ब्रेन स्ट्रोक में कैसे एक स्टेंट 24 घंटे में रक्त के थक्के को कर सकता है साफ
ब्रेन स्ट्रोक में कैसे एक स्टेंट 24 घंटे में रक्त के थक्के को कर सकता है साफ
Hope For Brain Stroke Patients: ब्रेन स्ट्रोक के कारण प्रभावित हिस्से में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं. अगर समय रहते इलाज न किया जाए, तो यह जानलेवा हो सकता है. भारत में उन्नत स्टेंट-रिट्रीवर उपकरणों का परीक्षण किया जा रहा है. इससे 24 घंटे के अंदर रक्त के थक्के को साफ किया जा सकता है.
Hope For Brain Stroke Patients: ब्रेन स्ट्रोक, या मस्तिष्काघात, एक मेडिकल इमरजेंसी है जिसमें ब्रेन के किसी हिस्से में ब्लड सर्कुलेशन बाधित हो जाता है. इससे बेन की कोशिकाओं को ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं मिल पाते और वे मरने लगती हैं. ब्रेन स्ट्रोक के कारण, ब्रेन के प्रभावित हिस्से में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि बोलने, चलने, देखने, या सोचने में दिक्कत. अगर समय रहते इलाज न किया जाए, तो यह जानलेवा हो सकता है.
लेकिन पिछले कुछ समय से, पश्चिमी देशों में ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों की मस्तिष्क क्षति को रोका जा सकता है. क्योंकि न्यूरोसर्जन ने अवरुद्ध धमनियों से रक्त के थक्के को साफ करने और 24 घंटों के भीतर रक्त प्रवाह को बहाल करने के लिए एक रिफाइंड रिट्रीवर स्टेंट का उपयोग किया था. हालांकि भारत में ब्रेन स्ट्रोक के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन यह उपकरण अधिकांश भारतीयों की पहुंच से बाहर है.
एम्स दिल्ली में हो रहा एक ट्रायल
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार अब यह स्थिति बदलने वाली है. क्योंकि दिल्ली का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) एक उन्नत उपकरण के साथ ट्रायल कर रहा है, जो सभी प्रकार के रक्त के थक्कों को हटाने में सक्षम है. यह ब्लॉक धमनियों को बेहतर तरीके से खोलता है और इसकी कीमत मूल कीमत की एक-चौथाई हो सकती है. क्लिनिकल ट्रायल में ग्रासरूट (Gravity Stent-Retriever System for Reperfusion of Large Vessel Occlusion Stroke Trial, GRASSROOT) यानी एक नई पीढ़ी के उन्नत स्टेंट-रिट्रीवर उपकरणों का परीक्षण किया जा रहा है. जिसका उपयोग मस्तिष्क में धमनियों की रुकावट को साफ करने के लिए स्ट्रोक सर्जरी में किया जा सकता है.
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भारत के हिसाब से किया गया डिजाइन
एम्स के न्यूरोसाइंसेस सेंटर के न्यूरोइमेजिंग और इंटरवेंशनल न्यूरोराडियोलॉजी विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर डॉ. शैलेश गायकवाड़ के अनुसार, “हम यह पता लगा रहे हैं कि यह उपकरण भारतीय लोगों पर कैसे काम करता है. नया स्टेंट-रिट्रीवर विशेष रूप से भारतीय आबादी में स्ट्रोक के थक्के की विशिष्ट विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है, क्योंकि हमारी धमनियां संकरी होती हैं.” इस नए उपकरण का पहली बार उपयोग 25 अगस्त को किया गया था.जिन मरीजों पर यह आजमाया गया था वे अब ठीक हैं. डॉ. शैलेश गायकवाड़ इस ट्रायल के एक खोजकर्ता भी हैं.
क्या होता है स्टेंट-रिट्रीवर?
स्टेंट-रिट्रीवर एक पतली, बेलनाकार जालीदार ट्यूब होती है जिसे एक कैथेटर के जरिये डाला जाता है और धमनियों के भीतर फैलाया जाता है ताकि वाहिका की दीवारों को चौड़ा किया जा सके. एक बार जब थक्का स्टेंट की जाली में फंस जाता है, तो इसे कैथेटर द्वारा बाहर खींच लिया जाता है. इसे स्थायी रूप से तैनात करने की जरूरत नहीं होती. इसे दस मिनट के भीतर हटाया जा सकता है और ब्रेन में ब्लड सर्कुलेशन को तेजी से बहाल किया जा सकता है.
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क्या यह मौजूदा उपकरण से बेहतर है?
डॉ. गायकवाड़ कहते हैं, “यह ब्रेन में ब्लड सर्कुलेशन की तेजी से और पूर्ण बहाली करता है. जबकि IV इन्फ्यूजन में 50 प्रतिशत खुराक तुरंत दी जाती है और 50 प्रतिशत 12 घंटों के अंतराल में दी जाती है. इन घंटों के दौरान, धमनी को खुलना चाहिए, लेकिन यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि यह कितनी जल्दी होगा. यह 10 या 12 घंटों के भीतर हो सकता है. इस बीच की अवधि में, यह निगरानी करने का कोई तरीका नहीं है कि दवा प्रभावी है या नहीं, थक्का टूट रहा है या नहीं. स्टेंट-रिट्रीवर के तत्काल परिणाम होते हैं.” इसके अलावा, IV इन्फ्यूजन केवल तभी काम करता है जब मरीज ब्रेन स्ट्रोक के छह घंटों के भीतर पहुंच जाए. इसके बाद, मैकेनिकल थ्रॉम्बेक्टॉमी ही एक मात्र इलाज बचता है.
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भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह स्टडी
इस अध्ययन की एक अन्य जांचकर्ता न्यूरोलॉजी विभाग की अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. दीप्ति विभा के अनुसार, “इस परीक्षण का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनसंख्या में एक उन्नत स्टेंट-रिट्रीवर की सुरक्षा और प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना है. दूसरा उद्देश्य यह देखना है कि मरीज किस हद तक अपनी कार्यक्षमता वापस पा सकते हैं.” उन्होंने कहा “हम इस उपकरण की भारत में स्वीकृति के लिए नैदानिक डेटा तैयार कर रहे हैं. यह पहले से ही दक्षिण पूर्व एशिया में स्वीकृत है और पिछले छह महीनों में 120 से अधिक मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज किया गया है. यदि यह सफल होता है, तो यह भारत में गंभीर स्ट्रोक के बाद देखभाल चुनौती को पूरा करने में मदद कर सकता है.” डॉ. विभा बताती हैं, “हर साल अनुमानित 3,75,000 स्ट्रोक मरीजों में से केवल 4,500 को ही जीवनरक्षक मैकेनिकल थ्रॉम्बेक्टॉमी उपचार मिल पाता है, इसलिए स्ट्रोक हस्तक्षेप की पहुंच की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है.”
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हमारे ब्रेन के थक्के अलग क्यों हैं
डॉ. गायकवाड़ बताते हैं कि भारतीयों की रक्त वाहिकाएं पश्चिमी देशों की लोगों के समान आकार की नहीं होतीं है. उन्होंने कहा, “उनकी औसत ऊंचाई छह फीट होती है, जबकि हमारी 5 फीट 6 इंच है. उनके ब्रेन स्ट्रोक की औसत उम्र 60-70 साल है. भारतीयों को ऐसे स्ट्रोक 10 साल पहले, यानी 40-50 वर्ष की उम्र में होते हैं. इसलिए यदि हम स्ट्रोक के मामले में 10 साल आगे हैं, तो हमें उपकरण की दीर्घकालिक प्रभावशीलता को समझने की जरूरत है. हमारी खाने की आदतें, निष्क्रिय जीवनशैली, जल्दी डॉयबिटिज और हाई ब्लडप्रेशर के साथ-साथ विकृत लिपिड प्रोफाइल का मतलब है कि स्ट्रोक की प्रकृति पश्चिमी देशों के लोगों से अलग है.”
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किन अस्पतालों में हो रहा ट्रायल
यह ट्रायल भारत के 16 अस्पतालों में हो रहा है, जिनमें एम्स दिल्ली, जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (JIPMER) और जाइडस अस्पताल, अहमदाबाद शामिल हैं. डॉ. गायकवाड़ कहते हैं, “ज्यादा से ज्यादा लोगों को व्यावहारिक प्रशिक्षण मिलेगा और इससे क्षमता निर्माण में मदद मिलेगी.”
क्या भारत में हो सकता है स्टेंट का निर्माण
डॉ. गायकवाड़ कहते हैं कि अगर उपयोग के लिए मंजूरी मिलती है, तो एम्स सरकार और नियामक अधिकारियों से इस उपकरण के घरेलू निर्माण की अनुमति मांगेगा. उन्होंने बताया, “हमारे पास तकनीक है और हमारे पास एक अनुसंधान और विकास विंग भी है. इस तरह हम लागत को एक-चौथाई तक कम कर सकते हैं.”
Tags: Aiims delhi, Brain science, Explainer, Latest Medical news, Medical Devices, Medical equipmentFIRST PUBLISHED : November 12, 2024, 13:17 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed