छठा राष्ट्रपति चुनाव 1974 : भारी बहुमत से जीते फखरुद्दीन अली अहमद

जब देश में 1974 में छठे राष्ट्रपति का चुनाव हुआ तब तक देश की राजनीति में इंदिरा गांधी खासी ताकतवर हो चुकी थीं. ना केवल वो प्रधानमंत्री थे बल्कि कांग्रेस में पत्ता भी अब उनकी मर्जी के बगैर नहीं खड़क सकता था. 1974 में उन्होंने जब राष्ट्रपति पद के लिए असम से ताल्लुक रखने वाले फखरुद्दीन अली अहमद को प्रत्याशी बनाया तो तय था कि जीत उन्हीं की होनी है.

छठा राष्ट्रपति चुनाव 1974 : भारी बहुमत से जीते फखरुद्दीन अली अहमद
देश की सत्ता पर इंदिरा गांधी मजबूत पकड़ बना चुकी थीं. कांग्रेस के वो पुराने लोग जो 05 साल पहले अलग हो गए थ, उसमें से ज्यादातर वापस उनकी कांग्रेस में आ चुके थे. अब इंदिरा ही पार्टी थीं. पार्टी पर उनका एकछत्र राज्य था. वीवी गिरी के 05 साल के कार्यकाल के बाद उन्होंने आसाम के फखरुद्दीन अली अहमद को राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी प्रत्याशी बनाया. वो आराम से नहीं जीते बल्कि जबरदस्त जीत पाई. देश और पार्टी दोनों पर इंदिरा गांधी का दबदबा कायम हो चुका था. 1971 का चुनाव भारी बहुमत से जीतने के बाद वह बगैर रोकटोक के सरकार चला रही थीं. कांग्रेस सिंडिकेट के बंधन से वो 1969 में ही दूर हो चुकी थीं. अब पार्टी से लेकर सरकार तक उन्हीं की बात सर्वोपरी होती थी. कांग्रेस के पुराने सिंडिकेट के नेता जो उनके सामने 1969 तक तमाम चुनौतियां या परेशानियां पैदा कर रहे थे, वो या तो हाशिए में जा चुके थे या वापस इंदिरा द्वारा बनाई गई कांग्रेस में लौट आए. चूंकि जनता ने भी 1971 के चुनाव में मूल कांग्रेस को नकार कर इंदिरा गांधी की कांग्रेस को बहुमत दिया था, लिहाजा उन्हीं की कांग्रेस को असली कांग्रेस माना जाने लगा. लेकिन वो कांग्रेस एक संरचना वाली पार्टी थी. उसमें नेता लोकतांत्रिक तरीके से फैसले लेते थे लेकिन अब इंदिरा की कांग्रेस वो पार्टी थी, जो उनके द्वारा बनाई गई थी और उनके इशारों पर ही नाचती थी. वो इसकी सबकुछ थीं. इलेक्टोरल वोट में तब्दीली हुई थी. फखरुद्दीन असम आजादी के बाद राज्य में मंत्री बने. फिर बारपेट से दो बार लोकसभा के लिए चुने गए. इंदिरा गांधी उन्हें पसंद करती थीं. उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री भी बनाया गया था. (courtesy – rashtrapati sachivalaya) भारतीय चुनाव आयोग ने 17 अगस्त 1974 के दिन देश के छठे राष्ट्रपति के चुनाव की घोषणा की. 17 अगस्त के दिन वोटिंग हुई और 20 को काउंटिंग. यानि 20 अगस्त को देश को नया राष्ट्रपति मिल गया. इस बार इलैक्टोरल कालेज में बदलाव हुआ था. अबकी बार लोकसभा से 521 और राज्यसभा से 230 लोग वोट दे सकते थे. जबकि राज्य की विधानसभाओं में 3681 वोट देने वाले थे. वाम पार्टियों ने त्रिदिब चौधरी को खड़ा किया वीवी गिरी के 05 साल के कार्यकाल के बाद कांग्रेस ने आसाम के नेता फखरुद्दीन अली अहमद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जबकि बाम पार्टियों की ओर से त्रिदिब चौधरी को खड़ा किया गया. वह रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी से ताल्लुक रखते थे. हालांकि ये कहा गया कि वो विपक्ष के साझा उम्मीदवार हैं लेकिन जिस तरह से वोट पड़े उसे देखकर लगा कि विपक्षी नेताओं ने भी फखरुद्दीन अली अहमद को ही ज्यादा वोट डाले. इस बार के चुनावो में पहली बार कोई निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में नहीं था. फखरुद्दीन की जीत तय थी 17 अगस्त 1974 के दिन जब वोटिंग होनी थी, तब तक साफ हो चुका था कि फखरुद्दीन की जीत निश्चित है. बस देखना ये था कि उनकी जीत का अंतर कितना रहता है और क्या विपक्ष के नेता भी उन्हें वोट करेंगे. फखरुद्दीन को 765587 वैल्यू वोट पड़े जबकि बंगाल के त्रिदिब चौधरी को 189,196 वैल्यू वोट. राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद गणतंत्र दिवस पर मुगल गार्डन में विदेशी राजनयिकों और मेहमानों के साथ (courtesy – rashtrapati sachivalay) अभिजात्य मुस्लिम परिवार से थे फखरुद्दीन अली अहमद पेशे से वकील थे. वो देश के दूसके मुस्लिम राष्ट्रपति बने और कार्यकाल के दौरान ही उनका निधन हो गया. उनके पिता सेना में कर्नल थे. वो पहले ऐसे आसामी थे जिन्होंने एमडी यानि डॉक्टर ऑफ मेडिसिन की डिग्री ली थी. उनकी मां नवाब लोहारू के परिवार से थीं. 1925 में उनकी जवाहर लाल नेहरू से इंग्लैंड में मुलाकात हुई. उसके बाद उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली और आजादी की लड़ाई में सक्रिय हो गए. भारत छोड़ो आंदोलन में वह 1942 में गिरफ्तार हुए. साढ़े तीन साल जेल में रहे. केंद्र में मंत्री भी रहे 1948 में आसाम में जब गोपीनाथ बोरदोलोई की सरकार बनी तो फखरुद्दीन उसके वित्त, राजस्व और श्रम मंत्री थे. 1952 में वह राज्यसभा के लिए चुने गए. दो बार असम में विधायक भी चुने गए. 1967 और 1971 में असम के बारपेट से वह लोकसभा में जीतकर पहुंचे. वह इंदिरा के नजदीकी लोगों में थे, जिन्हें केंद्र में मंत्री भी बनाया. आपातकाल के कागज आधीरात को साइन किए उन्हीं के कार्यकाल के दौरान देश में आपातकाल लगा. इंदिरा गांधी से शाम को मुलाकात के बाद आधीरात को उन्होंने आपातकाल के कागजों पर साइन किए थे. 11 फरवरी 1977 को रोज की नमाज पढ़ने की तैयारी के दौरान वह आफिस में अचानक गिर गए. उन्हें आर्ट अटैक पड़ा था. तुरंत निधन हो गया. जाने – माने नेता थे त्रिदिब त्रिदिब चौधरी देश के जाने माने बंगाल के नेता थे. 1997 में उनका निधन हुआ. रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के वह संस्थापकों में थे. वह लंबे समय तक बंगाल के बहरामपुर से लोकसभा में सांसद रहे. इसके बाद 1987 से 1997 तक 10 दस सालों तक राज्यसभा में रहे. गोवा की आजादी की लड़ाई में भी शिरकत की. 1974 में जब राष्ट्रपति चुनावों की घोषणा हुई तो विपक्ष ने उन्हें अपना साझा उम्मीदवार बनाया था. ब्रिटिशराज में उनपर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें जेल भी भेजा गया था. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: President, President of India, Rashtrapati bhawan, Rashtrapati ChunavFIRST PUBLISHED : June 20, 2022, 08:45 IST