क्या इमर्जेंसी में संजय गांधी ने इंदिरा को मारा थप्पड़ कहां छपी ये रिपोर्ट

आपातकाल के दौरान वाशिंगटन पोस्ट ने एक रिपोर्ट छापी कि इंदिरा गांधी को उनके बेटे ने एक पार्टी में नाराज होकर थप्पड़ मारे. इस रिपोर्ट ने तहलका मचा दिया. हालांकि बाद इंदिरा ने खुद इसे गलत बताया.

क्या इमर्जेंसी में संजय गांधी ने इंदिरा को मारा थप्पड़ कहां छपी ये रिपोर्ट
हाइलाइट्स वाशिंगटन पोस्ट के संवाददाता साइमंस ने सूत्रों के हवाले से ये रिपोर्ट छापी थी उन्हें बाद में 05 घंटे के भीतर भारत छोड़ने का आर्डर दिया गया बाद में एक लंबे इंटरव्यू में इंदिरा गांधी ने इसका खंडन किया था 25 जून 1977 को देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया. इसके बाद देश में तेजी से घटनाएं बदलने लगीं. बड़े पैमाने पर विपक्ष के नेता गिरफ्तार किए जाने लगे. इस दौरान जो शख्स तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी ज्यादा ताकतवर होकर उभरा, वो संजय गांधी थे. जिन्होंने अपना पांच सूत्रीय प्रोग्राम तो लागू किया ही, साथ ही अपनी मां इंदिरा के सबसे बड़े सलाहकार बनकर उभरे. हालांकि लोग उन्हें गर्म मिजाज कहते थे. वाशिंगपोस्ट पोस्ट ने आपातकाल के दौरान ही एक रिपोर्ट छापी कि एक डिनर पार्टी में संजय गांधी ने नाराज होकर मां इंदिरा को कई थप्पड़ मारे. ये रिपोर्ट सनसनी फैलाने वाली थी और उतनी ही अविश्वसनीय भी. बाद में जब इंदिरा गांधी चुनावों में हारीं तो उन्होंने एक लंबे इंटरव्यू में इसका सिरे से खंडन कर दिया. संजय तब जितने ताकतवर बनकर उभरे, उतने ही विवादास्पद भी. उन्हें तब देश का भविष्य का प्रधानमंत्री माना जा रहा था.  ऐसा माने जाने लगा था कि इंदिरा गांधी उन्हें उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार कर रही हैं. हालांकि मां के साथ उनके बर्ताव को लेकर तमाम तरह की अटकलें 80 और 90 के दशक में लगती रहीं. आपातकाल के दौरान पूरे देश में ये अटकल सबसे ज्यादा फैली कि संजय ने एक डिनर पार्टी में सार्वजनिक तौर पर मां को कई थप्पड़ मारे. एक विदेशी अखबार “वाशिंगटन पोस्ट” ने तो इस पर रिपोर्ट ही छाप दी.  भारत में तब किसी मीडिया ने इसे जगह नहीं दी. पुलिट्जर पुरस्कार प्राप्त पत्रकार लेविस एम साइमंस तब दिल्ली में “वाशिंगटन पोस्ट” के करेसपोंटेंड थे. आपातकाल लगाया जा चुका था. उन्होंने अपनी एक खबर में दावा किया कि संजय ने दिल्ली में एक प्राइवेट डिनर पार्टी में मां इंदिरा को कई थप्पड़ मारे थे. “स्क्रोल” वेबसाइट ने बाद में साइमंस से इस बारे ईमेल पर बात की. तब साइमंस ने बताया कि ये खबर उन्होंने किस आधार पर कैसे छापी. कैसे उन्हें इसका पता लगा. वाशिंगटन पोस्ट के रिपोर्टर का जवाब जब ईमेल के जरिए स्क्रोल ने उनसे पूछा, आपने “वाशिंगटन पोस्ट” में जब इंदिरा को थप्पड़ मारे जाने संबंधी स्टोरी की तो सूत्र का नाम क्यों नहीं दिया. ये घटना कब हुई. संजय ने ऐसा क्यों किया था. उन्होंने जवाब लिखा, “ये घटना आपातकाल लागू होने से पहले एक प्राइवेट पार्टी में हुई. मैने इसको तुरंत नहीं लिखा बल्कि इसे रख लिया कि बाद में करूंगा. संजय क्यों नाराज हुए थे, ये बात अब मुझे याद नहीं है. आखिर इस घटना को लंबा समय बीत चुका है.” वाशिंगटन पोस्ट ने ये रिपोर्ट छापी कि संजय ने एक पार्टी में तत्कालीन प्रधानमंत्री और अपनी मां इंदिरा को थप्पड़ मारे, तो इससे तहलका मच गया. घटना आपातकाल घोषित करने से एक शाम पहले की अगला सवाल उनसे ये पूछा गया, “क्या जिस सूत्र ने उन्हें ये जानकारी दी, उसने उन्हें खुद बताया या जानकारी अनायास हल्की फुल्की बातचीत में निकली?”  तब साइमंस ने जवाब लिखा, “इसके दो सूत्र थे, दोनों एक-दूसरे को जानते थे और इस पार्टी में थे. उसमें से एक ने ये बात मेरी पत्नी को घर आने के दौरान बताई. ये बात आपातकाल घोषित होने से एक शाम पहले की थी. दूसरे सोर्स ने इसको कन्फर्म किया.” भारतीय पत्रकार ने इस स्टोरी पर सवाल उठाया था सीनियर जर्नलिस्ट कूमी कपूर ने अपनी किताब “द इमर्जेंसी-ए पर्सनल हिस्ट्री” में इसका उल्लेख किया. उन्होंने लिखा, ये बात एक से दूसरे तक जंगल में आग की तरह फैली. हालांकि सेंसरशिप के चलते किसी अखबार ने इसको नहीं छापा. उन्होंने भी वाशिंगटन पोस्ट के संवाददाता से बातचीत की थी. जब उन्होंने पूछा, क्या आपको अंदाज था कि आप जो छाप रहे हैं, उसका क्या असर होने वाला है.  जवाब में “वाशिंगटन पोस्ट” के पत्रकार ने कहा, “बेशक मुझको अंदाज है कि भारतीय लोग गॉसिप कितना पसंद करते हैं. हालांकि विदेशी मीडिया ने इस स्टोरी को प्रमुखता से कवर किया. “न्यूयार्कर मैगजीन” में वेद मेहता जैसे गंभीर लेखक ने इस पर एक आर्टिकल लिखा.” कूमी कपूर ने स्टोरी की विश्वसनीयता पर शक जाहिर किया सवाल – कपूर ने अपनी किताब में लिखा, स्टोरी की विश्वसनीयता संदिग्ध है. आजतक पता नहीं चला कि वो सूत्र कौन थे. ना उनका नाम जाहिर हुआ. ना ही सार्वजनिक तौर पर कोई कभी सामने आया. क्या आपको इस स्टोरी पर कभी पछतावा नहीं हुआ. ये हैं वाशिंगटन पोस्ट के वो पत्रकार लेविस एम साइमंस, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट के जरिए भारत में तहलका मचा दिया. बाद में उन्हें पुलिट्जर प्राइज भी मिला. जवाब – मेरे उस सूत्र की विश्वसनीयता आज भी पक्की है. मैं उस पर कभी संदेह कर ही नहीं सकता. हां मैने उस पार्टी में गए दूसरे किसी मेहमान का इंटरव्यू नहीं किया. मुझको ये स्टोरी लिखने का कोई पछतावा नहीं है. मैं मानता हूं कि इस स्टोरी के जरिए जाहिर हुआ कि मां और बेटे के बीच कितने अजीब संबंध थे और तब जबकि इसका सबसे ज्यादा असर भारत के लोगों पर पड़ा. सवाल – क्या आप अपने सूत्र से भारत या विदेश में मिले, आपातकाल उठाए जाने के बाद चुनावों में 1977 में इंदिरा गांधी की बुरी हार हुई थी? – हां, हम आपातकाल के पहले और बाद में कई बार मिले. सवाल – क्या आप अपने इस सूत्र की पहचान उजागर करेंगे, क्या कभी किसी स्थिति में ऐसा होगा? – नहीं इसका मेरा कोई इरादा नहीं है. मैने उसे अपनी जुबान दी हुई है कि ऐसा नहीं होगा. मैने कई और भी ऐसी रिपोर्ट्स की हैं. मैं हमेशा वादे का पक्का हूं. एक विश्वसनीय पत्रकार और शख्स के तौर पर ऐसा करना जरूरी है. सवाल – क्या आप अब भी सूत्र के संपर्क में हैं? – हां सवाल – जब ये स्टोरी आपने वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित की तो आपसे देश छोड़ने को कहा गया, क्या आपको अंदाज था कि ऐसा होगा? – मुझसे देश छोड़ने को नहीं कहा गया. मुझे 05 घंटे की नोटिस पर ऐसा करने का आर्डर दिया गया. हालांकि इसका मेरी स्टोरी से कोई लेना देना नहीं था, क्योंकि उसको मैने तब तक लिखा ही नहीं था. बल्कि ये मेरी उस स्टोरी पर था, जिसमें मैने कई आर्मी अफसरों के हवाले से लिखा था कि वो आपातकाल लागू करने के इंदिरा गांधी के फैसले से खुश नहीं हैं. मुझको बगैर नोटिस के गिरफ्तार कर लिया गया. 05 घंटे बाद मुझको अमेरिकी दूतावास के अधिकारी एयरपोर्ट तक ले गए. एमीग्रेशन अफसर ने मेरी सारी नोटबुक्स जब्त कर लीं. जिन्हें कई महीने बाद लौटाया गया. मुझे बैंकाक जाने वाले एक प्लेन पर बिठाया गया. वहां मैं एक होटल रूम में ठहरा. वहीं मैने थप्पड़ की घटना वाली स्टोरी लिखी. सवाल – क्या आपकी इसके बाद फिर इंदिरा या उनके परिवार में किसी से मुलाकात हुई? – आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री बनते ही मुझको और एक ब्रिटिश जर्नलिस्ट को वापस बुलवा लिया. मैं तब इंदिरा गांधी से भी मिला. लेकिन मैने उनको ये नहीं बताया कि वो स्टोरी मैने लिखी है लेकिन एक अन्य प्राइवेट पार्टी में राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया आए हुए था. वहां सबके सामने ये कहा गया कि वो थप्पड़ की स्टोरी लिखने वाला पत्रकार मैं ही था. तब राजीव ने मेरी ओर देखा और मुस्कुराने लगे. उन्होंने कुछ नहीं कहा. सोनिया जरूर कुछ नाराज लग रही थीं लेकिन उन्होंने भी कुछ कहा नहीं. आपातकाल के बाद जब इंदिरा गांधी वर्ष 1977 में इसे हटाकर चुनावों की घोषणा की तो वो और उनकी पार्टी चुनावों में बुरी तरह हारी. उसके बाद इंदिरा दुनिया के जाने-माने इंटरव्यूअर डेविड फ्रास्ट को लंबा इंटरव्यू दिया. जिसे इंडिया टुडे ने 15 और 31 अगस्त 1977 के अंकों में छापा. इसमें इंदिरा ने बहुत से सवालों का जवाब दिया. उनसे इस थप्पड़ के बारे में भी सवाल किया गया. देखें वो सवाल क्या था और इसका जवाब क्या दिया गया. फ्रॉस्ट: हाल ही में आई एक किताब में छपी स्टोरी के बारे में आप क्या कहेंगी, जिसमें बताया गया कि एक बार उन्होंने (संजय गांधी) आपको थप्पड़ मारा था. क्या यह सच था? – श्रीमती गांधी – यह बकवास है. मुझे अपने जीवन में अब तक किसी ने थप्पड़ नहीं मारा है और उन्होंने भी कभी किसी को थप्पड़ नहीं मारा. Tags: Emergency 1975, Indira GandhiFIRST PUBLISHED : June 25, 2024, 07:50 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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