क्या महज इत्तेफाक था चौधरी ब्रह्म प्रकाश का दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री बनना

Delhi First Chief Minister Chaudhary Brahm Prakash: संविधान को अपनाने के बाद जब 1952 में देश में पहले लोकसभा चुनाव हुए तो उसी के साथ दिल्ली में विधानसभा चुनाव भी कराए गए. कांग्रेस ने 48 में से 37 सीटों पर जीत हासिल करते हुए सरकार बनाई और चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने थे.

क्या महज इत्तेफाक था चौधरी ब्रह्म प्रकाश का दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री बनना
हाइलाइट्स सीएम चौधरी ब्रह्म प्रकाश का केंद्र सरकार के साथ टकराव चलता रहा चौधरी ब्रह्म प्रकाश जब नहीं झुके तो उन्हें 1955 में पद से हटा दिया गया उनके बाद गुरमुख निहाल सिंह ने दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद संभाला Delhi First Chief Minister Chaudhary Brahm Prakash: मंगलवार को दिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया. चुनाव आयोग ने दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव की तारीख का ऐलान कर दिया. दिल्ली में पांच फरवरी को एक चरण में चुनाव होगा और नतीजे की घोषणा आठ फरवरी को की जाएगी. दिल्ली में नियमित विधानसभा चुनाव के तीन दशक भले ही दिसंबर 2023 पूरे हुए. लेकिन दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ था. दिल्ली में राजनीतिक व्यवस्था पिछले कुछ सालों में कई बार बदली है और मौजूदा शासन व्यवस्था पिछले तीन दशकों से चली आ रही है.  जबकि लोगों में आम धारणा है कि 1993 में दिल्ली में पहली विधानसभा गठित हुई थी और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मदन लाल खुराना पहले मुख्यमंत्री बने थे. जबकि संविधान को अपनाने के बाद 1952 में दिल्ली में पहली विधानसभा गठन किया गया था. कांग्रेस के चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने थे. हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिलचस्प बात यह है कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर से टकराने करने वाले पहले मुख्यमंत्री नहीं हैं. चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने उनसे पहले ही यह काम कर दिया था.  ये भी पढ़ें- Explainer: दिल्ली-एनसीआर के लिए कितने खतरनाक हैं ज्यादा तीव्रता के भूकंप, क्यों है ये इलाका संवेदनशील 3 साल मुख्यमंत्री रहे चौधरी ब्रह्म प्रकाश द पैट्रियट की एक रिपोर्ट के अनुसार मुख्यमंत्री के रूप में चौधरी ब्रह्म प्रकाश का कार्यकाल कांग्रेस आलाकमान के साथ उतार-चढ़ाव से भरा रहा. चौधरी ब्रह्म प्रकाश का उस समय के गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ टकराव चलता रहा. उन्होंने दिल्ली सरकार के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग की थी. चौधरी ब्रह्म प्रकाश जब नहीं झुके तो उन्हें पद से हटा दिया गया. अंततः चौधरी ब्रह्म प्रकाश की जगह गुरमुख निहाल सिंह को मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया. वह 17 मार्च, 1952 से 12 फरवरी, 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे. उनकी बर्खास्तगी के बाद, गुरमुख निहाल सिंह ने मुख्यमंत्री का पद संभाला. गुरमुख निहाल सिंह 13 फरवरी, 1955 से 31 अक्टूबर, 1956 तक पद पर रहे.  ये भी पढ़ें- वो बौद्ध देश जहां के राजाओं को कहा जाता है राम, रामायण है राष्ट्रीय ग्रंथ, गरुण प्रतीक चिह्न 1952 में कैसे चुने गए ब्रह्म प्रकाश सीएम दिल्ली विधानसभा के चुनाव 27 मार्च, 1952 को भारत के पहले लोकसभा चुनाव के साथ हुए थे. इस चुनाव में 48 विधानसभा सीटों पर दांव लगाया गया था. 48 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा पर कब्जा करने के लिए मुख्य पार्टियों में कांग्रेस, भारतीय जनसंघ, ​​किसान मजदूर पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा शामिल थीं. कांग्रेस ने 48 में से 37 सीटों पर जीत हासिल करते हुए सरकार बनाने का दावा पेश किया था. लेकिन यह हकीकत है कि चौधरी ब्रह्म प्रकाश का मुख्यमंत्री बनना एक इत्तफाक था. कहा जाता है कि मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल नहीं थे. लेकिन जब मुख्यमंत्री बनाने की बारी आई तो उनका नाम सबसे ऊपर आ गया. लोगों का मानना था कि डॉ. सुशीला नायर मुख्यमंत्री बनेंगी.    ये भी पढ़ें- Explainer: क्या है HMPV वायरस, ये H1N1 इंफ्लूएंजा से किस तरह अलग, जानें सबकुछ कौन-कौन था कांग्रेस में बड़ा नेता उस दौर में कांग्रेस के पास दिल्ली में कई दिग्गज नेता थे. जिनमें डॉ. सुशीला नायर (देव नगर), चौधरी ब्रह्म प्रकाश (नांगलोई), मुस्ताक राय खन्ना (मंटोला), डॉ. युद्धवीर सिंह (चांदनी चौक), बैरिस्टर नूरुद्दीन अहमद (चावड़ी बाजार), गुरमुख निहाल सिंह (दरियागंज), चिंता मणि (शाहदरा) और राघवेंद्र सिंह (दिल्ली कैंट) शामिल थे. इन सभी नेताओं का राजधानी के सामाजिक-राजनीतिक हलकों में काफी नाम था. इसीलिए कांग्रेस की जीत का अनुमान तो सभी को था, लेकिन इस बात को लेकर काफी उत्सुकता थी कि वह कितनी सीटें जीतेगी. हालांकि, कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में उसे अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा था.   ये भी पढ़ें- Explainer: इन देशों में आज भी होता है मुस्लिम महिलाओं का खतना, जानिए कितनी खौफनाक है ये प्रथा 1956 में भंग कर दी गई विधानसभा 1956 में राज्य पुर्नगठन आयोग की सिफारिश के बाद दिल्ली में विधानसभा भंग कर दी गई. इसके बाद दिल्ली पर केंद्र का सीधा शासन हो गया. करीब दस साल बाद प्रशासन के नजरिये से केंद्र ने इसे एक निर्वाचित नगर निगम से बदलने का फैसला किया. इस तरह सीधे मुख्य आयुक्त के माध्यम से शासन करने का विकल्प चुना गया. इस प्रकार केंद्र ने शासन की उस प्रणाली को फिर से अपना लिया जो पहली बार 1911 में कलकत्ता से राजधानी दिल्ली स्थानांतरित होने पर शुरू की गई थी. 1966 में दिल्ली प्रशासन अधिनियम लागू किया गया. इसके तहत 56 सदस्यीय महानगर परिषद का चुनाव किया गया. इसके पांच सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते थे. यह परिषद दिल्ली का प्रशासन संभालती थी.  ये भी पढ़ें- अब नहीं रहे दुश्मन, अमेरिकी सैनिक कर रहे वियतनामी लोगों को अवशेष खोजने में मदद, भावुक कर देगी पूरी कहानी जनसंघ ने जीता था महानगर परिषद का चुनाव राजनीतिक दबाव पड़ने के कारण केंद्र सरकार ने आखिरकार दिल्ली के शासन के लिए किसी तरह की राजनीतिक व्यवस्था देने का फैसला किया. महानगर परिषद को सीमित संख्या में तथाकथित ‘हस्तांतरित’ विषय दिए गए थे, जिसके पास केवल अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर मामलों पर बहस और चर्चा करने और संसद में केवल कानून प्रस्तावित करने का अधिकार था. कार्यकारी प्रमुख मुख्य कार्यकारी पार्षद होता था, लेकिन कार्यकारी परिषद की बैठकों की अध्यक्षता एलजी ही करते थे. पहले चुनाव में दिलचस्प नतीजे सामने आए. नए बने जनसंघ ने चुनाव जीता, यह पहला राज्य था जिसमें उसे जीत मिली. विजय कुमार मल्होत्रा ​​मुख्य आयुक्त बने और लालकृष्ण आडवाणी महानगर परिषद के अध्यक्ष बने. वरिष्ठ कांग्रेसr नेता शिवचरण गुप्ता विपक्ष के नेता थे. ये भी पढ़ें- कौन सा भोजन सबसे तेजी से पचता है, नॉनवेज को पचने में लगती है कितनी देर? 1993 में फिर हुई विधानसभा की वापसी 1987 में केंद्र सरकार ने दिल्ली के प्रशासन से जुड़े मुद्दों के लिए सरकारिया समिति का गठन किया. इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता, लेकिन आम जनता के मामलों को संभालने के लिए विधानसभा दी जा सकती है. इस सिफारिश पर 1991 में संविधान का 69वां संशोधन पारित किया गया. इसके तहत दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का विशेष दर्जा मिला और विधानसभा का गठन हुआ. 37 साल बाद 1993 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए. इसमें भाजपा ने 49 सीटों पर जीत हासिल की. मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बने. लेकिन वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. उनके बाद साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया. फिर उनकी जगह सुषमा स्वराज ने ली. उसके बाद से दिल्ली की राजनीति में काफी बदलाव देखने को मिले हैं. FIRST PUBLISHED : January 8, 2025, 15:48 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed