कैसे जयपुर महाराजा मानसिंह बने स्पेन में भारत के पहले राजदूत क्या किया वहां
कैसे जयपुर महाराजा मानसिंह बने स्पेन में भारत के पहले राजदूत क्या किया वहां
स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज भारत की यात्रा पर हैं. भारत वायुसेना के विमान बनाने के लिए स्पेन के एयरबस से करार कर रहा है. क्या आपको मालूम है जयपुर के महाराजा मानसिंह कैसे स्पेन में पहले राजदूत बनाए गए थे.
हाइलाइट्स मानसिंह द्वितीय जयपुर को भारत में मिलाने पर खुश नहीं थे फिर नेहरू ने उन्हें 1962 में राज्यसभा में पहुंचाया प्रधानमंत्री रहते हुए लालबहादुर शास्त्री ने स्पेन में राजदूत बनाया
स्पेन के प्रधानमंत्री पैड्रो सांचेज भारत की यात्रा पर हैं. दोनों देशों में राजनयिक संबंधों के करीब 68 साल हो चले हैं. भारत ने जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय को स्पेन में पहला राजदूत नियुक्त किया था. इसकी भी एक कहानी है कि कैसे लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री रहते हुए वह स्पेन के राजदूत बनाए गए जबकि उनकी पत्नी महारानी गायत्री देवी कांग्रेस की घनघोर विरोधी थीं.
महाराजा मानसिंह द्वितीय जयपुर के महाराजा माधोसिंह द्वितीय की असली संतान नहीं थे. बल्कि वह उनके रिश्तेदार के बेटे थे. किसी ज्योतिषी ने महाराजा माधोसिंह को बता दिया था कि अगर वह अपने वैध पत्नियों से बच्चा पैदा करेंगे तो उनकी मृत्यु हो जाएगी. इस डर से महाराजा ने अपनी पांच पत्नियों से कोई बच्चा पैदा ही नहीं किया. हालांकि कहा जाता है कि महाराजा ने अपनी रखैलों से 65 से ज्यादा बच्चे पैदा किए. इस बात का ध्यान रखा कि पत्नियों से कोई संतान पैदा नहीं हो.
मानसिंह को गोद लिया गया था
महाराजा माधो सिंह ने मानसिंह द्वितीय को गोद लिया. मानसिंह विदेश पढ़ने गए. वह दिमागी तौर पर बहुत तेज के साथ जहीन शहीन शख्सियत थे. यूरोपीय देशों के साथ उनके अच्छे रिश्ते थे. वह पोलो के बड़े खिलाड़ियों में थे. अक्सर यूरोप में जाकर गोल्फ और पोलो खेलते थे. लिहाजा यूरोप में उनके काफी संबंध बन गए थे. अंग्रेजों की ओर से भी उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध में शिरकत की.
तब वह नेहरू और पटेल से नाराज थे
जब भारत आजाद हुआ तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू और गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने देसी रियासतों को भारत में मिलाना शुरू किया. तब जयपुर देश की समृद्ध रियासतों में था. मानसिंह ने उसकी तरक्की के लिए काफी काम कराया था लेकिन वह नहीं चाहते थे कि उनकी रियासत का विलय भारत में हो. उन्होंने इसके लिए बहुत देर की. शायद उनकी रियासत सबसे आखिर में भारत में विलय करने वाली रियासतों में थी. ये कदम उन्होंने 1949 में जाकर उठाया.
1952 में राज्य प्रमुख पद से भी हटा दिए गए
महाराजा इस बात से बहुत खिन्न भी थे कि भारत सरकार ने जबरदस्ती उनकी रियासत को भारतीय लोकतंत्र में मिला दिया. प्रधानमंत्री नेहरू से उनके रिश्ते इसी बात को लेकर बिगड़े रहे. सरदार पटेल से भी वह खिन्न रहे. बाद में तब वह और नाराज हो गए जब भारत में संविधान लागू हुआ और 1952 में केंद्र सरकार ने राजस्थान संघ के राज्य प्रमुख के पद से भी हटाकर वो पद ही खत्म कर दिया.
बाद में रिश्ते सुधरने लगे
लेकिन नेहरू से उनके संबंध बाद में सुधरने लगे. नेहरू ने वर्ष 1962 में उन्हें छह साल के लिए राज्यसभा में पहुंचाया. लेकिन रियासत हाथ से निकल जाने को लेकर उनकी पत्नी और महारानी गायत्री देवी ने कांग्रेस को कभी क्षमा नहीं किया. वह ताजिंदगी कांग्रेस विरोधी रहीं
मानसिंह को स्पेन का राजदूत बनाकर किसे मनाया गया
हालांकि कांग्रेस ने बहुत कोशिश की कि वह महारानी गायत्री देवी की नाराजगी को दूर कर सकें लेकिन ऐसा हो नहीं सका. बाद में गायत्री देवी ने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा और लोकसभा में भी पहुंचीं.
पर महारानी गायत्री देवी अड़ी रहीं
नेहरू के निधन के बाद 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी कोशिश की थी कि वह कांग्रेस में शामिल हो जाएं. उन्होंने गायत्री देवी को बुलाया और बताया कि उनके पति मानसिंह द्वितीय को स्पेन में भारत का राजदूत बनाया जा रहा है, अब उन्हें कांग्रेस में आ जाना चाहिए लेकिन तब भी गायत्री देवी नहीं मानीं.
मानसिंह ने स्पेन के साथ संबंध बेहतर करने में बहुत काम किया
इसके बाद भी शास्त्री ने जयपुर के महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय को स्पेन का पहला राजदूत बनाया गया. हालांकि दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध 1956 से ही शुरू हो चुके थे. मानसिंह की राजदूत के तौर पर नियुक्ति 1965 में हुई. स्पेन में फिलहाल भारतीय राजदूत श्री दिनेश के. पटनायक हैं, जो 30 से अधिक वर्षों के अनुभव वाले एक कैरियर राजनयिक हैं.
जब मानसिंह द्वितीय को स्पेन को राजदूत बनाया गया तो ये सोचा गया कि शासन और राजनीति में उनके अनुभव का भारत को स्पेन में फायदा मिलेगा. खासकर उन्हें ये दायित्व तब सौंपा गया जबकि भारत वैश्विक मंच पर अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा था.
नियुक्ति का उद्देश्य सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करना था. यूरोप में मान सिंह द्वितीय की पृष्ठभूमि और संबंधों को द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए फायदेमंद माना जाता था, खासकर पर्यटन और व्यापार में, जो दोनों देशों के लिए तेजी से महत्वपूर्ण होते जा रहे थे.
सैन्य मामलों में उनकी पिछली भागीदारी और भारत के लिए आधुनिक सैन्य तकनीक हासिल करने में उनकी रुचि ने भी एक भूमिका निभाई. उनके यूरोपीय संबंधों ने हथियारों के सौदे को आसान बनाया.
वह भारत को यूरोपीय देशों के करीब ला सके
मानसिंह के राजदूत बनने के बाद दोनों देशों के संबंध ना केवल मजबूत हुए बल्कि उनकी कोशिशों से भारत यूरोपीय देशों के और करीब आया. भारत को हथियारों से लेकर दूसरे मामलों में तब मानसिंह के प्रयासों से ही मदद मिली.
नरसिंह राव और मोदी ने किया वहां का दौरा
स्पेन पहले राजतंत्र था. 1978 में ये लोकतांत्रिक देश बना. हालांकि वहां अभी भी राजा औपचारिक तौर पर देश का मुखिया कहा जाता है. उसके नीचे प्रधानमंत्री होता है, जो सरकार चलाता है और सरकार का प्रमुख है. 1992 में प्रधान मंत्री पीवी नरसिंह राव और 2017 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पेन का दौरा किया.
व्यापार में बड़ा साझीदार
स्पेन यूरोपीय संघ में भारत का 7वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. 2017-18 में द्विपक्षीय व्यापार 5.66 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा. ये लगातार बढ़ता रहा है. भारत स्पेन को कपड़ा, जैविक रसायन, लोहा और इस्पात, समुद्री भोजन, ऑटोमोबाइल और चमड़ा जैसी चीजें निर्यात करता है. वहां से यांत्रिक उपकरण, विद्युत मशीनरी, रसायन, प्लास्टिक और खनिज ईंधन आयात करता है.
स्पेन भारत में 15वां सबसे बड़ा निवेशक है. महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में स्पेन का निवेश है. स्पेन में भारतीय निवेश लगभग 900 मिलियन अमेरिकी डॉलर के आसपास है. स्पेन में करीब 40 भारतीय कंपनियां हैं, जो मुख्य रूप से सॉफ्टवेयर और आईटी सेवाओं, फार्मास्यूटिकल्स, रसायन और लॉजिस्टिक्स में हैं. भारत वैश्विक स्तर पर स्पेन में शीर्ष 30 निवेशकों में एक है.
Tags: Jaipur news, Rajasthan RoyalsFIRST PUBLISHED : October 28, 2024, 13:02 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed