क्यों मां से युधिष्ठिर हुए नाराज कि दिया ऐसा श्राप सारी स्त्रियां भुगत रहीं
क्यों मां से युधिष्ठिर हुए नाराज कि दिया ऐसा श्राप सारी स्त्रियां भुगत रहीं
Mabharat Katha: युधिष्ठिर को नहीं मालूम था कि कर्ण उनके ही भाई हैं और उन्हें उनकी मां कुंती ने ही जन्म दिया है. जब ये बात उन्हें कर्ण के युद्धस्थल में मृत्यु के बाद मालूम हुई तो वह कुंती पर खासे नाराज हो गए.
हाइलाइट्स पांडवों को ये बात मालूम नहीं थी कि कर्ण उनके बड़े भाई हैं जब कुंती ने ये बात उन्हें तर्पण के साथ बताई तो वो स्तब्ध रह गए युधिष्ठर ने शोकाकुल होकर मां कुंती को दिया शाप
महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद पांडवों और कौरवों ने दोनों ने अपने काफी यौद्धाओं को खोया. कौरवों में सारे दिग्गज मारे जा चुके थे. उस पक्ष के प्रबल यौद्धा कर्ण भी युद्धभूमि प्राण दे चुके थे. जब सबका तर्पण हो रहा था,तब कुंती ने पहली बार पांडवों के सामने रहस्योद्घाटन किया कि कर्ण उनके बड़े भाई थे, इसलिए उनका तर्पण पांडवों को करना चाहिए. तब युधिष्ठिर उनसे बुरी तरह से नाराज हो गए.
उनकी ये नाराजगी इतनी ज्यादा थी और वह इस तरह से हिल गए कि पहले वह नाराज हुए और क्रोध की इस हालत में मां को ऐसा श्राप दे डाला कि दुनिया की सारी स्त्रियों को आज भी उस श्राप को झेलना पड़ रहा है. आइए जानते हैं कि ये पूरा मामला क्या था. और युधिष्ठिर को अपने जीवन में पहली बार अपनी मां को ही क्यों श्राप देना पड़ा.
कर्ण ने क्या भरोसा दिया था
युद्ध के दौरान कुंती कर्ण के पास जाकर उसे बता चुकी थीं कि वह उनके ही बेटे हैं. तब कर्ण ने उन्हें भरोसा दिया उनके पांच बेटे जिंदा रहेंगे लेकिन उनके और अर्जुन के बीच एक ही जिंदा रहेगा. फिर महाभारत के युद्ध में कर्ण के रथ का पहिया जब ज़मीन में धंस गया तो अर्जुन ने अपने दिव्यास्त्र से उन पर वार करके उन्हें मार दिया. जब महाभारत युद्ध के बाद मां कुंती ने पांडवों को बताया कि कर्ण उन्हीं के बड़े भाई थे, तो ये जानकर सभी पांडव स्तब्ध रह गए. तब शोक में डूबे युधिष्ठिर ने कहा अगर ये बात उन्हें पहले मालूम होती तो वो कभी युद्ध के मैदान में उतरते ही नहीं. (image generated by Meta)
तर्पण के समय कुंती ने पांडवों से क्या कहा
फिर जब युद्ध में मारे गए सभी वीरों का तर्पण होने लगा तो सहसा शोकाकुल होकर कुंती अपने पुत्रों से बोलीं, अर्जुन ने जिनका वध किया है, वह जिन्हें तुम सूतपुत्र और राधा का गर्भजात समझते थे, उस महाधनुर्धर कर्ण के लिए तुम लोग तर्पण करो. वह तुम्हारे बड़े भाई थे. वह सूर्य के जरिए मेरे गर्भ से कवच कुंडलधारी होकर जन्मे थे.
तब पांडव स्तब्ध रह गए
कर्ण का ये जन्म रहस्य पांडवों को पता लगा तो वो स्तब्ध रह गए और दुख में डूब गए. तब युधिष्ठिर ने कहा कि अगर आपने ये बात हमें पहले बता दी होती तो शायद ये युद्ध भी नहीं होता. इतने लोग नहीं मरते. अब हमें सबसे ज्यादा दुख कर्ण के लिए हो रहा है. शोक में मग्न युधिष्ठिर ने कर्ण की पत्नियों के साथ तर्पण जरूर किया लेकिन इसके बाद वह मां कुंती पर खासे क्रुद्ध हो उठे.
युधिष्ठिर तब मां को श्राप दे दिया
उन्होंने कहा कि कुंती द्वारा जीवनभर पांडवों से ये पहचान छिपाना किसी विश्वासघात से कम नहीं था. युधिष्ठिर को दुःख और पश्चाताप से भर दिया। उन्होंने कहा कि यह बोझ किसी भी शारीरिक हार से ज़्यादा दर्दनाक था. फिर युधिष्ठिर अपनी मां को श्राप दिया आपने जो कुछ किया है, उसके बाद स्त्री जाति कुछ भी गोपनीय नहीं रख पाएंगी. युधिष्ठिर ने तब पहली बार मां कुंती को श्राप दिया कि अब से कभी वो अपनी बात को गोपनीय नहीं रख पाएंगी और ऐसा ही दुनिया की सारी स्त्रियों के साथ होगा. (image generated by Meta)
तब से कोई महिला कुछ गोपनीय नहीं रख पाती
और कहा जाता है कि इसके बाद से महिलाओं के लिए किसी भी गोपनीय रखना असंभव हो चुका है. ये बात तो अब मुहावरों और कहावतों में भी शामिल हो चुकी है कि महिलाओं के पेट में कोई बात नहीं पचती.
कब हुआ था कर्ण का जन्म
कर्ण का जन्म पांडवों के पिता पांडु और कुंती की शादी से पहले हुआ था. कर्ण दुर्योधन का सबसे अच्छा मित्र था. महाभारत के युद्ध में वह अपने मित्र दुर्योधन के तरफ से अपने ही भाइयों के विरुद्ध लड़े.
कर्ण को एक आदर्श दानवीर माना जाता था, क्योंकि कर्ण ने कभी किसी मांगने वाले को दान में कुछ भी देने से कभी मना नहीं किया भले ही इसके परिणामस्वरूप उनके अपने ही प्राण संकट में क्यों न पड़ गए हों.
इस तरह हुआ कर्ण का जन्म
कर्ण का जन्म कुंती को मिले एक वरदान से हुआ था. जब वह कुंआरी थी, तब एक बार दुर्वासा ऋषि उनके पिता के महल में पधारे. तब कुंती ने पूरे एक वर्ष तक ऋषि की बहुत अच्छी तरह सेवा की. कुंती की सेवा से खुश होकर उन्होनें अपनी दिव्यदृष्टि से ये देख लिया कि पांडु से उसे सन्तान नहीं हो सकती. तब उन्होंने उसे ये वरदान दिया कि वह किसी भी देवता का स्मरण करके उनसे सन्तान पैदा कर सकती हैं.
एक दिन उत्सुकतावश कुंवारेपन में ही कुंती ने सूर्य देव का ध्यान किया. इससे सूर्य देव प्रकट हुए. उनकी नाभि को छूकर उनके गर्भ में प्रवेश किया. अपने पुत्र को वहां मंत्रों द्वारा स्थापित किया. कालांतर में कुंती के गर्भ से ऐसा बालक उत्पन्न हुआ जो तेज़ में सूर्य के ही समान था.
वह कवच और कुण्डल लेकर पैदा हुआ था, जो जन्म से ही उसके शरीर से चिपके हुए थे। चूंकि वह अभी अविवाहित थीं इसलिए लोक-लाज के डर से उन्होंने उस पुत्र को एक बक्से में रख कर गंगाजी में बहा दिया.
कैसे धृतराष्ट्र के सारथी ने उसे पाला
कर्ण फिर गंगाजी में बहते हुए महाराजा धृष्टराज के सारथी अधिरथ को मिला. जिन्होंने अपनी पत्नी राधा के साथ उसे पाला. उन्होंने उसे वासुसेन नाम दिया. अपनी पालनकर्ता माता के नाम पर कर्ण को राधेय के नाम से भी जाना जाता है. अपने जन्म के रहस्योद्घाटन होने और अंग का राजा बनाए जाने के बाद भी कर्ण ने सदैव उन्हीं को अपना माता-पिता माना. अंग का राजा बनाए जाने के पश्चात कर्ण का एक नाम अंगराज भी हुआ.
Tags: MahabharatFIRST PUBLISHED : November 9, 2024, 09:27 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed