलते थे. उन्हें लगता था कि ग्रहण में आसमानी ताकतें अपनी नाराजगी जाहिर कर रही हैं, लिहाजा इन आसमानी ताकतों को खुश करने के लिए सारे झगड़ों को सुलझा लेना चाहिए.
कयामत का दिन
टोगो और बेनिन में बैटामैलाइबा लोगों की मान्यता थी कि ग्रहण के दौरान सूरज और चांद आपस में झगड़ते हैं लिहाजा उनके झगड़े को खत्म करने के लिए ग्रहण के दौरान अपने झगड़े सुलझा लेने चाहिए. बाइबल में तो ग्रहण को प्रलय से जोड़कर देखा गया. बाइबल में उल्लेख है कि कयामत के दिन सूरज बिल्कुल काला हो जाएगा. चांद का रंग लाल हो जाएगा. सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण लगने के दौरान ऐसा ही होता है.
दरअसल प्राचीन समय में मनुष्य की दिनचर्या कुदरत के नियमों के हिसाब से संचालित होती थी. इन नियमों में कोई भी फ़ेरबदल मनुष्य को बेचैन करने के लिए काफ़ी था.
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Tags: Lunar eclipse, Solar eclipse, SuperstitionFIRST PUBLISHED : October 25, 2022, 13:52 IST