क्या है न्यूक्लियर डैमेज एक्ट 2010 जिसके कारण भारत में नहीं लग रही नई यूनिट
क्या है न्यूक्लियर डैमेज एक्ट 2010 जिसके कारण भारत में नहीं लग रही नई यूनिट
केंद्रीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सोमवार को कहा कि रूस के साथ परमाणु रिएक्टर की नई यूनिट लगाने की दिशा में काम चल रहा है. लेकिन, इसमें न्यूक्लियर डैमेज एक्ट 2010 बड़ी अड़चन खड़ी कर सकता है. क्या है ये कानून और इसे कब लागू किया गया था?
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत रूसी परमाणु रिएक्टर्स के लिए साइट्स की तलाश कर रहा है. इसके अलावा प्रस्तावित जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र परियोजना पर फ्रांस के साथ बातचीत जारी है. जयशंकर ने कहा कि परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम 2010 तैयार किया गया था. लिहाजा, विदेशी आपूर्तिकर्ताओं की चिंताओं को समझने और उन्हें दूर करने के लिए उनके साथ काफी बातचीत की जरूरत थी. इसमें कुछ समय लगा है. हमारे बीच चर्चा चल रही है कि कुडनकुलम संयंत्र कहां तक पहुंचा है. हम रूसी रिएक्टर्स के लिए नई साइटों पर विचार कर रहे हैं.
विदेश मंत्री दिसंबर 2023 में रूस के दौरे पर थे. इस दौरान दोनों पक्षों ने कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र की भविष्य की बिजली उत्पादन इकाइयों के निर्माण से जुड़े कुछ अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. रूस ने कुडनकुलम में 1,000 मेगावाट के 4 परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाए हैं. इतनी ही क्षमता के 2 और रिएक्टर बनाए जा रहे हैं. यह देश का सबसे बड़ा परमाणु पार्क है. बता दें कि भारत ने 2008 में अमेरिका और फ्रांस के साथ भी परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. समझौतों के बाद मीठी विरधी व कोवड्डा को अमेरिका और जैतापुर को फ्रांस के लिए निर्धारित किया गया था. हालांकि, परियोजनाएं उम्मीद के मुताबिक आगे नहीं बढ़ पाईं. इसकी एक वजह परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम 2010 की सख्त धाराएं भी हैं.
सीएलएनडीए दूसरे देशों में क्यों आशंका पैदा करता है
परमाणु रिएक्टर्स के संचालन से जुड़ा एक अहम सवाल दुर्घटना होने पर क्षति के लिए नागरिक दायित्व का है. यह थ्री माइल आइलैंड (1979), चरनोबिल (1986) और फुकुशिमा दाइची (2011) जैसी परमाणु घटनाओं के दौरान साफ हो चुका है. यूक्रेन में जापोरिजिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र के आसपास भू-राजनीतिक तनाव को देखते हुए यह और भी ज्यादा प्रासंगिक है. इस संदर्भ में भारत का परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व कानून, 2010 (सीएलएनडी एक्ट 2010) देश के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करने वाले देशों के लिए चिंता का विषय है. ऐसे में भारत, अमेरिका, फ्रांस, कनाडा और रूस के घरेलू कानूनों के तहत संचालकों के दायित्व से जुड़े प्रावधानों को देखना होगा. परमाणु रिएक्टर्स के संचालन से जुड़ा एक अहम सवाल दुर्घटना होने पर क्षति के लिए नागरिक दायित्व का है.
देशों के कानून और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों में तालमेल
अंतरराष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था में पेरिस कन्वेंशन 1960, ब्रुसेल्स सप्लीमेंट्री कन्वेंशन 1963, वियना कन्वेंशन 1963, परमाणु क्षति के लिए अनुपूरक मुआवजे से जुड़ा कन्वेंशन 1997 जैसे करार शामिल हैं. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने भी संधि व्यवस्थाओं के आधार पर परमाणु दायित्व के सामान्य सिद्धांतों को मान्यता दी है. इन सिद्धांतों में परमाणु संयंत्र स्थापना के संचालक की सख्त व विशेष देयता, दायित्व की न्यूनतम राशि और ऑपरेटर की देनदारी का अनिवार्य वित्तीय कवरेज शामिल हैं. अधिकांश देशों में घरेलू कानून सामान्य तौर पर अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के साथ तालमेल बैठाते हुए बनाए गए हैं. हालांकि, कुछ देशों ने अपने नीतिगत उद्देश्यों और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए कुछ अंतर रखा है.
ये भी पढ़ें – Explainer: कैसा है POK का वो पूरा इलाका, जहां लोग चाहते हैं पाकिस्तान से आजादी
क्या हैं परमाणु संयंत्र संचालकों की जिम्मेदारियां
सभी देशों के घरेलू कानून परमाणु घटना की स्थिति में परमाणु प्रतिष्ठानों के संचालकों की जिम्मेदारियों के लिए सख्त प्रावधान करते हैं. दायित्व ‘नो-फॉल्ट सिद्धांत’ पर आधारित है यानी एक ऑपरेटर अपनी ओर से किसी भी गलती के बिना होने वाली किसी भी क्षति के लिए उत्तरदायी है. हालांकि, भारत और रूस के कानून अप्रत्याशित घटना, असाधारण प्रकृति की गंभीर प्राकृतिक आपदा, सैन्य अभियान, सशस्त्र संघर्ष, शत्रुता, गृह युद्ध, विद्रोह या आतंकवाद जैसे कारकों के कारण ऑपरेटरों के दायित्व के लिए कुछ अपवाद उपलब्ध करते हैं. ज्यादातर जिम्मेदारियां विशेष रूप से परमाणु प्रतिष्टानों के संचालकों की है. इसके पीछे तर्क है कि पीड़ितों को तत्काल और पर्याप्त मुआवजा देने के लिए ऑपरेटर की जिम्मेदारी तेजी से पूरी की जाए.
ये भी पढ़ें – तस्वीरों में देखिए 100 साल पहले कैसा था बनारस, फिर कैसे बदलता गया लेकिन फक्कड़पन और मस्त अंदाज वैसा ही
सीएलएनडी एक्ट की धाराओं में क्या हैं प्रावधान
भारत के मामले में सीएलएनडी एक्ट की धारा-17 दुर्घटना होने पर संचालक को तीन मामलों में सहारा लेने का अधिकार देती है. पहला, जब लिखित अनुबंध में स्पष्ट तौर पर ये व्यवस्था दी गई हो. दूसरा, अगर परमाणु दुर्घटना आपूर्तिकर्ता की वजह से हुई हो. तीसरा, अगर परमाणु घटना क्षति पहुंचाने के लिए किसी व्यक्ति के कारण हुई हो. ऐसे व्यापक प्रावधान से अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों में आशंकाएं पैदा हो रही हैं, जो भारत में परमाणु ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित करने में रुचि रखते हैं. इसके अलावा सीएलएनडी अधिनियम, 2010 की धारा-46 किसी ऑपरेटर के खिलाफ अधिनियम के अलावा दूसरे कानूनों के तहत भी कार्यवाही के लिए दरवाजे खुले रखती है. इसे 1984 में भोपाल गैस त्रासदी और पीड़ितों को अपर्याप्त मुआवजे को ध्यान में रखते हुए रखा गया है. सीएलएनडीए की धारा-46 ऑपरेटर के खिलाफ दूसरे कानूनों के तहत भी कार्यवाही के लिए दरवाजे खुले रखती है.
कुछ देश संचालकों की देनदारी तय करते हैं
कुछ देशों में घरेलू कानून परमाणु संयंत्र संचालकों की देनदारी तय करता है, जिसे बीमा के जरिये कवर किया जाता है. अमेरिका के परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1954 के प्राइस-एंडरसन प्रावधान बीमा से जुड़े प्रावधानों को कवर करते हैं. अमेरिका का लक्ष्य पीड़ितों को जल्द और पर्याप्त मुआवजा देने के लिए क्षतिपूर्ति तंत्र की ओर से समर्थित ऑपरेटर की देनदारी को बढ़ाते रहना है. ऐसी व्यवस्था में अगर किसी परमाणु घटना के कारण नुकसान ऑपरेटर के दायित्व से ज्यादा होता है, तो संबंधित देशों को मुआवजा देना होता है. सामान्य तौर पर ज्यादातर देश अंतरराष्ट्रीय संधि व्यवस्था के तहत अपने दायित्वों को पूरा करते हैं. देशों के बीच परमाणु सौदों में ऐसी वैध चिंताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए.
ये भी पढ़ें – Explainer: चार धाम यात्रा में 72 घंटे में 04 की मौत, कैसे हाई अल्टीट्यूड बन जाता है जानलेवा
भारत को कानून से जुड़ी अस्पष्टताएं करनी होंगी दूर
भारत को सीएलएनडी अधिनियम की धारा-17(बी) और धारा-46 से जुड़ी अस्पष्टताओं को दूर करने की जरूरत है. सरकार ने धारा-46 के बारे में स्पष्ट किया है कि यह सामान्य प्रावधान है. भारत में कोई दूसरा परमाणु दायित्व कानून नहीं है. लिहाजा, इससे निवेशकों के मन में कोई आशंका पैदा नहीं होनी चाहिए. सरकार का दावा है कि धारा-17(बी) अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के मुताबिक है. इसका संचालन ऑपरेटरों और आपूर्तिकर्ताओं के बीच अनुबंध पर निर्भर है. हालांकि, इसे पूरा पढ़ने पर पता चलता है कि धारा-17(ए) और 17(बी) दो अलग प्रावधान हैं. लिहाजा, भारत को दूसरे देशों के बीच विश्वास बनाने के लिए इस अस्पष्टता को दूर करना चाहिए.
ये भी पढ़ें – दुनिया की वो सिटी जहां रोज होती है बारिश, कहलाता है 2 बजे की बारिश वाला शहर
कानून पीड़ितों को त्वरित मुआवजा सुनिश्चित करता है
भारत के परमाणु दायित्व कानून से जुडे मुद्दों के कारण करीब डेढ़ दशक से कई परमाणु संयंत्र परियोजनाएं देरी से चल रही हैं. ये कानून सुनिश्चित करते हैं कि परमाणु दुर्घटना या आपदा के कारण होने वाले नुकसान के लिए पीड़ितों को मुआवजा मिले. साथ ही यह तय किया जाए कि उस क्षति के लिए कौन जिम्मेदार होगा. भारत ने परमाणु दुर्घटना के पीड़ितों के लिए तत्काल मुआवजा तंत्र स्थापित करने के लिए 2010 में सीएलएनडी कानून बनाया था. सीएलएनडी एक्ट परमाणु संयंत्र के संचालक पर सख्त और बिना किसी गलती वाले दायित्व का प्रावधान करता है, जहां उसे अपनी ओर से किसी भी गलती के बिना क्षति के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा. भारत ने परमाणु दुर्घटना के पीड़ितों के लिए तत्काल मुआवजा तंत्र स्थापित करने के लिए 2010 में सीएलएनडी कानून बनाया था.
संचालक को कितनी राशि का करना होगा भुगतान
सीएलएनडी एक्ट तय करता है कि किसी दुर्घटना से होने वाले नुकसान के मामले में ऑपरेटर को 1,500 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान करना होगा. इसमें ऑपरेटर को बीमा या अन्य वित्तीय सुरक्षा के जरिये देनदारी को कवर करने की भी जरूरत होती है. अगर नुकसान का दावा 1,500 करोड़ रुपये से ज्यादा है, तो सरकार को इसमें कदम उठाना होगा. परमाणु उपकरणों के विदेशी और घरेलू आपूर्तिकर्ता भारत के साथ परमाणु समझौते को क्रियान्वित करने से हिचकिचा रहे हैं. दरअसल, यह ऐसा अकेला कानून है, जो आपूर्तिकर्ताओं को नुकसान का भुगतान करने के लिए कह सकता है.
ये भी पढ़ें – कैसे तय होता है ईवीएम में किस स्थान पर आएगा उम्मीदवार का नाम, जानिए क्या है नियम
विदेशी संचालक-आपूर्तिकर्ता कानून पर चिंतित क्यों
आपूर्तिकर्ताओं ने सीएलएनडीए के तहत असीमित देयता को लेकर चिंता जताई है, क्योंकि मुआवजे की राशि कानून के तहत तय नहीं है. यह ऑपरेटर के लिए तय की गई है. यही नहीं, इसमें यह भी साफ नहीं है कि नुकसान की स्थिति में कितना बीमा अलग रखा जाना चाहिए. ‘परमाणु क्षति’ के प्रकारों पर व्यापक परिभाषा नहीं होने के कारण ये कानून संभावित तौर पर अन्य नागरिक कानूनों के जरिये संचालक और आपूर्तिकर्ताओं के खिलाफ नागरिक दायित्व दावों को लाने की अनुमति देता है. अधिनियम किसी व्यक्ति को किसी भी दूसरे कानून के तहत संचालक के खिलाफ कार्यवाही करने से नहीं रोकता है. दूसरे शब्दों में कहें तो देश संचालक और आपूर्तिकर्ता के खिलाफ आपराधिक मामला भी चला सकता है.
Tags: External Affairs Minister S Jaishankar, India Russia bilateral relations, Indo US Nuclear Deal, Nuclear Energy, Nuclear weaponFIRST PUBLISHED : May 15, 2024, 08:21 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed