देश के सबसे बड़े घुमक्कड़ राहुल सांकृत्यायन कभी नहीं टिके एक जगह पांव

World Tourism Day : वर्ल्ड टूरिज्म डे यानि विश्व पर्यटन डे पर भारत के परम घुमक्कड़ ज्ञान पिपासु राहुल सांकृत्यायन की याद तुरंत आ जाना स्वाभाविक ही है. उन्होंने खूब लिखा और जो कुछ लिखा, उसके लिए खूब घूमे भी. कभी पैदल तो कभी यातायात के नए साधनों से. उनके बारे में कहा जाता था कि वह एक जगह लंबे समय तक टिक ही नहीं पाते थे. उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक का भ्रमण किया.

देश के सबसे बड़े घुमक्कड़ राहुल सांकृत्यायन कभी नहीं टिके एक जगह पांव
हाइलाइट्सबचपन में ही तय कर लिया था कि जीवन का असली सुख घूमना हैपैदल से लेकर मवेशी और यातायात के तमाम साधनों से घूमते रहेघूुमने के बाद जो घुमक्कड़ साहित्य रचा, वो हर लिहाज से बेहतरीन “सैर कर दुनिया की गाफिल ज़िन्दगानी फिर कहां, ज़िन्दगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहां “ बचपन में तीसरी क्लास में उर्दू पढ़ने के दौरान नवाजिन्दा-बाजिन्दा का शेर पढ़ते पढ़ते राहुल सांकृत्यायन ने तय कर लिया, उनकी जिंदगी तो सैर के नाम ही समर्पित रहेगी. वह घुमक्कड़ी के सरताज माने जाते थे. सही मायनों में उन्होंने घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के जरिए हिंदी साहित्य में यात्राओं के जरिए संस्कृतियों से रू-ब-रू होने और ज्ञान की खिड़कियां खोलने की नई विधा ही विकसित की, जिसका उनके पहले हिंदी साहित्य में कतई अभाव था. वो कई भाषाओं से जानकार थे. जिस देश में यात्रा पर जाते, वहां की भाषा भी साथ में सीखकर लौटते. दरअसल सांकृत्यायन में घुमक्कड़ी का बीज डालने वाले उनके नाना थे. उनका बचपन काफी हद तक ननिहाल में बीता था. नाना फौज में नौकरी कर चुके थे. पूरे देश में घूमे थे. वह नाती को फौजी जीवन की कहानियां सुनानते थे. रोचक तरीकों से देश की उन सारी जगहों के बारे में बताते थे, जहां वह घूम चुके थे. उनका जीवन आमतौर पर यायावरी के नाम रहा. घुमक्कड़ी उनका धर्म था. 9 अप्रैल 1893 को पैदा हुए राहुल सांकृत्यायन का असल नाम केदारनाथ पाण्डे’ था. 1930 में लंका में बौद्ध होने पर उनका नाम ‘राहुल’ हुआ. राहुल नाम के आगे सांस्कृत्यायन इसलिए लगा कि पितृकुल सांकृत्य गोत्रीय था. बस घूमते रहे वह लंबे समय तक हिमालय पर रहे. बनारस में रहे. लाहौर में मिशनरी काम किया. दक्षिण भारत में कुर्ग में 04 महीने रहे. दुनिया के तमाम देशों की ओर गए और जब लौटे तो एक नई किताब की रचना की. कई बार नेपाल, श्रीलंका, लद्दाख और तिब्बत की यात्राएं कीं, वहां लंबा प्रवास किया. पूरा यूरोप और एशिया नापा राहुल सांकृत्यायन ने इंग्लैंड और यूरोप की यात्रा की. चीन, जापान, कोरिया, मंचूरिया, सोवियत भूमि, ईरान में घूमे. आजादी की लड़ाई में भी कूदे. किसान मज़दूरों के आंदोलन में उनके साथ रहे1938-44 तक भाग लिया, किसान संघर्ष में 1936 में भाग लिया. सत्याग्रह भूख हड़ताल किया. राहुल सांकृत्यायन की नजर में दुनिया में घुमक्कड़ी से बेहतर कोई चीज नहीं. ये जीवन को समझना सिखाती है और ज्ञान से विज्ञान तक नए दरवाजे खोलती है. (विकी कामंस) राहुल सांकृत्यायन जी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने. जेल में 29 महीने (1940-42) रहे. इसके बाद सोवियत रूस चले गए. वहां लौटे तो कुछ दिनों तक भारत में रहे तो फिर चीन और श्रीलंका के लिए निकल पड़े. घुमक्कड़ी पर उनके विचार घुमक्कड़ी के बारे में वह कहते थे, मेरी समझ में दुनिया की सबसे बेहतर चीज है घुमक्कड़ी. घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता. दुनिया दुख में हो चाहे सुख में, सभी समय यदि सहारा पाती है तो घुमक्कड़ों की ही ओर से. प्राकृतिक आदिम मनुष्य परम घुमक्कड़ था. आधुनिक काल में घुमक्कड़ों के काम की बात कहने की आवश्यकता है. क्या डारविन अपने महान आविष्कारों को कर सकता था, यदि उसने घुमक्कड़ी का व्रत न लिया होता. आदमी की घुमक्कड़ी ने बहुत बार खून की नदियां बहाई हैं, इसमें संदेह नहीं और घुमक्कड़ों से हम हरगिज नहीं चाहेंगे कि वे खून के रास्ते को पकड़ें. किन्तु घुमक्कड़ों के काफले न आते जाते, तो सुस्त मानव जातियां सो जातीं और पशु से ऊपर नहीं उठ पातीं. इतिहास, दर्शन, संस्कृति की समझ वाला महान पर्यटन लेखक एक तरह से कहना चाहिए कि वह महान पर्यटक लेखक थे. उनकी यात्राओं ने उनके चिंतन और लेखन को दो दिशाएं दीं. एक तो प्राचीन एवं अर्वाचीन विषयों का अध्ययन तथा दूसरे देश-देशान्तरों की अधिक से अधिक प्रत्यक्ष जानकारी हासिल करना. ऐसा लगता है कि उनके जीवन का मूल उद्देश्य घूमना ही था लेकिन वह घूमने के साथ तमाम जगहों के बारे में जिस तरह रिसर्च करते जाते थे और उसकी प्रचुर जानकारियां हासिल या अनुभव करके जो लिखते वो विलक्षण होता था. वह जिस विषय के संपर्क में आए, उसकी पूरी जानकारी हासिल करना उनका व्यक्तिगत धर्म बन गया. कई भाषाओं के जानकार वह संस्कृत के साथ तिब्बती, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, चीनी, जापानी, सिंहली भाषाओं के साथ अंग्रेजी के बहुत अच्छे जानकार थे. वह मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ खुद के जीवन क्षितिज को विस्तार देती है. जिस तरह उनके पांव कभी नहीं रुके, उसी तरह उनके हाथ की लेखनी भी कभी नहीं रुकी. (Courtesy – Bharat Discovery) उन्होंने कहा भी, कमर बांध लो भावी घुमक्कड़ों, संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है. राहुल ने अपनी यात्रा के अनुभवों को पिरोते हुए ही ऐसा साहित्य रचा, जिसे ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ रचा. वह ऐसे घुमक्कड़ थे जो सच्चे ज्ञान की तलाश में था. हालांकि उनका जीवन अंतरविरोधों से अलग नहीं रहा. घूमते रहे और 129 किताबें लिख डालीं जिस तरह उनके पांव कभी नहीं रुके, उसी तरह उनके हाथ की लेखनी भी कभी नहीं रुकी. उनकी लेखनी से विभिन्न विषयों पर प्राय: 150 से अधिक ग्रन्थ लिखे गए. प्रकाशित ग्रन्थों की संख्या करीब 129 है.दुनिया जरूर बदलती जा रही है लेकिन उनकी किताबें अब भी आपको तमाम देशों को भूगोल के साथ संस्कृतियों से जोड़ते हुए घूमा लाएंगी. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Goa tourism, Rahul, Tour and Travels, Tourism, TouristFIRST PUBLISHED : September 27, 2022, 14:30 IST