सरदार पटेल@150 : कैसे उन्होंने ICS को बचाया जो IAS के तौर पर देश की रीढ़ बनी
सरदार पटेल@150 : कैसे उन्होंने ICS को बचाया जो IAS के तौर पर देश की रीढ़ बनी
Sardar VallabhBhai Patel Birthday: आजादी से पहले भारतीय प्रशासनिक सेवा को आईसीएस कहते थे. उसके अफसर जिस तरह रहते थे और लोगों से व्यावहार करते थे, उसे लेकर उनकी बहुत आलोचना होती थी. लेकिन पटेल ने इसे बदला और बचा लिया.
हाइलाइट्स आजादी से पहले आईसीएस को लेकर नेहरू की धारणा कतई अच्छी नहीं थी पटेल ने जब आजादी के समय इन अफसरों का काम देखा तो प्रभावित हुए तब उन्होंने नेहरू और कांग्रेस के अन्य नेताओं से बात कर इन्हें जारी रखना सुनिश्चित किया
आज सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म दिन है. उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ, वैसे तो देश के पहले गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री के तौर पर उनका देश के लिए योगदान बहुत बड़ा है लेकिन आज भी देश की सरकारी मशीनरी की रीढ़ बनी हुई भारतीय प्रशासनिक सेवा यानि आईएएस को बचाने और आगे बरकरार रखने का श्रेय उन्हीं को है. हालांकि आजादी के समय भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इस पक्ष में नहीं थे कि तब आईसीएस कही जाने वाली इस सेवा को जारी रखें. वो इसे भंग करके इसका विकल्प चाहते थे.
ये तो सरदार पटेल थे जिन्होंने नेहरू को समझाया कि किस तरह इसी सेवा ने आजादी और आजादी के बाद के संक्रमण काल के दिनों में व्यवस्थाओं को ठीक रखने के साथ देश के एकीकरण में कितनी खास भूमिका निभाई थी. सरदार पटेल के प्रयासों ने ये सुनिश्चित किया कि ये महत्वपूर्ण प्रशासनिक ढांचा बरकरार रहे, जो नई स्वतंत्र सरकार के कामकाज के लिए भी जरूरी था.
ब्रिटिश शासन में इसे स्टील फ्रेम कहा जाता था
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान स्थापित भारतीय सिविल सेवा को अक्सर भारत में शासन के “स्टील फ्रेम” के रूप में संदर्भित किया जाता था. इसमें उच्च प्रशिक्षित नौकरशाहों का एक कैडर शामिल था, जो विभिन्न क्षेत्रों में प्रशासन का प्रबंधन करते थे. हालांकि आजादी के बाद इसके औपनिवेशिक मूल और इसका पूरी तरह भारतीयकरण कर दिया गया.
इसी वजह से फिर ब्रिटिश दौर के आईसीएस यानि इंडियन सिविल सर्विसेज को बदलकर इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज कर दिया गया. पहले जिलों में नियुक्त कलेक्टर से लेकर मंत्रालयों और महकमों में बड़ी जिम्मेदारी संभालने का काम आईसीएस के ही तहत होता था.
पटेल ने इसके महत्व को समझा
पटेल समझते थे कि एक प्रभावी सरकार एक सक्षम नौकरशाही के बिना काम नहीं कर सकती. उन्होंने तर्क दिया कि राजनीतिक नेताओं का मार्गदर्शन करने और शासन में स्थिरता बनाए रखने के लिए बुद्धिमान सिविल सेवक जरूरी हैं. उनका मानना था कि ICS को पूरी तरह भंग कर देने से प्रशासनिक अराजकता पैदा होगी, जिससे नया भारतीय राष्ट्र खतरे में पड़ जाएगा. आजादी के दौरान आईसीएस ने जिस तरह काम करके देश को स्थिर रखा, उसने सरदार पटेल को बहुत प्रभावित किया. (courtesy sardarpateltrust)
इसके भारतीयकरण की वकालत की
सरदार पटेल ने ही आईसीएस को खत्म करने की बजाए इसको अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा में बदलने की वकालत की, जो पूरी तरह से भारतीय होगी और भारतीय नियंत्रण में होगी. इस बदलाव को ब्रिटिश हाथों से भारतीय नेताओं को सत्ता हस्तांतरित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा गया, जबकि शासन के लिए जरूरी प्रशासनिक विशेषज्ञता को बनाए रखा गया.
नेहरू को इसको बरकरार रखने के लिए मनाया
पटेल ने आजादी के बाद आईसीएस को बनाए रखने पर आम सहमति सुनिश्चित करने के लिए जवाहरलाल नेहरू सहित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ बातचीत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके प्रभाव ने मौजूदा सिविल सेवा ढांचे को खत्म करने के बजाय सुधार पर सहमति बनाने में मदद की.
आजादी के बाद ये विकसित होता रहा
पटेल की कोशिश ने न केवल आईसीएस को संरक्षित किया, बल्कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) बनने के लिए आधारशिला भी रखी. उनकी दृष्टि ने सुनिश्चित किया कि भारत के पास स्वतंत्रता के बाद अपने मामलों का प्रबंधन करने के लिए एक स्थिर और अनुभवी नौकरशाही ढांचा था, जो विकसित होता रहा है. हालांकि इस सेवा की अपनी कमियां भी हैं और समय के साथ इस सेवा के अफसरों से जिस तरह निर्भीक और निष्पक्ष तौर पर काम करने की आकांक्षा थी, वो खत्म हुई है. उन पर भ्रष्टाचार और कहीं कहीं अकुशलता के आरोप भी लगे हैं. तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने मेटकॉफ हाउस दिल्ली में चुनकर आए नए आईसीएस अफसरों को संबोधित किया. तब उन्होंने उनसे कहा कि अब उन्हें नए तरीके से और भारतीय संस्कृति के तहत काम करना होगा. ( courtesy sardar patel trust)
तब उन्होंने आईसीएस अफसरों से क्या कहा
1947 में यानि आजादी से पहले अपने उस संबोधन में उन्होंने विस्तार से देश की आजादी और बंटवारे के साथ पैदा होने वाली चुनौतियों और बदलाव के साथ आईसीएस अफसरों की नई जिम्मेदारियों और नई तरह की सेवा संस्कृति का खाका खींचा..
तब उन्होंने सिविल सेवकों को ‘भारत का स्टील फ्रेम’ कहा. इसका मतलब यह था कि सरकार के विभिन्न स्तरों पर कार्यरत सिविल सेवक देश की प्रशासनिक व्यवस्था के सहायक स्तंभों के रूप में काम करें.
तब इन अफसरों की कार्यशैली को लेकर विवाद था
भारतीय लोक सेवा को 19वीं सदी में इंपीरियल सिविल सर्विस (शाही लोक सेवा) कहा जाता था. ये 1858 और 1947 के बीच ब्रिटिश भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का सर्वोच्च सार्वजनिक कार्यालय था. देश में कामकाज का सारा महत्वपूर्ण प्रशासनिक काम इसी सेवा के तहत था. हालांकि उनकी कार्यशैली को लेकर विवाद भी थे. खुद नेहरू समेत बहुत से कांग्रेसी नेता उनकी जीवनशैली के आलोचक थे.
नेहरू की धारणा क्या थी
एमओ मथाई अपनी किताब “रेमिनिसेंसेस ऑफ नेहरू एज” में लिखते हैं, जब नेहरू 02 सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार में दाखिल हुए तो वह आईसीएस के प्रति कोई अच्छी धारणा नहीं रखते थे. उसके अफसरों को सुपीरियर सर्विस के लोग कहते थे. उनका मानना था कि इस सर्विस ने ब्रिटिश राज को मजूबत करने में मदद ही की है. ब्रिटिश सरकार ने तमाम तरह की सुविधाएं और वेतन भी देती थी.
इन्हें बंटवारे तक क्या कहते थे आजादी के सेनानी
भारत में राज को बनाए रखने की इनकी मंशा के कारण इसके स्वतंत्रता सेनानियों से काफ़ी मतभेद रहे. पंडित नेहरू ने इसकी भर्त्सना करते हुए कहा था कि “इंडियन सिविल सर्विस न तो इंडियन है, न सिविल है, और न ही सर्विस है”. आज़ादी के बाद इसके सदस्य भारत और पाकिस्तान में बँट गए. इसके सारे अंग्रेज़ सदस्य वापस इंग्लैंड चले गए.
आजादी के दौरान इन अफसरों ने बढ़िया काम किया
आजादी के दौरान और बंटवारे के दौरान आईसीएस अफसरों ने जिस मुस्तैदी और बगैर पक्षपात के साथ काम करके हालात को नियंत्रण में किया, उससे उन्हें लेकर आजाद भारत में उनके प्रति नए हुक्मरानों की धारणा काफी हद तक बदली भी.
पटेल की धारणा तो उनके प्रति काफी सकारात्मक हो गई. उन्होंने नेहरू को इस बात के लिए मनाया कि आईसीएस को भंग करना या सिविल सेवा ढांचे को भंग करना उचित नहीं होगा. क्योंकि इन अफसरों ने दिखा दिया है कि आजादी के दौरान उन्होंने कितनी सक्षमता से देशहित में काम किया है. देश के एकीकरण में भी इस सेवा का योगदान खासा अहम रहा.
Tags: IAS Officer, Sardar patel, Sardar Vallabhbhai PatelFIRST PUBLISHED : October 31, 2024, 11:31 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed