कौन था वो रजवाड़ा जिसके राजा ने सबसे पहले किये भारत में विलय पर दस्तखत
कौन था वो रजवाड़ा जिसके राजा ने सबसे पहले किये भारत में विलय पर दस्तखत
How did princely states merge into India: जब भारत आजाद हुआ तो वो 565 देशी रियासतों में बंटा हुआ था. भावनगर पहला ऐसा रजवाड़ा था, जिसके महाराजा कृष्णकुमार सिंहजी भारत में विलय के लिए अपनी मंजूरी दी थी. लेकिन भोपाल ऐसी रियासत थी जो काफी जद्दोजहद के बाद भारत का हिस्सा बनी.
How did princely states merge into India: साल 1947 में आजादी मिलने के समय भारत 565 देशी रियासतों में बंटा हुआ था. 15 अगस्त को आजादी मिलने से पहले से ही रियासतों के भारत में शामिल होने को लेकर उठापठक शुरू हो गई थी. बहुत से नवाब, राजा-रजवाड़े भारतीय संघ में विलय करने के पक्ष में नहीं थे. वे अपना स्वतंत्र अस्तित्व चाहते थे. कुछ रियासतों की यह सोच सशक्त भारतीय संघ के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा थी. भोपाल, हैदराबाद, जूनागढ़ सहित कुछ रियासतों ने भारत में शामिल होने से इनकार कर दिया था.
सरदार पटेल ने उठाया यह बीड़ा
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने साल 1947 में छह मई को रियासतों और रजवाड़ों के विलय का मुश्किल काम शुरू किया था. इस काम में उनका सहयोग उस समय के वरिष्ठ नौकरशाह वीके मेनन ने किया था. सरदार पटेल तब अंतरिम सरकार में उपप्रधान मंत्री के साथ गृहमंत्री भी थे. सरदार पटेल ने वीके मेनन को गृह विभाग का मुख्य सचिव नियुक्त किया और दोनों ने नवाबों और राजाओं से बातचीत शुरू की. सरदार पटेल ने सभी रियासतों के सामने प्रिवीपर्स का प्रस्ताव रखा. जिसके जरिये उन्हें सरकार द्वारा आर्थिक मदद दी जाएगी. 15 अगस्त, 1947 तक 136 रियासतों ने भारत में शामिल होने का फैसला कर लिया था.
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कृष्णकुमार सिंहजी विलय करने वाले पहले राजा
सरदार पटेल के भारत में विलय के प्रस्ताव को स्वीकार करने वाले पहले राजा महाराजा कृष्णकुमार सिंहजी थे. उन्होंने सबसे पहले अपने रजवाड़े भावनगर के भारत में विलय की सहमति दे दी थी. बीकानेर और बड़ौदा भी उन रियासतों में थे जिन्होंने शुरुआत में ही भारतीय संघ में शामिल होने के लिए रजामंदी दे दी थी. सरदार पटेल और वीपी मेनन के कूटनयिक प्रयासों से ही रियासतों का विलय भारत में हो पाया. सरदार पटेल को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने सभी रियासतों को भारत में मिलाकर देश को एक सूत्र में बांधा. उन्हीं के प्रयासों की वजह से ही भारत को मौजूदा स्वरूप मिला. देश के प्रति उनकी कर्तव्यनिष्ठा और कुशल प्रशासक होने के वजह से ‘लौह पुरुष’ कहा जाता है.
भोपाल सबसे बाद में हुआ शामिल
भोपाल की रियासत भी भारत में शामिल नहीं होना चाहती थी. लेकिन बाद में वह भारत में शामिल हो गई. सबसे बाद में शामिल होने वाली रियासत भोपाल ही थी. भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह समझ नहीं पा रहे थे कि वो क्या फैसला करें. मोहम्मद अली जिन्ना उन्हें पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद देने की पेशकश कर चुके थे. नवाब हमीदुल्लाह पशोपेश में थे, क्योंकि वह जवाहर लाल नेहरू के भी घनिष्ठ मित्र थे. मार्च, 1948 में नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल के आजाद रहने का ऐलान किया. लेकिन भोपाल में विलय को लेकर जोरदार प्रदर्शन हुए. आखिरकार 30 अप्रैल 1949 को नवाब हमीदुल्लाह ने विलय के कागजों पर दस्तखत कर दिए. एक जून, 1949 को भोपाल रियासत भारत का हिस्सा बन गई.
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विलय कराने में सेना की भी ली गई मदद
जिन अन्य तीन रियासतों ने भारत में विलय करने से मना कर दिया था, वे थे जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर. जूनागढ़ रियासत पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुकी थी. वहीं काश्मीर ने स्वतंत्र बने रहने की इच्छा व्यक्त की. हैदराबाद ने भी भारत में शामिल होने के मना कर दिया और एक आजाद राज्य की मांग की. ये तीनों रियासत ऐसी थीं जिनके हुक्मरान मुस्लिम थे, लेकिन इनकी बहुतायत जनता हिंदू थी. सरदार पटेल और वीपी मेनन ने जूनागढ़, कश्मीर तथा हैदराबाद तीनों राज्यों का सेना की मदद से भारत में विलय करवाया.
Tags: Independence day, India pakistan, Indo Pak PartitionFIRST PUBLISHED : August 14, 2024, 13:09 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed