ट्रंप की तरह जब इंदिरा गांधी पर भी चुनावी सभा में हुआ प्राणघातक हमला टूटी नाक

जिस तरह अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पेनसिल्वेनिया चुनावी रैली में उन पर गोली से हमला हुआ, उसी तरह का घातक हमला इंदिरा गांधी पर भी हुआ था, उनकी नाक टूट गई थी.

ट्रंप की तरह जब इंदिरा गांधी पर भी चुनावी सभा में हुआ प्राणघातक हमला टूटी नाक
हाइलाइट्स ये ईंट का टुकड़ा उन पर भुवनेश्वर की एक सभा में फेंका गया ये अगर उनके सिर में लगता तो जान भी जा सकती थी उनकी नाक से खून का फव्वारा सा छूट पड़ा शनिवार की रात जिस तरह पेंसिलवेनिया में चुनावी रैली कर रहे अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और रिपब्लिक कैंडीडेट डोनाल्ड ट्रंप पर गोली से हमला किया वैसा ही प्राणघातक हमला इंदिरा गांधी पर भी पत्थर से हुआ था. अगर पत्थर उनके सिर में लगता तो उनकी जान भी जा सकती थी. शुक्र था ये पत्थर उनकी आंख पर भी नहीं लगा और नाक पर लगा. इससे उनकी नाक टूट गई और चुनावी मंच पर ही खून बहने लगा. ये बात फरवरी 1967 की है. देश में लोकसभा चुनावों का समय था. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी घूम घूमकर देशभर में चुनाव प्रचार कर रही थीं. हालांकि उस समय देश में ज्यादातर लोगों को भ्रम था कि इंदिरा इतनी सुकोमल हैं कि देश के प्रधानमंत्री का भार नहीं उठा सकतीं. वो लगातार ऐसी बातों को गलत साबित कर रही थीं. 1967 के चुनावों में वो देश के दूरदराज के हिस्सों में गईं. लाखों लोग खुद ब खुद उनका भाषण सुनने के लिए इकट्ठा होते थे. भुवनेश्वर में उन पर फेंकी गई थी ईंट  ऐसे ही चुनाव प्रचार के सिलसिले में जब वो ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर गईं, तो वहां भीड़ में कुछ उपद्रवी भी थे. जिसके कारण भीड़ को नियंत्रण में रखना आयोजकों के लिए मुश्किल हो गया. वो बोल ही रही थीं कि उपद्रवियों ने पथराव शुरू कर दिया. इंदिरा गांधी (फाइल फोटो) एक ईंट का टुकड़ा आकर उनकी नाक पर लगा. खून बहने लगा. हालांकि ये खतरनाक हो सकता था. अगर ये उनके सिर पर लगता तो उनकी जान भी जा सकती थी. आंखों के लिए भी खतरा बन सकती थी. ईंट का टुकड़ा सीधे आकर नाक पर लगा. नाक टूट गई. खून बहने लगा. सुरक्षा अधिकारी उन्हें मंच से हटा ले जाना चाहते थे. स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ता अनुरोध करने लगे कि वो मंच के पिछले हिस्से में जाकर बैठ जाएं. मगर इंदिरा ने किसी की नहीं सुनी. खून से डूबी नाक रूमाल से दबाकर खड़ी रहीं  वो खून से डूबी नाक को रूमाल से दबाए निडरता से क्रुद्ध भीड़ के सामने खड़ी रहीं. उन्होंने उपद्रवियों को फटकारते हुए कहा, ‘ये मेरा अपमान नहीं है बल्कि देश का अपमान है. क्योंकि प्रधानमंत्री होने के नाते मैं देश का प्रतिनिधित्व करती हूं.’ इस घटना से सारे देश को गहरा झटका लगा. फिर कोलकाता में भी भाषण दिया  इस घटना के बाद उनके स्टाफ और सुरक्षाकर्मियों ने उनसे दिल्ली लौटने का अनुरोध किया लेकिन उन्होंने इसे भी नहीं माना. वो अगली जनसभा के लिए कोलकाता रवाना हो गईं. उन्होंने टूटी नाक पर पट्टी लगवा कोलकाता में लोगों के सामने भाषण दिया. इंदिरा गांधी 1967 में (फाइल फोटो) दिल्ली में हुई नाक की सर्जरी  जब वो दिल्ली लौटीं तो पता लगा उनके नाक में खासी चोट आई है. इसका आपरेशन करना होगा. बेहोश करके उनकी नाक का ऑपरेशन किया गया. इस ऑपरेशन में काफी समय भी लगा. हालांकि बाद में वो मजाक में कहती थीं कि मुझे तो लग रहा था कि डॉक्टर प्लास्टिक सर्जरी करके मेरी नाक को सुंदर बना देंगे. आप तो जानते ही हैं कि मेरी नाक कितनी लंबी है लेकिन इसे खूबसूरत बनाने का एक मौका हाथ से निकल गया. कमबख्त डॉक्टरों ने कुछ नहीं किया. मैं वैसी की वैसी ही रह गई. इंदिरा की बुआ कृष्णा हठीसिंग की किताब “इंदु से प्रधानमंत्री” में लिखा है, इस घटना से सारे देश को गहरा झटका लगा. सब दलों को, सार्वजनिक रूप से सही, इस घटना की निंदा करनी पड़ी. जयपुर में भी इंदिरा की सभा में हुआ था शोरशराबा ओडिया के भुवनेश्वर में जो कुछ हुआ उससे पहले इंदिरा को जयपुर की एक विशाल सभा में भी ऐसी ही स्थितियों का सामना करना पड़ा था. कृष्णा हठीसिंग की किताब कहती है, जब वो जयपुर में भाषण कर रही थीं तब एक कोने से जनसंघ के समर्थकों का एक छोटा सा दल शोर मचाने लगा. गो-वध को बंद करने के नारे लगाने लगा. वो लगातार सभा में व्यवधान कर रहे थे, ये बढ़ता जा रहा था. तब इंदिरा ने मंच से शोर मचाने वालों को चुनौती दी, ‘मैं इस तरह की हरकतों से दबने और डरने वाली नहीं हूं. मुझे मालूम है कि इन बेहूदूगियों के पीछे किन लोगों का हाथ है. लोगों को अपनी बात कैसे सुनानी चाहिए, ये मैं खूब जानती हूं. आज मुझे असलियत बतानी ही होगी. इन नारों से आप लोग अपने पिछले इतिहास को नहीं बदल सकते.’ उन्होंने शोर मचाने वालों को चुनौती दी, जब देश पर विदेशियों की हुकूमत थी, उस समय जनसंघ के समर्थक क्या कर रहे थे. कहां थे वो लोग.वो एक घंटे तक धाराप्रवाह बोलती रहीं. 1967 के चुनावों में इंदिरा जीतीं लेकिन सिंडिकेट हारा 1967 के उन चुनावों में इंदिरा गांधी के सामने दोहरी चुनौती थी. एक तो उन्हें ये साबित करना था कि वो अपने बल पर पार्टी को जिता सकती हैं और दूसरा कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेताओं के सिंडिकेट से भी उन्हें छुटकारा पाना था. उस चुनाव में सिंडिकेट हारा. ज्यादातर पुराने नेता चुनाव हार गए. इंदिरा गांधी रायबरेली से भारी बहुमत से विजयी रहीं. यद्यपि कांग्रेस ने 1967 में जीत हासिल करके सरकार बनाई लेकिन उसकी सीटों की संख्या में काफी कमी आ गई थी. स्वतंत्र भारत में पहली बार कांग्रेस के अधिपत्य को गंभीर चुनौती मिली थी. तब कांग्रेस 283 सीटों के मामूली बहुमत के साथ ही सदन में जीतकर पहुंची थी. Tags: Donald Trump, Indira GandhiFIRST PUBLISHED : July 14, 2024, 17:55 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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