तख्‍तापलट पर तख्‍तापटल ग‍िनते-ग‍िनते आप भी थक जाएंगे यहां सरकार नहीं चलती 

बांग्लादेश के पाकिस्तान से अलग होने की एक बड़ी वजह उसकी बांग्ला पहचान और भाषा के साथ पाकिस्तान का अन्याय था. पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश बनने में उसने लंबी लड़ाई लड़ी. सेना ने भी उसमें हिस्सा लिया था. लेकिन अलग मुल्क बन जाने के बाद यही सेना अपनी महत्वाकांक्षा के कारण वहां तख्तापलट पर तख्तापलट करती रही है.

तख्‍तापलट पर तख्‍तापटल ग‍िनते-ग‍िनते आप भी थक जाएंगे यहां सरकार नहीं चलती 
बांग्लादेश बनने की बहुत सारी वजहें हैं. लेकिन पाकिस्तान से उसके अलग होने का फौरी कारण ‘सैनिक तानाशाही’ को कहा जा सकता है. उस वक्त के पाकिस्तानी सेना चीफ ने ज्यादा सीटें जीतने के बाद भी शेख मुजीबु्र्रहमान को सत्ता देने से इनकार कर दिया था. इसी के बाद से संघर्ष तेज हुआ और एक नए देश का जन्म हो गया. 1975 में बांग्लादेश अलग लोकतांत्रिक मुल्क तो बन गया, लेकिन वहां सेना लगातार शासन में दखल देती रही. तख्तापलट भी करती रही. लोकतांत्रिक तरीके से सरकारें बनीं भी, लेकिन ज्यादातर समय सेना ने तख्तापलट ही किया. भाषा और पहचान का सवाल बांग्लादेश में सत्ता और सेना की कहानी समझने के लिए साल 1970 से शुरुआत करना वाजिब होगा. वैसे तो उस समय पूर्वी पाकिस्तान के नाम से पहचाने जाने वाले बांग्लादेश में एक बड़ा संघर्ष 1947 के बंटवारे के कुछ ही समय बाद से चल रहा था. लोग बहुत बड़ी संख्या अपनी बांग्ला पहचान और राष्ट्रीयता से गहरे जुड़े हुए थे. उन्हें पाकिस्तानी हुकूमत की नीतियां रास नहीं आ रही थी. वे बांग्ला बोलना और बरतना चाह रहे थे. जबकि पाकिस्तानी हुक्मरान उर्दू को सरकारी भाषा बना चुके थे. 1948 में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने ढाका दौरे में साफ तौर से कह दिया था कि पाकिस्तान की राजभाषा केवल उर्दू होगी. उन्होंने ये कहा था -“जहां तक राजभाषा का सवाल है, ये सिर्फ उर्दू ही होगी, और कोई कुछ और कहता है तो आपको गुमराह करता है. ” फरवरी 1948 में पूर्वी पाकिस्तान के एक सदस्य ने प्रस्ताव रखा कि असेंबली में उर्दू के साथ बांग्ला का भी इस्तेमाल हो. इसका कड़ा विरोध करते हुए उस समय के प्रधानमंत्री लियाकत अली ने कहा था कि उर्दू ही मुसलमानों की भाषा है, यही असेंबली की भी भाषा होगी. ऑपरेशन सर्चलाइट ने और भड़काई आग इसके अलावा पूर्वी बंगाल के लोगों को पश्चिमी पाकिस्तान वाले तहजीब और रिवायतों को लेकर भी दोयम दर्जे का ही मानते रहे. बहरहाल, 1970 में जब पाकिस्तान के चुनाव हुए तो शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्र रहमान को पूर्वी पाकिस्तान की 162 में से 160 सीटें हासिल हुईं. पाकिस्तानी पीपुल्स पार्टी को 138 में से 81 सीटें ही मिल सकीं. सीटें शेख मुजीब के हक में थी. उनकी सरकार बननी चाहिए थी. लेकिन पाकिस्तानी सेना चीफ याह्या खान ने शेख मुजीब को सत्ता सौंपने से साफ इनकार कर दिया. भाषा और तहजीब को लेकर ले कर अपमान से घुट रहे लोग फूट पड़े. 7 मार्च 1971 को मुजीब ने आजादी की लड़ाई का बिगुल फूंक दिया. इसके विरोध में पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन ‘सर्चलाइट’ चला दिया. सेना ने इस ऑपरेशन की आड़ में कत्लो-गारत मचा दी. महिलाओं के साथ रेप भी किया गया. पूर्वी पाकिस्तान में असंतोष और गुस्से की आग भड़क उठी. सेना में भी विद्रोह हो गया. बहुत सारे सैनिक गोरिल्ला युद्ध करने लगे. इंदिरा सरकार से मिला सहयोग भारत में उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी. उन्होंने मुक्ति वाहिनी बना कर संघर्ष कर रहे पूर्वी पाकिस्तान के सैनिकों का समर्थन और साथ दिया. बाद में भारतीय सेना ने पाकिस्तान से बाकायदा युद्ध कर उन्हें हराया. बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों से समर्पण भी कराया गया. शेख मुजीब को बंगबंधु कहा गया. पूर्वी पाकिस्तान का नाम बदल कर बांग्लादेश कर दिया गया. शेख मुजीबुर्र रहमान देश के पहले प्रधानमंत्री बने. फिर नियमों में बदलाव कर राष्ट्रपति बन गए. आजादी के कुछ समय बाद ही विद्रोह, ‘बंगबंधु’ की हत्या कुछ ही समय बीता था कि सेना में विद्रोह जैसी स्थितियां दिखने लगीं. सेना इस बात से नाराज थी कि बांग्लादेश में सैनिकों के साथ दो तरह का व्यवहार किया जा रहा है. एक तरफ वे सैनिक थे, जिन्होंने मुक्ति वाहिनी का साथ दिया था. दूसरे वे जो उस वक्त की पाकिस्तानी हुकूमत के साथ थे. बहरहाल, इसी वबाल के बीच 15 अगस्त 1975 को थोड़े से नौजवान सैनिकों ने शेख मुजीब और उनके पूरे परिवार की हत्या कर दी. हालांकि ये माना जाता है कि इसमें कुछ राजनेता भी शामिल थे. इस हत्याकांड में शेख मुजीब की सिर्फ दो बेटियां, शेख हसीना और उनकी बहन बच सकीं. वो भी इस वजह से क्योंकि दोनों देश से बाहर थीं. फिर सेना ने मोस्ताक अहमद को राष्ट्रपति बना दिया गया. जियाउर रहमान को नया सेना प्रमुख बने और सत्ता की डोर सेना के हाथों में रही. तख्तापलट और फिर तख्तापलट ये तख्तापलट भी लंबे वक्त नहीं चला. अक्टूबर में जिया सेना चीफ बने और 3 नंवबर को सेना के मुजीब समर्थक माने जाने वाले ब्रिगेडियर खालिद मोशर्रफ ने खुद को सेना प्रमुख घोषित कर दिया. उन्होंने सेना चीफ जिया को नजरबंद भी कर दिया. उनकी राय थी कि शेख मुजीब की हत्या कराने वाले जिया ही थे. सेना अफसरों की महत्वाकांक्षा और राजनीतिक दखल के कारण हालात इतनी तेजी से पलटे कि 7 नवंबर को जिया को नजरबंदी से छुड़ा लिया गया. इस दफा सैनिकों और उसी तरह की लेफ्ट सोच वाले नागरिकों को मिला कर ‘मशहूर सिपाही-जनता बिपल्ब’ (बिपल्व का अर्थ विद्रोह है) कर दिया गया. मोशर्रफ मारे गए. जिया देश के राष्ट्रपति बने और बांग्लादेश नेशनल पार्टी का गठन कर लिया. फिर लगाया मार्शल लॉ सत्ता का स्वाद चख चुकी सेना आखिर कब तक बैरकों और परेड ग्राउंड में कवायद करती रहती. इस दफा मेजर जनरल मंजूर अहमद ने कहा कि पाकिस्तान से लोहा न लेने वाले सैनिकों की तरफदारी की जा रही है. इसे मुद्दा बना कर उन्होंने जियाउर रहमान को सत्ता से उखाड़ दिया. थोड़े वक्त तक सत्ता उनके पास रही. फिर 24 मार्च 1982 को ले. जनरल हुसैन मो. इरशाद ने बिना खूनखराबे के तख्ता पलट कर मार्शल लॉ लगा दिया. जिया के बाद राष्ट्रपति बने अब्दुल सत्तार को इस सेना अधिकारी ने हटा दिया. चार साल बाद 1986 में इरशाद ने जम्हूरियत की बहाली के नाम पर देश में अपनी पार्टी बना कर इलेक्शन कराए. चुनाव में उनकी जातीय पार्टी को बहुमत मिला और वे राष्ट्रपति बन गए. लोकतंत्र के लिए आंदोलन और फिर… इस बीच दुनिया के दूसरे देशों की तरह ही बांग्लादेश में लोकतंत्र के लिए आंदोलन चलने लगा था. 1991 में लोकतंत्र कायम तो हुआ लेकिन फिर भी सेना का दखल भी कायम रहा. सरकारें बनती रहीं. जनरल जिया की पत्नी खालिदा जिया प्रधानमंत्री बनी. अगले चुनाव में 1996 में शेख हसीना प्रधानमंत्री बनी. 2001 में फिर बेगम जिया लौटीं और 2006 तक रहीं. उनका कार्यकाल पूरा होने पर चुनाव कराने के लिए एक केयरटेकर सरकार के मसले पर देश की दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच टकराव चल रहा था. इस दरम्यान उस वक्त के राष्ट्रपति इयाजुद्दीन ने खुद को केयरटेकर राष्ट्रपति घोषित कर दिया. साथ ही 2007 में देश में आपातकाल लागू कर बेगम जिया और शेख हसीना दोनों को भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में डाल दिया. सेना ने फिर से दखल दिया. इस बार कर एक अर्थशास्त्री फखरुद्दी अहमद को कार्यवाहक सरकार की कमान सौंपी. 2008 में दोनों की जेल से रिहाई हुई. उसके बाद हुए चुनावों में फिर शेख हसीना प्रधानमंत्री बनी 2009 से 2024 तक सेना को इस्तीफा सौंपने तक सत्ता उन्हीं के हाथों में रही है. Tags: Bangladesh news, Sheikh hasinaFIRST PUBLISHED : August 6, 2024, 15:47 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed